Delhi news : सधी हुई राजनीति करने में माहिर हो चुके हैं अरिवंद केजरीवाल

कोई राजनीतिक आधार, कोई चुनावी या जमीनी राजनीति के अनुभव के बगैर, और किसी स्थापित संगठन से जुड़ाव न होने बावजूद केजरीवाल का प्रदर्शन अप्रत्याशित रहा है। पहले ही चुनावी समर में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री की गद्दी पर कब्जा कर लिया और इसके बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में उनकी स्थिति और मजबूत ही हुई है।

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली की राजनीतिक मैदान में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब एक सधे हुए राजनीतिज्ञ के रूप में व्यवहार कर रहे हैं। पहले की तरह न तो जल्दबाजी में बोलते हैं और न ही नाहक ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करते हैं। यह बदलाव में उनमें कोरोना की दूसरी लहर के बाद देखा जा रहा है। काबिलेगौर है कि उस समयावधि में इनकी मुलाकात केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई थी। उसके बाद ही उनके आचरण में बदलाव देखा जा रहा है।
दिल्ली में कई पुरानी योजनाओं को पूरा करने में भले ही देरी हुई हो कोरोना के कारण। लेकिन हाल के दिनों में प्रदूषण और पराली को लेकर इन्होंने जनता के बीच अपनी एक स्वच्छ छवि बनाई है। अपने आम आदमी पार्टी के प्रवक्तओं को यह जिम्मेदारी दी हुई है कि सरकार के कामकाज और जनता की समस्याओं को प्रमुखता से प्रचारित किया जाए। जनता है, तो सरकार है।
हाल के दिनों में कोरोना काल में छठ को लेकर भले ही दिल्ली प्रदेश भाजपा ने राजनीतिक यात्रा शुरू कर दी, लेकिन इसको लेकर सधी हुई राजनीति आम आदमी पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने की है। पहले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के माध्ययम से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया से कोरोना महामारी के दौरान दिशा-निर्देश की मांग और उसके बाद बाद स्वयं मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उपराज्यपाल अनिल बैजल को पत्र लिखकर छठ पर्व की अनुमति की मांग की। इस पत्र को सार्वजनिक किया जाना भी राजनीतिक उपक्रम ही है।
असल में, दिल्ली में पूर्वांचल वोटर पहले कांग्रेस की मानी जाती रही है। बाद में यह भाजपा की ओर गई और बीते चुनाव में इसने आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन दिया है।
अगले साल नगर निगम का चुनाव होना है, इसलिए सभी की नजर इस एकमश्मत वोट बैंक पर है। दरअसल निगम चुनाव नजदीक है और पूर्वांचलियों को सभी पार्टियां अपने साथ जोड़ना चाहती हैं। इस कारण आने वाले दिनों में इसे लेकर राजनीति और तेज होने की संभावना जताई जा रही है। जरूरत इस मामले में संवदेनशील होने की है, जिससे कि लोग छठ पूजा भी मना सकें और संक्रमण भी न फैले।निगम चुनाव ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है, राजनीतिक दलों के ऐसे कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ रही है जो चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसे कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय का चक्कर लगाना शुरू कर दिया है। ऐसा भी अब खूब देखा जा रहा है कि पार्टी के मुखिया या अन्य प्रमुख नेता जब इलाके में पहुंचते हैं तो वे वहां भी उनके आगे-पीछे घूम रहे होते हैं। आम आदमी पार्टी में भी ऐसा माहौल दिखाई दे रहा है। जबकि पार्टी प्रमुख यह स्पष्ट कर चुके हैं कि चमचागिरी से टिकट के लिए प्रयास न करें, बल्कि अपने इलाके में समाज के लिए इतना काम कर दें कि पार्टी स्वयं उनके पास टिकट देने के लिए पहुंच जाए। मगर टिकट की चाहत कार्यकर्ताओं को शांत होकर बैठने नहीं दे रही है। बार- बार दौड़ भाग कर रहे हैं। पार्टी मुख्यालय की बाहरी दीवार इन दिनों ऐसे कार्यकर्ताओं के पोस्टरों से भरी पड़ी है।