क्यों करना पड़ रहा है छोटी उम्र में अभी बड़ा संघर्ष

कोरोना में आपकी जिम्मेदारी सिर्फ वैैक्सीन व अन्य प्रोटोकाॅल नहीं हैं। पेरेंटिंग भी है। बच्चों के सामने कई प्रकार की दिक्कतें हैं। केवल अपनी ही आप नहीं सोचें। उनकी भी तकलीफ को समझें। जानिए इस स्टोरी में ।

नई दिल्ली। सृजन बीते कुछ दिनों से उदास और गुमसुम सा है. ऑनलाइन क्लासेज बंद हैं. लॉक डाउन ने दरवाजों पर ताले लगवा दिए हैं. माँ तो हाउस मेकर हैं मगर पापा भी आजकल वर्क फ्रॉम होम पर हैं. दिल्ली अनलाॅक तो हुई, लेकिन कार्यालय रोज नहीं जाना होता है।

यूँ तो सब घर पर साथ हैं मगर सब अपने में कैद, अंदेशों और आशंकाओं से घिरे हुए. पिछले साल से ऐसा ही चल रहा है मगर बीते कुछ महीनो में हालात बेहद बुरे हो चुके हैं. डर का साया सबके अंदर गहराता जा रहा है. मगर बच्चे जिनका कोमल मन पहले से ही अनगिनत सवालों से जूझता रहता है, आज और उलझ चुका है. उनके सवालों का जवाब इस बार न तो सुपरमैन पापा के पास है और न ही हर मुश्किल का चुटकिओं में समाधान करने वाली माँ के पास.

इस संदर्भ में बाल मनोचिकित्सक डॉ. स्नेहलता का कहना है कि घर के बड़े लोगों की तकलीफ दिखती है और समझ में भी आती हैं मगर बच्चों के मन में क्या चल रहा है समझना थोड़ा मुश्किल होता है. पेरेंट्स को यही लगता है की बच्चे खेल नहीं पा रहे, दोस्तों से मिल नहीं पा रहे, बाहर नहीं निकल पा रहे यही उनकी मुख्या समस्या है. मगर इन सब बातों के साथ जो अनिश्चय है, हर तरफ जो मौत का दृश्य दिखाई दे रहा है वो बच्चों के अंतर्मन में कहीं गहरे समाते जा रहा है.

डॉ. स्नेहलता कहती हैं कि बचपन में मन पर पड़नेवाला प्रभाव जीवन भर साथ रहता है. अगर इस मुश्किल दौर में बच्चों के भीतर कोई नकारात्मक सोच बैठ जाती है तो जिंदगी भर उससे बहार निकलने के लिए जद्दोजेहद करना पड़ेगा.

आप ध्यान रखें कि प्रियजनो के खोने का डर, खुद के जीवन को लेकर डर ये सब बातें बच्चों के मनोस्थिति को प्रभावित कर रहे हैं. इसकी वजह से बच्चों में चिड़चिड़ापन, उदासी, घबराहट जैसी समस्या देखी जा रही है. माता पिता भी कभी कभी अपना फ्रस्ट्रेशन बच्चों पर निकालते हैं, जो सही नहीं है. हमारे बच्चों को आज हमारी सबसे ज्यादा जरूरत है. हम ही उनके शिक्षक हैं दोस्त हैं. इसलिए हमे अपने व्यवहार में बदलाव लाना पड़ेगा. हमे सोशल मीडिया, वॉट्सएप्प से थोड़ी दूरी बनानी होगी. बच्चों को भी इनसे दूर रखना होगा. इंडोर गेम्स खेलने से बच्चों का मन बेहतर होगा. घर के रूटीन में बदलाव से ताजगी महसूस होगी. इसके लिए कभी कभी पापा को भी खाना बना लेना चाहिए. बच्चो के होमवर्क और स्टडीज में मदद करनी चाहिए. और दिन भर न्यूज देखने से भी दूर रहना चाहिए. असहज करने वाली सूचना और दृश्य डर भी पैदा करते हैं और नकारात्मक मनोवृत्ति भी उत्पन्न करते हैं.