नई दिल्ली। शोधकर्ताओं ने एक ऐसी सूक्ष्म अणु प्रक्रिया की महत्वपूर्ण खोज की है जिसमें वृद्धि कारकों को इकट्ठा रखने, सेल विविधताओं के प्रसार, अस्तित्व, चयापचय और आवागमन को नियमित करने के साथ-साथ कैंसर को रोकने में सक्षम एंजाइम संरचना से संबंधित एक सेल सरफेस रिसैप्टर शामिल है।
वीईजीएफआर1 नामक यह एंजाइम उदाहरण के तौर पर हार्मोन जैसे एक लिगैंड की अनुपस्थिति में इसे स्वयं बढ़ने से रोकता है। यह शोध उन अणुओं का उपयोग करके कोलन और गुर्दे के कैंसर के लिए चिकित्सा समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण रूप से मार्ग प्रशस्त कर सकता है जो मुख्य तौर पर वीईजीएफआर1 की निष्क्रिय अवस्था को स्थिर करते हैं।
रिसेप्टर टायरोसिन किनेसेस (आरटीके) जैसे सेल सरफेस रिसेप्टर्स बाह्यकोशिकीय संकेतों (विकास कारकों जैसे रासायनिक संकेतों से, जिन्हें आमतौर पर लिगैंड के रूप में संदर्भित किया जाता है) को विनियमित सेलुलर प्रतिक्रिया में बदलने के लिए महत्वपूर्ण हैं। बाह्यकोशिकीय रिसेप्टर्स से लिगैंड वाईडिंग इंट्रासेल्युलर युग्मित एंजाइम (टायरोसिन किनेसेस) को सक्रिय करता है। सक्रिय एंजाइम, बदले में, कई टायरोसिन अणुओं में फॉस्फेट समूह जोड़ता है जो सिग्नलिंग कॉम्प्लेक्स को एकत्र करने के लिए एक एडेप्टर के रूप में कार्य करते हैं। सिग्नलिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण सेल वृद्धि, विकास और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया जैसे विविध सेलुलर कार्यों को नियंत्रित करता है। लिगैंड की अनुपस्थिति में आरटीके की सहज सक्रियता अक्सर कैंसर, मधुमेह और स्व-प्रतिरक्षित विकारों जैसे कई मानव विकृति से जुड़ी होते हैं। शोधकर्ता यह पता लगा रहे हैं कि एक कोशिका एंजाइम की ऑटोइनहिबिटेड स्थिति को कैसे बनाए रखती है और मानव विकृति के बढ़ने के दौरान इस तरह का ऑटोइनहिबेशन क्यों होता है।
कोलकाता के भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं ने वैस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर (वीईजीएफआर) नामक एक ऐसे आरटीके की जांच की। रिसेप्टर्स का वीईजीएफआर परिवार नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण प्रक्रिया का प्रमुख कारक है।
यह प्रक्रिया भ्रूण के विकास, घाव भरने, ऊतक पुनर्जनन और ट्यूमर बनने जैसे कार्यों के लिए आवश्यक है। वीईजीएफआर को लक्षित करके विभिन्न घातक और गैर-घातक बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
शोधकर्ता इस तथ्य से हैरान हैं कि इस परिवार के दो सदस्य वीईजीएफआर 1 और वीईजीएफआर 2 काफी अलग तरह से व्यवहार करते हैं जबकि वीईजीएफआर 2, नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया को विनियमित करने वाला प्राथमिक रिसेप्टर अपने लिगैंड के बिना, स्वतः सक्रिय हो सकता है, परिवार का दूसरा सदस्य वीईजीएफआर 1 कोशिकाओं में अत्यधिक क्रियाशीलता होने पर भी स्वतः सक्रिय नहीं हो सकता। यह एक मृत एंजाइम वीईजीएफआर 1 के रूप में छिप जाता है और वीईजीएफआर 2 की तुलना में अपने लिगैंड वीईजीएफ-ए से दस गुना अधिक निकटता के साथ मिल जाता है। यह लिगैंड वाईडिंग एक क्षणिक काइनेज (एंजाइम द्वारा शरीर में रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज करना) सक्रियण को प्रेरित करता है।
इस बात की जांच करते हुए कि परिवार का एक सदस्य इतना सहज रूप से सक्रिय क्यों होता है और दूसरा ऑटोइनहिबिटेड क्यों होता है, आईआईएसईआर कोलकाता के डॉ. राहुल दास और उनकी टीम ने पाया कि एक असाधारण आयनिक लैच, जो केवल वीईजीएफआर1 में मौजूद है, बेसल अवस्था में काइनेज को ऑटोइनहिबिटेड रखता है। आयनिक लैच जक्सटामेम्ब्रेन सेगमेंट को काइनेज डोमेन पर हुक करता है और वीईजीएफआर1 के ऑटोइनहिबिटेड कंफर्मेशन को स्थिर करता है।
वीईजीएफआर 1 की ऑटोइनहिबिटेड अवस्था की प्रक्रिया की खोज करते हुए शोधकर्ताओं ने वीईजीएफआर1 गतिविधि को मॉड्यूलेट करने में सेलुलर टायरोसिन फॉस्फेट की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रस्ताव दिया। आईआईएसईआर कोलकाता में एनालिटिकल बायोलॉजी फैसिलिटी में डीएसटी-एफआईएसटी समर्थित आईटीसी और स्टॉप्ड-फ्लो फ्लोरीमीटर के साथ किए गए शोध ने कैंसर में होने वाली नई रक्त वाहिकाओं (एंजियोजेनेसिस) के वीईजीएफआर1-मध्यस्थ रोगात्मक गठन को विनियमित करने में फॉस्फेट मॉड्यूलेटर की चिकित्सीय क्षमता का भी उल्लेख किया।
नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित यह खोज वीईजीएफआर सिग्नलिंग के स्वयं सक्रिय होने के कारण रोग संबंधी स्थितियों के बारे चिकित्सीय समाधान निकालने की दिशा में नए मार्ग प्रशस्त कर सकती है। ऑटोइनहिबिटेड अवस्था को लक्षित करने वाले छोटे अणुओं में मानव कोलोरेक्टल कार्सिनोमा और गुर्दे के कैंसर जैसे कैंसर के इलाज की अधिक क्षमता होगी।