बदलती जीवन शैली तथा डिजिटल स्क्रीन से बढ़ रहे है आंखों के मरीज

नई दिल्ली। हाल के दिनों में आंखों की रोशनी से जुड़ी समस्याएं बढ़ी हैं और ये समस्याएं सभी उम्र के लोगों में बढ़ी है। आज हर व्यक्ति कोई न कोई बीमारी से ग्रस्त होता है। यहां तक कि भारतीय युवा भी आंखों की इन बीमारियों से अछूते नहीं हैं। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज काफी लोग वैसे दृष्टि दोषों से ग्रस्त हैं, जिन्हें रोका जा सकता है। अगर समय पर उपचार किया जाए, तो दृष्टि दोषों के कारण होने वाली नेत्रअंधता को रोका जा सकता है।

सेंटर फार साइट ग्रूप ऑफ हॉस्पिटल्स के अध्यक्ष डॉ. महिपाल सिंह सचदेव का कहना है कि , ‘‘लोगों की बदलती जीवन शैली तथा सभी उम्र के लोगों द्वारा डिजिटल स्क्रीन के अत्यधिक उपयोग के कारण वैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है, जो मामूली से लेकर गंभीर दृष्टि दोषों से पीडि़त हैं। हालांकि इन समस्याओं को रोका जा सकता है या समय से उपचार कराकर इन्हें ठीक किया जा सकता है। अक्सर लोग धुंधली दृष्टि, अगल-बगल की चीजों के नहीं दिखने, आंखों में सूखापन या आंखों से पानी आने जैसी समस्याओं की अनदेखी करते हैं। समय पर इन समस्याओं का उपचार नहीं होने पर ये समस्याएं नेत्र अंधता का कारण बन सकती हैं।

डॉ.महिपाल के अनुसार , ‘‘मोतियाबिंद और रिफ्रे क्टिव दोष हमारे देश में सबसे अधिक आम समस्या है और ये नेत्र अंधता के वैसे कारण हैं, जिन्हें आसानी से रोका जा सकता है। कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के बारे में भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। कार्निया दान करना दुनिया का सबसे अच्छा काम है। भारत में सबसे अधिक कॉर्निया प्रत्यारोपण की जरूरत है। बदलती तकनीक के साथ उपचार के परिणामों में सुधार हुआ है, लेकिन एकमात्र चुनौती इसे सभी के लिए सुलभ बनाना है।’’