नई दिल्ली। भारत को आत्मनिर्भर बनाना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का दृष्टिकोण है। इसके लिए कई योजनाएं लागू की गईं। हाल ही में दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों तथा इलेक्ट्रॉनिक्स के बड़े पैमाने पर विनिर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना से देश में उत्पादन, रोजगार-सृजन, आर्थिक विकास और निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
दूरसंचार पीएलआई योजना के तीन वर्षों के अंतराल में इस योजना ने 3,400 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है। दूरसंचार उपकरण उत्पादन 50,000 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर को पार कर गया है, जिसमें लगभग 10,500 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है। इससे 17,800 से अधिक प्रत्यक्ष और कई अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित हुए हैं। यह उपलब्धि भारत के दूरसंचार विनिर्माण उद्योग की सुदृढ बढ़ोतरी और प्रतिस्पर्धात्मकता को रेखांकित करती है। यह सफलता सरकारी योजनाओं के माध्यम से मिली है, क्योंकि सरकार ने स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहन दिया और आयात निर्भरता को कम करने के लिए पहल की। पीएलआई योजना का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाना और भारत को दूरसंचार उपकरण उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है। यह योजना भारत में निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री के आधार पर निर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान करती है।
इलेक्ट्रॉनिक्स के बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना मोबाइल फोन और उसके घटकों का विनिर्माण करती है। इस पीएलआई योजना के परिणामस्वरूप, भारत से मोबाइल फोन के उत्पादन और निर्यात दोनों में काफी तेजी आई है। 2014-15 में भारत, मोबाइल फोन का एक बड़ा आयातक था। उस समय देश में केवल 5.8 करोड़ यूनिट का उत्पादन होता था, जबकि 21 करोड़ यूनिट का आयात होता था, लेकिन सरकारी पहलों के माध्यम से 2023-24 में भारत में 33 करोड़ यूनिट का उत्पादन हुआ और केवल 0.3 करोड़ यूनिट का आयात हुआ और लगभग 5 करोड़ यूनिट का निर्यात हुआ। मोबाइल फोन के निर्यात का मूल्य 2014-15 में 1,556 करोड़ रुपये और 2017-18 में केवल 1,367 करोड़ रुपये था। यह 2023-24 में बढ़कर 1,28,982 करोड़ रुपये हो गया है। 2014-15 में मोबाइल फोन का आयात 48,609 करोड़ रुपये का था, जो 2023-24 में घटकर मात्र 7,665 करोड़ रुपये रह गया है।
भारत कई वर्षों से दूरसंचार उपकरणों का आयात करता रहा है, लेकिन मेक-इन-इंडिया और पीएलआई योजना के कारण संतुलन बदल गया है, जिससे देश में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के उपकरणों का उत्पादन हो रहा है।