बीते कुछ समय से किसी का हाल चाल पूछिए, बातचीत में यही निकलकर आएगा – कैसे जीतेंगे हम कोरोना (COVID19) रूपी इस महाजंग से? सारा देश त्रस्त है। व्यवस्थाएं पूरी तरह से चरमरा चुकी है। संघीय व्यवस्था कागजों में भले ही हो, लेकिन राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूरवर्ती गांव तक एक जैसा ही कोहराम है। यह कोहराम है कोरोना का। इंसान का सबसे बडा महायुद्ध है कोरोना से।
अब जो स्थिति बन गई है उसमे भारत में प्रतिदिन लाखो व्यक्ति इसके शिकार होते हैं। हजारों में उनकी मौत होती जिसके कारण शमशान और कब्रिस्तान में स्थान कम पड़ गए है। परिणाम स्वरूप उन्हे मुखाग्नि दिए बिना अथवा मुखाग्नि देकर बड़ी छोटी नदियों कें हवाले कर दिया जाता है, जिसे चील और कौए अपना उपयुक्त आहार बनाते हैं । इस मामले में सरकार ने अब नदियों की ओर ध्यान दिया है, जिसके कारण एक एक दिन में एक एक शहर 75 – 80 शव (Dead Body) निकाले जा रहे है । अभी कुछ दिन पहले ही बक्सर , उन्नाव और पटना में गंगा नदी (Ganga River) से शव निकालकर अंतिम संस्कार किए गए ।
जिस गंगा (Ganga) नदी को साफ करने के लिए सरकार ने एक मंत्रालय बनाया अरबों रुपए गंगा को साफ करने में लगाए उस गंगा की यह दुर्दशा कैसे होती रही और सरकारी महकमा उसकी सुक्षा के लिए कहां गायब रही यह बात समझ में नहीं आती। मेरे मन में यह सवाल है और मन दुखी भी है कि आखिर, गंगा कितनी गंदगी को साफ करेगी और कब तक ??? कहा यह जाता है कि गंगा ही नही किसी भी नदी में मृतक को फेंककर परिजन भाग जाते हैं । ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई शव नदी में बहा रहा है और नदी की सुरक्षा में तैनात उसके पर्यवेक्षक क्या करते रहते है। जो विभत्स फोटो कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए है, उसे देखकर मन खिन्न हो जाता है और सरकार की लापरवाही पर उन्हे कोसना पड़ता है।
वैसे इस आपदा को प्राकृतिक आपदा कहना बिलकुल नाइंसाफी है, क्योंकि विश्वमानवता का सबसे बड़ा शत्रु कहा जाने वाला चीन के लिए तो यही कहा जा रहा है जिसकी वजह से इस महामारी से आज भारत ही नहीं विश्व उलझा हुआ है । हम कहीं और की बात को बाद में करेंगे , लेकिन जो भयावह स्थिति भारत में बन गई है उससे अधिक दुखदाई मानव सभ्यता के लिए और क्या हो सकता है । वैसे मृतकों को मुखाग्नि देकर जल प्रवाहित करना भारत में लोग करते रहे है, लेकिन अब जब से अंधाधुंध मौतों का सिलसिला इस महामारी में शुरू हुआ है उसमे ऐसी भयावह स्थिति बन गई है की अब तो मुखाग्नि देने भी अपने परिवार के सदस्य मृतक के पास नही होते। क्योंकि इस महामारी के लिए देखा यह गया है कि जो भी कोरोना के मरीज के आसपास होता है, उसपर विषयुक्त कीटाणु टूट पड़ता है।
पिछले वर्ष 2020 में कामगार मजदूरों का जो हाल हुआ था, यदि फिर कहीं अचानक लॉकडाउन (Lockdown) लगा तो वही उनकी दशा फिर से होने वाली है कि बच्चा गोदी में और सर पर गृहस्थी का सामान रखकर हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हुए अपने प्राणों को अर्पित कर देते थे । इसके बावजूद हम इतने दिनो में उनके लिए कोई उनकी सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं कर सके। यह स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है । जो स्थिति ऑक्सीजन (Oxygen) और अन्य प्राण रक्षक दवाओं की हमारे यहां हो गई है, जिसमें ब्लैक मार्केटिंग करने वाले तथाकथित लोग आज भी स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं। सौ दो सौ के दबाओं का दाम कई गुना बढ़ाकर रोगियों के परिजनों से वसूलते हैं। देश का दुर्भाग्य यह है कि अब तो अपने ही देश में बड़े बड़े तथाकथित राजनेता एंबुलेंस की भी चोरी करने लगे है, लेकिन क्या मजाल की आप उन पर इस आपातकाल में भी अंगुली उठा सकते हैं।