Navratri 2021: आज से चैत्र नवरात्रि शुरू, आप भी जानें इसका महत्व

नवरात्र चल रही है। यह देश शक्ति के नाम पर दुर्गा को पूजता है। यह देश संपदा, समृ़ि़द्ध, दौलत, ज्ञान, विज्ञान, विवेक के रूप में महिला को पूजता है। हर कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती पूजन से होती है।

नई दिल्ली। मंगलवार से चैत्र नवरात्रि (Navratri) शुरू हो गया है। कोरोना (COVID19) काल में मंदिरों में जाने को लेकर कुछ प्रतिबंध हैं। ऐसे में ज्यादा लोग अपने घरों में ही मां दुर्गा की पूजा आराधना कर रहे हैं।

रोजमर्रा के जीवन में हम और आप बहुत कुछ करते हैं। मोबाइल हाथ में हो, तो झूठ भी बोलने से परहेज नहीं करते हैं। पूरे दिन भागम भाग। ऐसे में भारत जैसे उत्सव प्रधान देश में हमें कई बार स्वयं को समझने का समय मिलता है। ऐसा ही समय है नवरात्रि। आमतौर पर साल में दो बार नवरात्रि मनाया जाता है। चैत्र और शारदीय। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की शुरूआत आज से हो रही है।

शक्ति शब्द में ‘श’ अक्षर ऐश्वर्य का और ”क्ति ”शब्द पराक्रम का प्रतीक है अतः ऐश्वर्य और पराक्रम दोनों को ही प्रदान करने वाली महिमा को ‘शक्ति’ कहते हैं।यथा –
” ऐश्वर्यवचनः शश्चक्तिः पराक्रम एव च तत्स्वरूपा।
तयोर्दात्री सा शक्तिः परिकीर्तितः।।”
( देवीभागवत )

यही वज़ह है की शक्ति की साधना साधक को एक ओर जहाँ वैभव के चरमोत्कर्ष की ओर ले जाती है, वहीँ उसके पराक्रम और व्यक्तित्व में भी क्रांतिकारी सुखद बदलाव परिलक्षित होते हैं।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक वासंतिक नवरात्र एवं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्र(Navratri)। इस दौरान प्रकृति में परिवर्तन स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगता है। हमारे तत्वदर्शी ऋषियों -मनीषियों द्वारा ऋतु परिवर्तन की इस बेला में नव अन्न यानी नयी कृषि उपज के हवन के द्वारा मां शक्ति की साधना-आराधना का विधान बनाया जाना उनकी अनुपम जीवन दृष्टि का परिचायक है।

मेरी व्यक्तिगत राय है कि नवरात्रि में जब हम देवी के नौ रूपों की पूजा और अराधना करते हैं, तो स्वयं को तलाशने की कोशिश करते हैं। मानो जैसे खुद को रिचार्ज होना हो। शक्ति के आवाहन का पर्व है। शक्ति के अवतरण के लिए आधारभूमि तैयार करने का साधना काल है। शास्त्रीय मत से मनुष्य में मुख्य रूप से तीन प्रवृतियां होती हैं- सात्विक, राजस एवं तामस। जब तामसिक प्रवृत्तियां प्रबल होती हैं तो मनुष्य उदात्त दैवी गुणों से, सात्विक वृत्तियों से दूर हो जाता है, उसमें पाशविकता प्रबल हो उठती है।

सच भी है कि शक्ति के बिना लोकमंगल का कोई भी प्रयोजन सफल नहीं हो सकता। यही वजह है कि हमारे यहां शक्ति के बिना शिव को ‘शव’ की संज्ञा दी गयी है। शक्ति ही चेतना है, सौन्दर्य है, इसी में संपूर्ण विश्व निहित है। देवी दुर्गा वस्तुत: शक्ति की अपरिमितता की द्योतक हैं। वे दुर्गति नाशिनी हैं। दुर्ग का सामान्य अर्थ किला भी है। जिस तरह युद्ध के संकट काल में दुर्ग में रहने वाले लोग सुरक्षित बच जाते हैं, ठीक उसी तरह मां दुर्गा की शरण में आये हुए की दुर्गति कदापि नहीं हो सकती। दुर्गा शब्द का यही निहितार्थ है।