नई दिल्ली। जब बात मां (Mother) की आती है तो उन्हें सुपरवुमन ही कहना ठीक होगा। वह कई भूमिकाएं एक साथ निभाती हैं। फिर चाहे वह भूमिका एक गुरु, शिक्षक, गृहिणी, कामकाजी, बजट कंट्रोलर, शेफ और अच्छी दोस्त के साथ न जाने कितनी ही हो, हर भूमिका में परफेक्ट होती हैं। हर एक का अपनी मां के साथ नाता बहुत खास होता है और उसका जश्न मनाना व परिवार में एक अन्नपूर्णा, रक्षक और विश्वासपात्र की भूमिका के लिए उनका सम्मान करना बेहद खास पल है।
बीते साल भी से अधिक समय से हम और आप कोरोना काल से गुजर रहे हैं। इस काल को जिस सूझबूझ और शिद्दत के साथ सबको सुरक्षित रखते हुए मां ने रखा हुआ है, शायद कोई दूसरा उसके करीब भी नहीं है। अपने बच्चे को किसी परेशानी में देखकर मां का मन व्याकुल हो उठता है। जरा सा बुखार हुआ कि नहीं, मां व्याकुल हो उठती हैं। इस बार तो कोरोना का कहर है। मां हर संकेंड अपने बच्चों की चिंता में होती हैं। जरा सी अनहोनी के अंदेशा मात्र से वह पहले से अधिक सतर्क हो जाती है।
इस संबंध में निमहांस बेंगलुरू के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और पूर्व डीन डाॅक्टर संतोष कुमार चतुर्वेदी कहते हैं कि मां के लिए बीते एक साल से पूरा रूटीन बदल गया हैं। पहले मां बच्चों के स्कूल जाने के बाद अपना काम करती थी। लेकिन, कोरोना काल में उन्हें सबसे अधिक ध्यान अपने बच्चों को देना पड रहा है। बच्चे जब आॅनलाइन क्लास करते हैं, उस समय भी मां को कंशस रहना होता है। बच्चों को गाइड करना होता है। इससे मां पर एक नया दबाव आया है। इससे मां के अपने समय में कमी आई है। मां न तो अपना निजी ध्यान रख पाती हैं और न ही घर का ख्याल पहले की तरह रख पाती हैं। डाॅक्टर चतुर्वेदी कहते हैं कि घर में काम करने के तौर-तरीकों में हर मां को बदलाव करना पड है। यदि कोई मां वर्किंग हैं, तो उनके लिए और भी अधिक प्रेसर है। उन्हें घर के काम, बच्चों के साथ के साथ अपने आॅफिस के काम भी करने हो रहे हैं। हर मां को अपने कामों की प्राथमिकता तय करनी पड रही है। इसमें कहीं न कहीं उनका निजी जो समय था, उसमें कमी आई है। इसका असर यह हुआ है कि मां पर अधिक प्रेशर पडा है।
एक सवाल के जवाब में डाॅक्टर संतोष कुमार चतुर्वेदी (Dr Santosh Kumar Chaturvedi) कहते हैं कि बीते साल जब कोरोना को लेकर लाॅकडाउन शुरू हुआ था, उस समय लोगों ने यह नहीं सोचा था कि यह इतना लंबा चला था। स्टे होम और स्टे सेफ का नारा जरूरी है। लेकिन, अभी के समय में मैं कह सकता हूं कि घर में हर मां का अभी खान-पान बिगड गया है। उनको अपने लिए आराम करने का समय नहीं मिलता है। इसका कहीं न कहीं तो साइड इफैक्टस होगा ही। यदि उनका घर अपेक्षाकृत छोटा है, तो दिन में कुछ पल आराम करने का स्थान तक नहीं मिल पाता है। पहले बच्चे को स्कूल जाने के बाद और पति के आॅफिस जाने के बाद वो टीवी आदि देखती थी। पडेासी से बातें करती थी। लेकिन, कोरोना में सबकुछ रूक गया है। यह रूकावट स्ट्रेस तो पैदा करेगा।
डाॅक्टर संतोष कुमार चतुर्वेदी (Dr Santosh Kumar Chaturvedi) कहते हैं कि हर व्यक्ति के लिए मनोरंजन के साधन और उसके लिए समय होना बेहद जरूरी है। जब कोई भी मनोरंजन के साधनों के साथ होता है, तो उसका स्ट्रेस कम होता है। कोरोना ने लोगों से यह छीना है, खासकर घर की महिलाओं से। ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों को महिलाओं को स्पेस देना होगा। उनके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना होगा। सभी को समझना होगा कि अभी कोरोना काल में सबसे अधिक स्ट्रेस (Stress) घर की महिलाओं पर पडा है।
यह सच है कि हम सभी इस समय में शायद सबसे कठिनतम दौर को देख रहे हैं, कोरोना (COVID19) महामारी ने हमारी दिनचर्या से लेकर सबकुछ बदल कर रख दिया है। कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जिन्होंने इस कोरोनाकाल में अपनी जिम्मेदारियों का भरपूर निर्वहन किया है। हम हमारी जिम्मेदारी है कि सभी अपनी मां के स्ट्रेस को कम करने में उनका साथ दें। यही मदर्स डे (Mothers Day) का उपहार होगा।