पाँच दिवसीय प्रेरणा विमर्श – 2022, मीडिया कॉन्क्लेव एवं फिल्म फेस्टिवल के चौथे दिन सोशल मीडिया विषय पर हुआ विमर्श

विमर्श के चौथे दिन के तृतीय सत्र में सोशल मीडिया और भविष्य की चुनौतियां विषय पर विमर्श हुआ। इस दौरान सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में श्री चंदन कुमार जी उपस्थित रहे। इस दौरान उन्होंने कहा कि चुनौतियां कभी एक समान नहीं होती है समय समय पर चुनौतियों का प्रकार और स्तर बदलता रहता है।आपको उस चुनौतियां का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।

नोएडा। प्रेरणा शोध संस्थान न्यास, प्रेरणा जन सेवा न्यास और केशव सम्वाद पत्रिका की तरफ से नोएडा के सेक्टर-12 स्थित सरस्वती शिशु मन्दिर में पाँच दिवसीय प्रेरणा विमर्श – 2022, मीडिया कॉन्क्लेव एवं फिल्म फेस्टिवल के चौथे दिन सोशल मीडिया विमर्श विषय पर कार्यशाला का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में सोशल मीडिया जनमानस की शक्ति विषय पर विमर्श हुआ। सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती मोनिका लंगेह जी, उपस्थित रही। इस दौरान उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे सोशल मीडिया का विस्तार होगा, टेक्नोलॉजी का विस्तार होगा यह उतना ही प्रभावकारी होता जाएगा। एक समय था जब मुगल शासकों को ग्लोरीफाई किया जाता रहा लेकिन आज आप सोशल मीडिया के माध्यम से उस नैरेटिव खत्म कर रहे हैं और भारतीय सांस्कृतिक परिचर्चाएं सामने आने लगी हैं। सोशल मीडिया जब फेक नैरेटिव फैलाता है तो आप उसकी काट कैसे करेंगे इसको बताने के लिए उन्होंने जम्मू कश्मीर का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले नैरेटिव फैलाया जाता था कि जम्मू कश्मीर के लोग भारत से लोग खुश नहीं हैं, वे भारत में नहीं रहना चाहते हैं। उस दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से हमने एक सकारात्मक नैरेटिव फैलाना शुरू किया कि जम्मू कश्मीर के लोग भी भारतीय हैं। उन्हें भारत के साथ रहने में खुशी है। इसको पूरे देश से समर्थन मिलने लगा। आज इन्हीं सोशल मीडिया नैरेटिव की वजह से आज हम प्रेरणा विमर्श के इस मंच पर हैं। आम लोगों को सोशल मीडिया के रूप में एक मंच मिला जहां वे अपनी टैलेंट को रख सकते हैं। इस प्रकार सोशल मीडिया के नकारात्मक नैरेटिव से दूर रहकर कैसे एक सकारात्मक नैरेटिव बना सकते हैं ये आप पर निर्भर करता है।
मुख्य वक्ता के रूप में उमेश उपाध्याय उपस्थित रहे। इस दौरान उन्हेंने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा दैनिक जीवन अब सोशल मीडिया से संचालित होता है। सोशल मीडिया के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने आज जीवन को सरल बना दिया है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करते है। कहां करते हैं कैसे करते हैं। ये विमर्श का विषय है। हमारा जीवन कहानियों से शुरू होता है। कहानियों से हम आदर्श चुनते हैं कहानियों से हम विलेन चुनते हैं। इस प्रकार जीवन में एक नैरेटिव बनाया जाता है। नैरेटिव कैसे बनता है इसको बताने के लिए राम मन्दिर का उदाहरण दिया और कहा कि इस मन्दिर के लिए हमने पाच सौ सालों से अधिक का संघर्ष किया। इस दौरान अलग अलग दलों की सरकारें रही। हम अलग अलग जातियों के आधार पर अवश्य लड़ते रहे, लेकिन रामलला के नाम पर हम एकजुट रहे। एक लम्बे समय तक पीढ़ी दर पीढ़ी ये नैरेटिव बनता रहा कि अयोध्या में राम लला जी है। ये है सोशल मीडिया। आज का जो सोशल मीडिया कम्पनी है वह एक प्रोफिट कमाने वाली कंपनी हैं। कंपनियां ही तय करती हैं कि किसकों ब्लू टिक मिलेगा किसको नहीं मिलेगा। कौन सही है कौन गलत है। दीपावली पर पटाखे जलेंगे या नहीं ये भी अब वहीं से तय होते हैं। लेकिन अब भारत की कहानी, भारत के डिजिटल सोशल कर्मवीरों के माध्यम से कही जाएगी। हमें भारत का नैरेटिव स्थापित करना होगा। ये प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
सत्र में विशेष अतिथि के रूप में अनिता जोशी जी उपस्थित रही।
विमर्श के दूसरे सत्र में नव भारत निर्माण में सोशल मीडिया की भूमिका विषय पर विमर्श हुआ। सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में श्री अंशुल सक्सेना जी उपस्थित रहे। इस दौरान उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि एक समय था जब मीडिया जो दिखाता था लोग वही देखते थे वही मानने को बाध्य भी थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया के आने के बाद मीडिया के इस मनमानी पर अब ब्रेक लग गया है। उन्होंने बताया कि कैसे किसान आन्दोलन और शाहीन बाग के दौरान इंस्टाग्राम पर युवाओं को टारगेट करके योजना बनायी जाती थी। कैसे यूवाओं को को अपने ही संस्कृति से दूर करने के लिए सोशल मीडिया पर नवरात्री में लिखा जाता है कि जिस देश में हर रोज रेप होता है उस वहां नवरात्री में देवी की पूजा करने का क्या औचित्य है। ये वह नैरेटिव है जिसके माध्यम से युवाओं को अपने संस्कृति से दूर करने का षडयंत्र किया जाता है।
मुख्य अतिथि के रूप में सोनाली मिश्रा जी उपस्थित रही। सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि अपने शोध के दौरान उन्होंने जाना कि कैसे हिन्दू महिलाओं और सनातन धर्म संस्कृति के प्रति फेक कंटेट चलाया जाता था। शोध का समय वह समय था जब मुझे अलग दुनिया का एहसास हुआ। वामपंथियों ने पहले मेरी कथा कहानियों को इतना सराहा कि मैं उनके विचारों से प्रभावित हो गई, और वामपंथी साहित्यकार के रूप में पहचान मिलने लगी। बाद के समय में पता चला कि मैं गलत दिशा में चल पड़ी हूं और परिवार तोड़ू गैंग का हिस्सा बन गई हूं। अब मुझे यह अनुभव होने लगा कि ये वामपंथी लोग मुझे अपने ही धर्म और संस्कृति से दूर कर रहे मेरे लेख पहले वामपंथियों के साहित्य से प्रभावित था। लेकिन बाद के समय फेसबुक के आने के बाद मैने अपने लेखनी में काफी बदलाव किए। बहुत समय बाद पता चला कि मैं वामपंथियों के नैरेटिव में फंस गई थी।