यह धुआं सा कहां से उठता है ?

कमलेश भारतीय

सुबह उठते ही जैसे ही पार्क में सैर के लिए जाते हैं तो आकाश धुंध भरा दिखता है । लगता है बादल छाए गये हैं जबकि ये बादल कतई नहीं है । ये तो पराली के धुयें से बने बादल हैं और इससे अनेक बीमारियों के फैलने का डर भी है । जैसे आंखों में जलन, दम घुटना और खांसी ! यह हर साल का एक स्थायी फीचर हो गया है । किसान समझाने पर भी समझने को तैयार नहीं । सरकार भी नये से नये
कानून ला रही है । जुर्माने करने के समाचार भी आते हैं लेकिन पराली जलाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं । समस्या जस की तस !
दिल्ली भी प्रदूषण से परेशान है । एक बढ़िया सी चुटकी भी आ रही है सोशल मीडिया पर कि पहले तो अरविन्द केजरीवाल अकेले खांसते थे , अब जब से उनकी कृपा दिल्ली पर हुई है , पूरी दिल्ली ही खांसती है ! यानी दिल्ली में प्रदूषण बहुत बढ़ा है और यहां भी कम उपाय नहीं किये गये । ऑड ईवन नम्बर की गाडियां तक चलने के आदेश दिये गये लेकिन दर्द बढ़ता गया , ज्यों ज्यों दवा की ! सीएनजी की गाड़ियों का प्रचलन भी सामने आया लेकिन वही ढाक के तीन पात !
आखिर इस दर्द की दवा क्या है और किसके पास है ? शायद हर दर्द की दवा हमारे पास ही होती है । यदि हम इस प्रदूषण को गंभीरता से लें और इससे बचने के उपाय हम अपने अपने स्तर पर करें तो यह ऐसी वैतरणी नहीं जिसे हम पार न कर सकें ! चीनी कहावत है कि एक हजार मील की यात्रा पहले कदम से ही शुरू होती है । बिल्कुल इसी तरह अपने से ही प्रदूषण हटाने की ओर एक एक कदम उठायें , जिससे यह समस्या दूर हो सकती है । हम कानून की ओर देखते रहे तो प्रदूषण नहीं खत्म होने वाला ! हम अपने स्तर पर कोशिश करें तो यह समस्या चुटकियों में हल होती दिखेगी !


(पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी )