कांग्रेस प्रत्याशी नहीं आये, चुनाव आया

अब लोकसभा चुनाव तो आ गया लेकिन हरियाणा में कांग्रेस प्रत्याशी अभी तक नहीं आये ।

नई दिल्ली। कांग्रेस हाईकमान ने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा रोक रखी है । ‌पहले तो हरियाणा प्रदेश कांग्रेस प्रभारी, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेशाध्यक्ष उदय भान, सुश्री सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और सभी सिर से सिर जोड़े बैठे मंथन करते रहे लेकिन जब मंथन में कुछ बात न बनी तब कुछ नेताओं ने तो बैठक में आना ही बंद कर दिया ! फोन पर ही सलाह देने लगे । फैसला कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को सौंप दिया और वे बीमार हो गये, जिससे हरियाणा के प्रत्याशियों की इंतज़ार और लम्बी हो गयी ! क्या इतनी सी ही वजह है कांग्रेस प्रत्याशियों के नामों की घोषणा न किये जाने की ? नहीं ! यह वजह नहीं है ! हरियाणाका बच्चा बच्चा जानता है कि प्रदेश कांग्रेस में कितनी फूट है, गुटबाजी है, कांटा निकालने की होड़ है, ऐसे में कैसे प्रत्याशियों के नाम पर सहमति बने ? बड़ी संख्या मुश्किल है! ऐसा लगता कि जैसे सभी गुट अपने अपने प्रत्याशियों की लिस्ट बना कर अपने ही प्रत्याशियों के चयन पर डटे हुए हैं । ‌इन्हें कांग्रेस हित की चिंता नहीं है, अपने प्रत्याशियों के हित, अपने गुट के हित ज्यादा प्यारे हैं और अब खड़गे के पास भी ऐसे ही सुझाव पेश किये जा रहे हैं, खड़गे भी करें तो क्या ? चर्चा है कि नौ में से छह लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों के नाम पर तो सहमति बन गयी है लेकिन हिसार, करनाल और गुरुग्राम पर सहमति बनती नहीं दिखती ! फिर छह क्षेत्रों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा तो कर देनी चाहिए ! मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को चुटकी लेने का मौका मिल गया कि कांग्रेस तो आपस में ही टिकटों के लिए लड़ रही है और सिरसा से भाजपा प्रत्याशी और कभी हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर तो इससे भी आगे बढ़कर कहते हैं कि कांग्रेस ही कांग्रेस को हरायेगी ! यह भी कड़वा और भोगा हुआ सच है कि जब अपने सुझाये प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलती तब या तो उसे निर्दलीय या फिर किसी दूसरी पार्टी से चुनाव मैदान में उतार कर कांग्रेस को कमज़ोर करते हैं । वैसे एक समय इनेलो भाजपा समझौता था लेकिन भाजपा के पास प्रत्याशी ही नहीं थे, तब इनेलो ने किशन सिंह सांगवान भाजपा को दे दिये और वे फिर भाजपा के रंग में ऐसे रंगे कि इनेलो में लौटे ही नहीं ! अब स्थिति बदल चुकी है। अब ड्राइवर सीट पर भाजपा है और हरियाणा में किसी दल से समझौते की जरूरत ही नहीं ! जजपा से भी लोकसभा चुनाव आने पर गठबंधन तोड़ते कहा कि सिर्फ सरकार चलाने तक गठबंधन था क्योंकि हरियाणा को स्थिर सरकार चाहिए थी। ‌अब जजपा को भी लोकसभा प्रत्याशी ढूंढने पड़े और कुछ उतार भी दिये । इनेलो, जजपा जैसे दल प्रत्याशियों की घोषणा में कांग्रेस से आगे निकल गये जबकि कांग्रेस का विचार मंथन याकि मैराथन दौड़ ही खत्म होने का नाम नहीं ले रही ! अब तो कांग्रेस को प्रत्याशियों की घोषणा कर ही देनी चाहिए और गुटबाजी पर लगाम लगानी पड़ेगी ! नहीं तो आजा पिया आई बहार, तेरा करू़ं गिन गिन के इंतज़ार ही रह जायेगा और चुनाव का मौसम व प्रचार का समय निकलता जायेगा!