वैवाहिक बलात्कार पर ये कहा स्वराज इंडिया ने

महिला स्वराज का मानना है कि जहां दाम्पत्य अधिकार विवाह की संस्था के लिए केंद्रीय है, और इसके इनकार को तलाक के लिए एक वैध आधार माना गया है, वैवाहिक बलात्कार को इन अधिकारों की गारंटी के अभ्यास के रूप में नहीं देखा जा सकता है। यह उस महिला के लिए हिंसक और अपमानजनक है जिसे विवाह में एक व्यक्ति और समान हितधारक के रूप में सम्मान मिलनी चाहिए।

नई दिल्ली। वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण पर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा विभाजित फैसला, समाज और विशेष रूप से महिलाओं के समुदाय से एक स्पष्ट प्रतिक्रिया का पात्र है – वैवाहिक बलात्कार एक अनजान व्यक्ति द्वारा बलात्कार जितना ही वीभत्स है और इसे माफ नहीं किया जा सकता है, और इसे अनिवार्यतः दंडित किया जाना चाहिए। महिला स्वराज का यह दृढ़ मत है कि भारत में पितृसत्तात्मक समाज को देखते हुए, महिलाएं एक वंचित समूह हैं, और इसलिए सामाजिक दबाव के कारण घरेलू शोषण और यौन अपराधों के मामलों में अपनी आवाज नहीं उठा पाती हैं। ऐसी परिस्थितियों में वैवाहिक बलात्कार को रिपोर्ट करना और भी कठिन है, और जब एक बार कोई महिला ऐसा करने का साहस करती है, तो उसे कोई राहत या समाधान नहीं देना कानून शासित समाज की सामूहिक विफलता है।

महिला स्वराज का मानना है कि वैवाहिक बलात्कार का गैर-आपराधिक दर्ज़ा ब्रिटिश युग का अवशेष है और विक्टोरियन पितृसत्तात्मक कानूनों पर आधारित है, जो पुरुषों और महिलाओं को समान नहीं मानता था, विवाहित महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं देता था, और पति और पत्नी की पहचान को “पति-आश्रय के सिद्धांत” के तहत मिला देता था। साथ ही, वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है, जिसके तहत महिलाओं को उनकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। जहां एक अविवाहित महिला को किसी अनजान व्यक्ति द्वारा बलात्कार किए जाने पर कानूनी सहारा मिल सकता है, वहीं विवाहित महिलाओं को अपने घरों में आघात और अपमान सहना पड़ता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि विवाहित महिलाओं को वास्तव में अपने घर में अपमानजनक परिस्थितियों से बचना अधिक कठिन हो सकता है, क्योंकि वे कानूनी और आर्थिक रूप से अपने पतियों से बंधी होती हैं। यह विचार दिल्ली उच्च न्यायालय की 2 सदस्यीय पीठ के न्यायाधीशों में से एक, न्यायमूर्ति शकधर द्वारा भी माना गया है, कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का अपवाद 2 (जो वैवाहिक बलात्कार अपवाद को निर्धारित करती है) संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 का उल्लंघन है और इसलिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए। महिला स्वराज न्यायमूर्ति शकधर के इस विचार का स्वागत करती है।

यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि वर्तमान में 100 से अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना गया है, लेकिन दुर्भाग्य से, भारत उन 36 देशों में से एक है जहां अभी भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति (सीईडीएडब्ल्यू) ने 2013 में सिफारिश की थी कि भारत सरकार को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना चाहिए। 16 दिसंबर, 2012 को निर्भया मामले पर हुए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद गठित जेएस वर्मा समिति ने भी इसकी सिफारिश की थी।

महिला स्वराज सभी महिला संगठनों, मानवाधिकार संगठनों, सांसदों और न्यायपालिका से मौजूदा कानूनों की समीक्षा करने और महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान करती है। ऐसा कृत्य जो महिलाओं को विवाह जैसे सम्मानजनक संस्था में एक बंधन में डालता है, वह न केवल उस संस्था के लिए हानिकारक है, बल्कि समाज और पारिवारिक मूल्यों पर भी धब्बा है। महिला स्वराज उम्मीद करती है कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पुनर्गठित बड़ी पीठ, जो वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मामले की सुनवाई करेगी, विवाहित महिलाओं के विवाह के दायरे में बलात्कार न करने के अधिकार को बरकरार रखेगी।