चांदीपुरा वायरस के गुजरात में 140 मामले सामने आए

चांदीपुरा वायरस (सीएचपीवी) रबडोविरिडे परिवार का सदस्य है और देश के पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी भागों में विशेष रूप से मानसून के मौसम में छिटपुट मामलों और प्रकोप ​​​​का कारण बनता है।

नई दिल्ली। जून 2024 के आरंभ से ही 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गुजरात से एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामले सामने आए हैं। 31 जुलाई 2024 तक, 148 एईएस मामले आये हैं। इनमें गुजरात के 24 जिलों से 140, मध्य प्रदेश से 4, राजस्थान से 3 और महाराष्ट्र से 1 मामला दर्ज किया गया है। इस सिंड्रोम से प्रभावित 59 लोगों की मृत्यु हो गई है और 51 मामलों में चांदीपुरा वायरस (सीएचपीवी) की पुष्टि हुई है। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के निदेशक तथा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक ने आज संयुक्त रूप से स्थिति की समीक्षा की। मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक, एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) इकाइयां और राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के क्षेत्रीय कार्यालय एनआईवी, एनसीडीसी से एनजेओआरटी सदस्य, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी) के संकाय ने समीक्षा बैठक में भाग लिया।

19 जुलाई 2024 से एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की दैनिक रिपोर्ट में नए मामलों में गिरावट का रुझान स्पष्ट है। गुजरात ने वेक्टर नियंत्रण के लिए कीटनाशक स्प्रे, सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी), चिकित्सा कर्मियों को रोग की जानकारी उपलब्ध कराने और नामित सुविधाओं के लिए मामलों को समय पर रेफर करने जैसे विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय किए हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय करने और प्रकोप की विस्तृत महामारी विज्ञान जांच करने के लिए गुजरात राज्य सरकार की सहायता के लिए एक राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल (एनजेओआरटी) तैनात किया गया है। एईएस मामलों की रिपोर्ट करने वाले पड़ोसी राज्यों का मार्गदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) और राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी) की ओर से एक संयुक्त परामर्श जारी किया जा रहा है।

क्या है चांदीपुरा वायरस
चांदीपुरा वायरस (सीएचपीवी) रबडोविरिडे परिवार का सदस्य है और देश के पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी भागों में विशेष रूप से मानसून के मौसम में छिटपुट मामलों और प्रकोप ​​​​का कारण बनता है। यह बीमारी अधिकतर 15 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है। इसमें बुखार हो सकता है, जिसके कारण शरीर में ऐंठन, कोमा की स्थिति और कुछ मामलों में मृत्यु तक हो सकती है।