नई दिल्ली। वज्रासन का सीधा प्रभाव हमारे शरीर की वज्र नाड़ी पर पड़ता है और इसके अभ्यास से अभ्यासी वज्र के समान कठोर एवं सख्त हो जाता है इसलिए हमारे योगियो ने इसका नाम वज्रासन रखा है। इस आसन में इस्लाम धर्म और बौद्ध धर्म के अनुयायी पूजा और ध्यान करते हैं।
विधि – दोनो टांगों को पीछे की ओर मोड़कर घुटने के बल बैठ जाऐं। पैरों के तलवे ऊपर की ओर होने चाहिए। दोनों पैरों के अंगूठे परस्पर एक-दूसरे से मिले हों। दोनों हाथों को जंघाओं पर रखते हुए ऐड़ियों को इस प्रकार खोल दें ताकि नितम्ब उन पर टिक जाऐं। कमर, गर्दन, छाती बिल्कुल सीधी होनी चाहिए। हमारे श्वास की गति समान्य होगी। इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमता और समयानुसार करें। शुरू-शुरू में कम से कम 2 मिनट तक इस आसन में बैठें, अभ्यस्त होने के बाद धीरे-धीरे समय को बढ़ा सकते हैं।
लाभ – इसके अभ्यास से वात, बदहजमी, कब्ज रोग जड़ से खत्म हो जाते हैं। अतिनिद्रा वालों के लिए यह परम उपयोगी है। विद्यार्थी अथवा रात में जागकर काम करने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही लाभदायक है। इस आसन में नाड़ियों का प्रवाह ऊर्ध्वगामी हो जाता है, जिससे भोजन शीघ्र पच जाता है। जो महिलाऐं गर्भवति अवस्था में इसका अभ्यास करती हैं, उनकी नार्मल डिलीवरी होती है। हमारे प्रजनन संस्थान वाले स्थान में रक्त का संचालन कम होने के कारण पुरूषों में अंडवृद्धि यानि (हाइड्रोसिल) नामक बीमारी नहीं होती है।
सावधानियां – गठिया रोगी इसका अभ्यास ना करें। नये साधकों को अपने पैरों के ताल, ऐड़ियों में दर्द का आभास होगा। आसन को खत्म करने के बाद अपने पैरों को अवश्य हिलाऐं, जिससे रक्त का संचार पैरों में भली-भांति होगा। यह एक ऐसा योग आसन है, जिसे भोजन करने के बाद भी किया जा सकता है।