जो लोग यह मान कर खुश है कि तमिलनाडु की राजनीति में शशिकला ने संन्यास की घोषणा कर दी। उसका लाभ उन्हें मिलेगा। उन लोगों को अभी धैर्य से काम लेना होगा। जयललिता के बाद शशिकला ही तो वहां के सियासत की एक धुरी रही। जयललिता की सबसे भरोसेमंद। आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में चार साल जेल की सजा काटने के बाद राजनीति की वही सुप्रीम लीडर अगर कह रही हैं कि “मैं किसी के लिए बाधा नहीं बनना चाहती, जरुरी है कि पार्टी एक होकर दुश्मन नंबर एक डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कषगम) से अप्रैल माह में होने वाले विधानसभा चुनावों में लड़े और ऐन इसी कारण से राजनीति से मैंने अपने को दूर रखने का फैसला किया है” तो उनका यह कहा चुनावी-चर्चा के पंडितों को आसानी से हजम नहीं हो रहा।
असल में, तमिलनाडु की राजनीति की “अम्मा” जयललिता की मौत के बाद उनकी जिगरी दोस्त वी के शशिकला ने अपने को सत्ताधारी अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) का पूराची थलाइवी (सुप्रीम लीडर) साबित किया था। जयललिता की मौत के तत्काल बाद अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम के भीतर उत्तराधिकार की वैसी कोई लड़ाई नहीं चली जैसी एम.जी. रामचंद्रन की मृत्यु के बाद चली थी। वीके शशिकला का इंतजाम पुख्ता था। विरोध की तमाम गुंजाइशों को खत्म करके एआईएडीएमके के भीतर जयललिता की एकलौती वारिस बनकर उभरी थीं शशिकला।
बता दें कि जेल जाने से पहले शशिकला जयललिता के समाधि-स्थल(द्रविड़ राजनीति की परंपराओं के परंपराओं के अनुरुप जयललिता का शवदाह नहीं हुआ, उन्हें दफनाया गया और एमजी मेमोरियल, मरीना बीच पर यह जगह एक स्मारक के रुप में है) पर पहुंची थीं और वहां धरती को इस अंदाज में तीन बार थपथपाया था मानो अपने नेता और दोस्त की स्मृतियों से कोई वादा कर रही हों। शशिकला के इस कृत्य को एक प्रतिज्ञा के रुप में देखा गया कि वे राजनीति में पुनर्वापसी करेंगी।
दरअसल, जेल से छूटी शशिकला के पास राजनीति में अपनी धमाकेदार वापसी के विकल्प ही बहुत कम थे। उन्होंने उम्मीद बांधी होगी कि AIADMK में उन्हें पूरे सम्मान के साथ वापस बुला लिया जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शशिकला के जेल जाने के बाद से एआईएडीएमके के भीतर बहुत कुछ बदला है। जेल जाने से पहले बागी तेवर के नेता ओ पन्नीरसेल्वम को शशिकला ने मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया। उन्होंने इडापड्डी के पलानिस्वामी को अपने विश्वासपात्र के रुप में मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठाया। लेकिन बाद के वक्त में पलानिस्वामी ने खुद ही पन्नीरसेल्वम से हाथ मिला लिया और पार्टी के शीर्ष पद से दोनों ने शशिकला को बदखल कर दिया।
शशिकला के लिए राजनीति में वापसी के लिहाज से ये चुनावी परिदृश्य घाटे का सौदा है। अभी अगर वो एआईएडीएमके में कदम रखती हैं तो पार्टी हार का ठीकरा उनके ऊपर फोड़ सकती है। ऐसे में शशिकला के लिए आगे की राह और भी मुश्किल होगी। एआईएडीएमके की हार की सूरत में उनके लिए राह कहीं आसान है। बहुत संभव है, उन्हें पार्टी के तारणहार के रुप में वापस बुला लिया जाये और उनकी अगुवाई में पार्टी अपने को एक विश्वसनीय विपक्ष के रुप में खड़ा कर सके।