काम न काज का , क्या संसद रह गया है बस नाम का

सामान्य नागरिकों का यह कहना है कि हमारा भारत लोकतांत्रिक देश है जिसको हमारे संविधान निर्माताओं ने बड़ी गहनता से विचार करने के बाद देश को सौंपा है, जिसे अब सत्तारूढ़ नेतृत्व ने लगभग खत्म करने का माहौल बना दिया है ।

जिस प्रकार से 19 जुलाई से संसद में हंगामा और गतिरोध देखने को मिल रहा है, उसके बाद तो यही लग रहा है कि 2021 के संसद का मानसून सत्र बिना किसी काम काज के हंगामे में ही निकल जाएगा । मानसून सत्र के शुरू होते ही विपक्ष सरकार से मांग करने लगे की पेगासस जासूसी मामले की सर्वदलीय संसदीय समिति से जांच कराई जाए अथवा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अगुवाई में जांच समिति का गठन किया जाय और किसान जो महीनों से जगह जगह अपनी तीन कानून को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं, उसपर निर्णय लिया जाए । उनका यह भी कहना है कि जब तक पेगासस जासूसी मामले की जांच और किसानों पर लादे गए तीनां काले कानून को रद्द नहीं किया जाता , वह संसद को चलने नही देंगे ।

अभी पिछले सप्ताह जब से पेगासस स्पाइवेयर जासूसी प्रकरण का मामला सामने आया है, उससे देश में भारी उथल पुथल मचा हुआ है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी ने इसको लेकर संसद परिसर में धरना भी दिया। कहा कि उनका भी फोन टैप हुआ है। विपक्षी सासंदों का विरोध सदन और सदन के बाहर जारी है। संसद परिसर में महात्मा गांधी के प्रतिमा के सामने रोज सांसदों को हाथों में बैनर और तख्ती लिए देखा जा सकता है।
इस प्रकरण के बाद पत्रकार भी दो गुटों में विभाजित हो गए हैं । एक पक्ष अपने को पाक – साफ मानते हुए कहता हैं कि जो दागी है उसे ही डर होना चाहिए । दूसरा पक्ष और उनके स्तंभकार और सत्तारूढ़ दल का प्रतिनिधित्व करने वाले पत्रकारों का कहना है इससे देश की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं फिर गृह मंत्री से इस्तीफा क्यों मांगा जा रहा है ? राहुल गांधी उनसे इस्तीफा क्यों मांग रहे हैं ?

मेरा मानना है कि एक तरह से यह ठीक है। हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार हमारे संविधान ने अपने नागरिकों को दिया, परंतु अभिव्यक्ति का अर्थ यह नहीं होता कि आप अपने विवेक को ताक पर रख दें और विरोधियों के प्रति अपना कुतर्क देकर समाज को भ्रमित करें । यह बात हर किसी को पता है कि देश की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा गृहमंत्री का होता है इसी कारण उनके अधीन रॉ , सी बी आई तथा जितने भी नागरिक सुरक्षा के विभाग होते हैं उन सबका नेतृत्व गृह मंत्रालय द्वारा गृहमंत्री के अधीन होता है। तो फिर पेगासस का जो गंभीर प्रकरण राष्ट्रीय सुरक्षा को भेदकर देश में तूफान खड़ा कर दिया है उसे किसकी कमजोरी जनता कहेगी और विपक्ष क्यों नही सुलगेगा ? फिर यह कहना की विपक्षी नेता बिना सबूत के आसमान में लाठी भांज रहे हैं जिसका कोई लाभ उन्हे मिलने वाला नही है । तो , भारतीय सत्तारूढ़ दल यह क्यों नहीं मानने को तैयार हैं कि यह पर्दाफाश केवल भारतीय मीडिया द्वारा ही नहीं हुआ है, बल्कि विश्व के कई बड़े मीडिया समूह द्वारा किया गया है – फिर उन्हें कैसे झुठलाया जा सकता है । यदि हम विश्व के सारे मीडिया को ही दोषी और झूठा करार दे देंगे, तो इसका कोई क्या जबाव दे सकता है । यदि कुछ हुआ ही नहीं और मीडिया अकारण हल्ला करके देश की शांति व्यवस्था को भंग कर रहा है तो इसकी सत्यता की भी जांच कौन करेगा ? निश्चित रूप से इसकी जांच करने का वैधानिक अधिकार केवल सरकार को हैं फिर सरकार इसकी जांच क्यों नहीं करा रही है। जांच में यह आना -कानी क्यों ? फ्रांस और इसराइल ने अपने यहां इस मुद्दे की जांच कराने का निर्णय लिया है।

इस बात को समझने का बहुत प्रयास किया कि यदि पेगासस जासूसी प्रकरण जैसा कोई कांड भारत में हुआ है तो उसकी जांच कराने को सरकार तैयार क्यों नहीं हो रही है ? संदेह इसलिए होता है कि एनएसओ नामक इजराइली कंपनी जो पेगासस सॉफ्टवेयर बेचती उसका कहना है कि वह अपना सॉफ्टवेयर केवल सरकार को ही बेचती है , वह भी इसलिए की वह देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसका प्रयोग करें । अब विपक्ष का कहना है कि यदि इसराइल की उस कंपनी का कहना माना जाए तो फिर भारत सरकार इस बात को स्वीकार क्यों नहीं करती और इसका जवाब भारतीय नागरिक को क्यों नहीं देती । यदि भारत सरकार ने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया तो फिर भारतीय सुरक्षा को भेदकर यह सॉफ्टवेयर सैकड़े लोगों के फोन किस कारण से कैसे बिना अनुमति के टैप किए गए ? इसे कोई कैसे स्वीकार कर लेगा की पेगासस भारत में घुसकर स्वतः कैसे काम करने लगा ? तर्क तो लोकतंत्र का नियम है ।