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Guest Column : हत्या के बाद पलायन और नीतिश सरकार का ‘राग कश्मीरी’

बिहार में रोजगार का परिदृश्य यह है कि सरकार मजदूरों को विकल्प दे पाने में अब तक विफल रही है। पलायन सबसे गरीब लोगों को प्रभावित करता है या फिर कम—से—कम गरीबी और पूर्ण निर्भरता के दलदल को और खतरनाक बना देता है। मार्च में लॉकडाउन के बाद से यह दूसरा मौका है, जब बिहार बड़े पैमाने पर पलायन का सामना कर रहा है। सात महीने के बाद लोग बिहार से फिर एक अनिश्चितता की ओर बढ़ रहे हैं। इसका जवाब है बिहार सरकार के पास?

 

निशिकांत ठाकुर

कश्मीर से एक बार फिर मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है। पलायन करने वालों की शिकायत स्थानीय लोगों से नहीं, बल्कि उनसे है जो चाहते हैं भारत हिंदू-मुस्लिम के बीच उलझा और बंटा रहे, जिससे आतंकी उनके बीच की दलाली करके अपना उल्लू सीधा करता रहे। अगर ऐसे लोग हमारे बीच के स्लीपर सेल जैसा काम कर रहे हैं तो वह वाकई देशद्रोही हैं। उन्हें अबतक ढूंढा क्यों नहीं जा सका है? यदि ढूंढा नहीं जा सका है तो यह कमी किसकी है? अब तो वह केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए कार्रवाई करने का पूरा अधिकार केंद्र सरकार का ही है। इतनी सशक्त होते हुए भी ऐसी क्या मजबूरी है कि इस पलायन और हत्याओं को रोकने के लिए सरकार कोई कठोर कदम क्यों नहीं उठा रही है। भारत का स्वर्ग कहलाने वाला कश्मीर आज कहां पहुंच गया! हां, यह ठीक है कि दुर्गम बॉर्डर होने के कारण और पड़ोसी पाकिस्तान के कारण यह राज्य शुरू से ही विवादित रहा है, जिसके कारण बार—बार आतंकियों का कहर इस राज्य की जनता झेलती रही है। आखिर कैसे हो इसका स्थायी इलाज, इस पर तो उच्च पद पर बैठे नीति—निर्माता राजनीतिज्ञ और नौकरशाह अपनी नीति तो बना ही रहे होंगे। इसका अंत तो होगा ही, लेकिन कब तक? यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही है। कश्मीर में पांच अक्टूबर के बाद से पांच मजदूरों की हत्या हो चुकी है। इनमें बिहार के चार मजदूर और रेहड़ी वाले भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश का एक मुस्लिम कारपेंटर भी मृतकों में शामिल है। इससे पहले एक स्थानीय सिख और हिंदू शिक्षक की हत्या कर दी गई थी। मशहूर दवा कारोबारी कश्मीरी पंडित मक्खनलाल बिंद्रू को भी आतंकियों ने मार डाला था। लगातार हो रहे टारगेट किलिंग से वहां बाहरी लोगों और मजदूरों में डर का माहौल है। ऐसे में भारी संख्या में जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे मजदूरों के राज्य से पलायन की खबरें आ रही हैं। हालांकि, सामान्य तौर पर सैकड़ों मजदूर सर्दियां शुरू होने और दीपावली के त्योहार पर अपने घर लौटते हैं, लेकिन राज्य में हिंसा बढ़ जाने से वे पहले ही वहां से निकलने की कोशिश में हैं।

जम्मू-कश्मीर में चल रहे कई विकास परियोजनाओं में करीब 90 फीसदी दूसरे राज्यों के मजदूर निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं। सिर्फ कश्मीर घाटी में ही पांच लाख दूसरे राज्य के मजदूर हैं। अनुमान के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में बाहर से तीन से चार लाख मजदूर हर साल काम के लिए घाटी जाते हैं। उनमें से अधिकांश सर्दी की शुरुआत से पहले चले जाते हैं, जबकि कुछ साल भर वहीं रह जाते हैं। वहां के हर जिले में बिहार और यूपी के मजदूर ही कार्यरत हैं। लोगों के जेहन में इन हिंसक घटनाओं को लेकर कई सवाल उमड़—घुमड़ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या राज्य के हालात फिर से 90 के दशक जैसे हो रहे हैं? क्या घाटी से कश्मीरी पंडितों और राज्य के अल्पसंख्यकों का पलायन फिर शुरू हो जाएगा? जम्मू के कश्मीरी पंडितों के कैंप में रह रहे एक पीड़ित की मानें तो महज दो दिन में घाटी के कश्मीरी पंडित और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लगभग 150 परिवारों ने जम्मू में शरण ली, क्योंकि घाटी के हालात 90 के दशक से भी ख़राब होते जा रहे हैं। वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों की आंखों में खौफ़ साफ़ झलकता है। घाटी में सिर्फ़ एक हफ़्ते के दौरान सात लोगों की हत्या कर कर दी गई। कश्मीर में हिंदू और सिख शायद वर्ष 2000 के शुरुआती दशक के बाद सबसे ज़्यादा ख़ुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, तब कम से कम दोनों समुदायों के 50 लोगों को अलग-अलग दो नरसंहारों में मार दिया गया था। हाल में कश्मीर में चार ग़ैर मुसलमानों समेत सात आम नागरिकों की हत्या हुई, जिसके बाद यह डर फैलने लगा है कि कहीं घाटी में एक बार फिर 1990 के दशक जैसी स्थिति न पैदा हो जाए। उस दौर में हज़ारों की संख्या में कश्मीरी पंडित घाटी में अपना घर-बार छोड़कर पड़ोसी राज्यों में जा बसे थे। साल 1990 में घाटी में चरमपंथ बढ़ने के बाद केवल 800 कश्मीरी पंडितों के परिवार ही ऐसे थे, जिन्होंने यहां से न जाने का फ़ैसला किया।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कश्मीर से आतंक के खात्मा के लिए पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से एक अलग ही मांग रख दी है। जीतन राम मांझी ने ट्वीट किया कि पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कश्मीर को बिहार के लोगों को सौंप दें। वे लोग 15 दिनों में स्थिति सुधार देंगे। जम्मू कश्मीर में आतंकियों द्वारा बिहार के मजदूरों की हत्या को लेकर बिहार का विपक्ष राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर है। दरअसल, नीतीश सरकार ने मृतकों के परिजन को दो-दो लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है। इसको लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा कि डबल इंजन सरकार की बिहारवासियों पर डबल मार पड़ रही है। बिहार में नौकरी-रोजगार देंगे नहीं, बाहर जाओगे तो मार दिए जाओगे। उन्होंने आगे कहा- नीतीश कुमार जी एक बिहारी की जान की कीमत दो लाख रुपये लगाकर बिना कोई संवेदना प्रकट किए चले जाएंगे। सर्पदंश और ठनका (बज्रपात) से मौत पर बिहार सरकार चार लाख रुपये का मुआवज़ा देती है, लेकिन सरकार की नाकामी के कारण पलायन कर रोजी-रोटी के लिए बाहर गए बिहारी मजदूरों को आतंकियों द्वारा मार देने पर दो लाख रुपये देती है। गजब! ‘अन्याय के साथ विनाश’ ही नीतीश-भाजपा सरकार का मूल मंत्र है।

तेजस्वी ने इसको लेकर पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक खुला पत्र भी लिखा था। पत्र में उन्होंने धारा-370 को लेकर मुख्यमंत्री पर जमकर हमला बोला था। तेजस्वी ने लिखा था कि- ‘अपनी सरकार की नाकामी को छुपाने के लिए आप बड़ी बनावटी मासूमियत से” प्रवासी मजदूर ” शब्द पर आपत्ति जताते हैं, लेकिन पलायन के ज़हर को गरीब बिहारवासियों के जीवन से हटाने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं करते। ऊपर से आपकी सरकार ने तो खूब दावा किया था कि धारा—370 हटने से आतंकवाद का घाटी से अंत हो जाएगा। खूब उछलकूद कर आपकी पार्टी ने बिना सोचे—समझे लिए गए इस कदम का देश के लिए ऐतिहासिक दिन बताकर समर्थन किया था। जब सब कुछ इतना सामान्य हो चुका था तो क्यों आपकी सरकार में बैठे लोग दबी जुबान जम्मू—कश्मीर जाकर रोजगार तलाशने के लिए श्रमिकों की ही आलोचना कर रहे हैं? संभव है कि आपकी सरकार के द्वारा ज़मीनी हकीकत से दूर किए गए दावों के प्रभाव में ही इन श्रमिकों ने जम्मू कश्मीर जाने का मन बनाया हो। इधर, तेजस्वी को जवाब देते हुए बिहार के उप मुख्‍यमंत्री तार किशोर प्रसाद ने कहा कि पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के द्वारा जो कायराना हरकत की जा रही है, उसको लेकर बिहार और केंद्र सरकार गंभीर है। नीतीश कुमार और मैंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बात की है और सुरक्षा के सभी कदम उठाए जा रहे हैं। गैर कश्मीरियों की सुरक्षा के लिए विशेष कैंप बनाए जा रहे हैं। हम सबको मिलकर इस कायराना हरकत का जवाब देना है। उन्होंने आगे कहा— जम्मू कश्मीर में धारा—370 के समाप्त होने के बाद आतंकियों की हताशा और बौखलाहट सामने आ रही है। उन्होंने कहा, तेजस्वी यादव को धारा—370 समझने में काफी समय लगेगा।

समझ में नहीं आता कि बिहार के नेताओं के मन में मजदूरों के प्रति इतना प्रेम कैसे आज उमड़ आया है। उनके राज्य से पलायन नहीं हो, उनके यहां से पलायन रुके, इसके लिए कोई प्रयास तो किसी भी सरकार द्वारा आज तक किया नहीं गया। चाहे लॉकडाउन में पलायन हो या महाराष्ट्र में अपमानित होकर वहां से भागने की बात या अभी शुरू हुए कश्मीर से पलायन… बिहार की निर्लज्ज और बेशर्म सरकार को इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। होता यह है कि ये नेतागण कुछ हादसा होने के बाद राज्य की जनता का विश्वास जीतने के लिए, उनके मन को भरोसा दिलाने या इस तरह भी कह सकते हैं कि उन्हें ठगने के लिए इस प्रकार का प्रलाप करने लगते हैं जिससे लोगों के मन में यह विश्वास जागे कि उनके लिए सरकार सजग है । लेकिन, दुर्भाग्य तो यह है वह अपने राज्य से पलायन कैसे रोकें, इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई करती नजर नहीं आती। यदि ऐसा हुआ होता हो बिहार में कई उद्योग लग गए होते और लाखों अपमानित प्रवासी अपने राज्य के विकास में योगदान दे रहे होते। लेकिन, आजादी के बाद से आज तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)