Guest Column : आखिर अग्निवीर योजना का क्यों कर रहे हैं युवा विरोध ?

रोजगार आने वाले दिनों की सबसे बड़ी समस्या होगी, शिक्षा बढ़ रही है और शिक्षितों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है…उनको चाहिए रोजगार। अगला जनांदोलन भी रोजगार के मुद्दे पर हो सकता है और देश की सरकार को इसका समाधान प्राथमिकता के आधार पर खोजना चाहिए।

पंकज प्रसून

नई दिल्ली। कुल मिलाकर लब्बोलुआब यही है कि अब #सेना में भी संविदा यानि कॉन्ट्रैक्ट पर जवानों की भर्ती की जाएगी। आह शानदार! क्या बेहतरीन अलंकारों से अलंकृत किया गया है #अग्निपथ के #अग्निवीर। पहली नजर में तो ऐसा लगा कि इससे बढिया और क्या। 4 साल की नौकरी और फिर 11 लाख के आसपास संयुक्त निधि। लेकिन फिर उसके बाद क्या? 25 साल की उम्र में फिर उस नौजवान के पास नौकरी खोजने की समस्या सामने होगी। अब हर कोई स्टार्टअप तो शुरू नहीं कर सकता है क्योंकि बिजनेस करने के लिए जो दिमाग और रिस्क उठाने का जज्बा सबके पास नहीं होता है।

30 हजार से 40 हजार के तथाकथित मंथली मोटे पैकेज से नौजवानों का कितना भला होने वाला है ये तो सब जानते ही होंगे। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि सेना की भर्ती में भी कटौती की जा सकती है लेकिन केंद्र सरकार की महानता तो देखिए, कितने खूबसूरत तरीके से कैंची कतरी गई है कि किसी को पता ही नहीं चला कि अब सेना में स्थाई नौकरी पाने का ख्वाब भी भूतकाल की बातें हो गई।

हमने देखा है, दरभंगा में अहले सुबह, सैकड़ों नौजवानों को जमकर पसीना बहाते हुए, कड़ी मेहनत करते हुए, खूब दौड़-धूप करते हुए…उन सभी के अरमान चकनाचूर हो गए। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और भी कई राज्यों के हजारों नौजवान बड़ी शिद्दत से सेना में भर्ती की तैयारी में दिन रात जुटे रहते थे। अब डैमैज कंट्रोल करने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों से हवाई घोषणा करवाया जा रहा है कि अग्नीवीरों को हम पुलिस की नौकरी में आरक्षण देंगे। चलिए मान लेता हूं कि नौजवानों को आपने 4 साल के लिए व्यस्त कर दिया, लेकिन पहले दिन से ही उनके दिमाग में ये चल रहा होगा कि 4 साल बाद मेरे भविष्य का क्या होगा?

मैं मानता हूं कि अग्निपथ के अग्निवीर योजना भी सही हो सकता था लेकिन इसके साथ ही ये शर्त लगा देना की अब सेना में पूर्व की भर्ती प्रणाली को खत्म कर देना उचित नहीं। हालांकि इसके साथ ही 25 फीसदी अग्नीवीरों को परमानेंट किए जाने की बात भी की जा रही है। देश में कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारियों को रखने का जो ये रीति रिवाज अब ट्रेंड बन चुका है वह आने वाले दिनों में नौजवानों के भविष्य के लिए घातक सिद्ध होने वाला है। मानसिक तनाव यानि मेंटल स्ट्रेस का सबसे बड़ा कारण यही बनने वाला है। प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले अधिकांश कर्मचारी इस हालात को तो झेलते ही थे अब सरकारी कर्मचारियों के ऊपर भी इस तरह का मानसिक दबाव बनाया जाता रहेगा।

मेरा एक प्रश्न है, अगर देश के सरहद की सुरक्षा भी कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी कर सकते हैं तब तो इस देश को राजनीतिक तौर पर भी कॉन्ट्रैक्ट पर चलाने के लिए दे देना चाहिए। अगर देश के प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली भी किसी MNC के CEO की तरह है जो नफा-नुकसान को देखते कठोर से कठोरतम फैसले ले सकता है तब क्यों नहीं किसी मुनाफा कमाने वाली कंपनी के CEO को ही देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाए। उसके सामने भी लक्ष्य निर्धारित हो और परफॉर्म नहीं करने पर उसको भी हटा दिया जाए। व्यूरोक्रेसी, पॉलिटिक्स और देश के नीति निर्धारकों को भी कॉन्ट्रैक्ट पर ही दे देना उचित रहेगा।

(लेखक पत्रकार हैं।)