Shooter : यूं नहीं कोई लगाता निशाना अभिषेक वर्मा की तरह, करनी होती है पूरी मेहनत

25 साल की उम्र में पहली बार एक खेल में हाथ आजमाने के बारे में सोचने वाला अभिषेक आज हर खेलप्रेमी के लिए एक माॅडल बन चुका है। अभिषेक को अब तोक्यो ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा के पुरुष वर्ग में अपने हुनर को दिखाना है।

नई दिल्ली। यदि जज्बा और जुनून के साथ किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत किया जाए तो एक न एक दिन मंजिल जरूर मिलती है। यह बात सदियों से कही और सुनी जाती है। एक बार और इसे साबित किया है अभिषेक वर्मा (Abhisekh Verma) ने। निशानेबाजी की दुनिया में एक चमकता सितारा, जिसने तोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में जाने का अपना टिकट पक्का कर लिया है।

बता दें कि चार साल तक इंजीनियरिंग और तीन साल तक कानून की पढ़ाई करने के बाद अभिषेक वर्मा ने निशानेबाजी (Shooting) में हाथ आजमाने का फैसला किया। उस समय उनके इस निर्णय के साथ अधिक लोग नहीं थे। अधिकतर लोगों ने उन्हें इंजीनियरिंग पूरी करने और नौकरी करने की सलाह दी। बताया जाता है कि सबसे अधिक उनके पिता ने उन पर भरोसा किया था और अभिषेक ने अपने पिताजी से वादा किया था कि वे खुद को सही साबित करेंगे। हुआ भी ऐसा ही। अभिषेक ने केवल एक वर्ष में भारतीय टीम में जगह बनाने का अपने पिता से किया वादा निभाया, और उसके बाद केवल पांच साल में में विश्व वरीयता क्रम में शीर्ष स्थान हासिल करने के साथ ही तोक्यो ओलंपिक का टिकट भी पक्का कर लिया।

अब आप अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी संघ की आधिकारिक साइट पर नजर डालेंगे, तो 10 मीटर एयर पिस्टल (Air Pistal) स्पर्धा के पुरुष वर्ग की वरीयता सूची में इनका नाम आ चुका है। विश्व वरीयता क्रम में 1589 अंकों के साथ अभिषेक वर्मा का नाम पहले स्थान पर लिखा दिखाई देता है। उसके ठीक नीचे 1500 अंकों के साथ सौरभ चैधरी का नाम है। इन दोनों के नाम के सामने चमकती तिरंगे की छवि हर भारतीय का सिर गर्व से उंचा कर देता है। अब तो देशवासियों को भरोसा हो गया है कि तोक्यो ओलंपिक में कुछ सुनहरी सौगात मिलने की उम्मीद जगाती है।

बता दें कि एक अगस्त 1989 को हरियाणा के पानीपत में अभिषेक वर्मा (Abhisekh Verma) का जन्म हुआ। उनके पिता पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में जज हैं। 2017 में जब उनके पुत्र ने वकालत की तरफ जाने की बजाय शूटिंग रेंज की तरफ कदम बढ़ाने का फैसला किया तो पिता ने उन्हें रोका नहीं। लेकिन, पारिवारिक लोग बताते हैं कि पिता ने ये वादा जरूर ले लिया कि अगर एक साल में भारतीय निशानेबाजी टीम में जगह नहीं बना पाए, तो अदालत की राह पकड़नी होगी।

अपने एक इंटरव्यू में अभिषेक वर्मा ने कहा था कि किसी औपचारिक प्रशिक्षण के बिना ही वह शूटिंग (Shooting) में बहुत अच्छे थे और उन्हें पूरा विश्वास था कि अगर सही मार्गदर्शन मिला तो उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। भोंडसी, गुरुग्राम की एकलव्य शूटिंग अकादमी में उन्होंने ट्रायल दिया और कोच ओमेन्द्र सिंह ने उनकी प्रतिभा को तत्काल पहचान लिया। उस समय गुरु और शिष्य में से कोई यह नहीं जानता था कि अभिषेक विश्व कप स्पर्धाओं और एशियाई कप में स्वर्ण पदकों की सीढ़ी बनाकर विश्व में पहले नंबर के खिलाड़ी बन जाएंगे।

अभिषेक बताते हैं कि 12 महीने बस वह थे, शूटिंग रेंज थी और उनकी निशानेबाजी थी। इस दौरान न उन्हें खाने का होश था और न सोने का। सुबह सात बजे बिना कुछ खाए रेंज पर पहुंचते और शाम तक अभ्यास करते। बस एक ही धुन कि निशानेबाजी में कुछ करके दिखाना है। अभिषेक की मेहनत धीरे-धीरे रंग दिखाने लगी और अभ्यास शुरू करने के छह माह के भीतर ही नॉर्थ जोन के एक निशानेबाजी मुकाबले में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का हक हासिल किया और फिर एक बरस से भी कम समय में भारतीय निशानेबाजी टीम में जगह बनाकर पिता की चुनौती का बड़ी शान से जवाब दिया।