वाशिंगटन। जब कोई बीमारी होती है, तो लोग किसी भी तरह उससे छुटकारा पाने के लिए काम करते हैं। उस समय जो दवा मिलती है या समझ में आती है, उसका उपयोग बढ़ता है। कोरोना महामारी के दौरान भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग बढ़ा है। इस बात को एक अध्ययन में कहा गया है। अध्ययन की रिपोर्ट आने के बाद इस पर विमर्श शुरू हो गया है।
बता दें कि अमेरिका में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं की ओर से यह बात कही गई है। इस रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि कोरोना के कारण भारत में कोविड-19 के चरम पर होने यानी जून 2020 से सितंबर 2020 के दौरान वयस्कों को दी गयी एंटीबायोटिक की 21.64 करोड़ और एजिथ्रोमाइसिन दवाओं की 3.8 करोड़ की अतिरिक्त बिक्री होने का अनुमान है।
चैंक गए न। रिपोर्ट इस ओर ही इशारा कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि वाकई स्थिति यह थी, तो इस पर विचार करने की जरूरत है। लोगों को अधिक जागरूक करना होगा। उन्हें यह समझाना होगा कि हर बीमारी का इलाज एंटीबायोटिक नहीं होता है।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में दवाओं का ऐसा दुरुपयोग अनुचित माना जाता है। उनका कहना है कि एंटीबायोटिक्स केवल बैक्टीरिया के संक्रमण के खिलाफ प्रभावी होती है न कि कोविड-19 जैसे वायरल संक्रमण के खिलाफ असरदार होती हैं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि एंटीबायोटिक्स के जरूरत से अधिक इस्तेमाल ने ऐसे संक्रमण का खतरा बढ़ा दिया है जिस पर इन दवाओं का असर न हो।
अध्ययन में डॉक्सीसाइक्लिन और फैरोपेनेम एंटीबायोटिक्स की बिक्री में वृद्धि भी देखी गयी जिनका इस्तेमाल श्वसन संबंधी संक्रमण के इलाज में किया जाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में भी पाबंदियां रही और मलेरिया, डेंगू, चिकुनगुनिया और अन्य संक्रमण के मामले कम हुए जिनमे आमतौर पर एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है।
अमेरिका में बार्निस-जूइश हॉस्पिटल के सहायक महामारी विज्ञानी एवं अध्ययन के वरिष्ठ लेखक सुमंत गांद्रा की ओर से कहा गया है कि एंटीबायोटिक का असर न करना वैश्विक जन स्वास्थ्य को होने वाले सबसे बड़े खतरों में से एक है। एंटीबायोटिक्स का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल मामूली चोटों और निमोनिया जैसे आम संक्रमण का प्रभावी रूप से इलाज करने की उनकी क्षमता को कम कर देता है जिसका मतलब है कि ये संक्रमण गंभीर और जानलेवा हो सकते हैं।