बिहारी क्यों भूल जाते हैं अपने विभूतियों को ? इस तस्वीर को गौर से देखिए

 

पटना। बिहार के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि हम अपने राज्य की विभूतियों को भूल जाते हैं। हमें किसी को नायक की तस्वीर भेंट करने के लिए भी दूसरे राज्य के चेहरे की जरूरत पड़ती है। तय मानिये, राहुल अगर आज तमिलनाडु में होते तो उन्हें पेरियार की तस्वीर दी गई होती। महाराष्ट्र भी शिवा जी के नायकत्व को दिखाता, बंगाल तो कई समाज सुधारकों की क्रांतिकारी भूमि रही। karnataka भला अपने बसवन्ना को भूल सकता है। अन्य राज्यों में भी अमूमन यही होता लेकिन हम बिहारी सब कुछ भूल चुके हैं।

राहुल गाँधी पटना आए तो लालू जी को बिहार में ऐसे किसी नायक की याद नहीं आई जिन पर बिहारी गौरव करे। राहुल को अंबेडकर की तस्वीर दीजिये लेकिन किसी बिहारी चेहरे को बिहार के नायक के रूप में ना दिखा पाएं तो इसे इस राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

बैद्यनाथधाम (ज्योर्तिलिंग) मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए श्री कृष्ण बाबू ने लाठियां खाई, गांव में विरोध सहा, परिवार में विरोध सहा इसके बाद भी मंदिर में दलितों के प्रवेश के मुद्दे से वह पीछे नहीं हटे. बिहार में जब उन्होंने जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज मुखर किया तब बिहार के 80 प्रतिशत से ज्यादा जमींदार भूमिहार जाति के थे. इसलिए उन्हें जात नहीं जमात का नेता कहा जाता था.

लेकिन बिहार के लिए वे एक मात्र नायक नहीं रहे। संविधान निर्माण में डॉ अम्बेडकर की भूमिका अहम जरूर रही लेकिन डॉ राजेंद्र प्रसाद जो संविधान सभा के अध्यक्ष रहे उनके योगदान कैसे कमतर आंका जाए। खासकर बिहार ही उन्हें याद न करे तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा?

और तो छोड़िये जिस जेपी के आंदोलन से लालू जी की सियासत चमकी अगर उनकी ही तस्वीर दे देते तो इसे भी आपकी समाजवादी विचारधारा की बानगी कहते। या फिर दलित नायक के रूप में बिहार में कर्पूरी ठाकुर से ज्यादा बड़ा चेहरा कौन है? ना कुछ सही तो पिछडा वर्ग के आरक्षण के नायक रहे बीपी मंडल को ही याद कर लेते। कम से कम जिस संविधान और आरक्षण को भाजपा, आरएसएस द्वारा कमजोर करने का आरोप आप लगाते हैं उन्हें इन नायकों की तस्वीर के सहारे एक कड़ा संदेश तो दे पाते। तस्वीर दिखाकर यह तो बता पाते कि यह बिहार है यहाँ सामाजिक न्याय के लिए आंदोलन करने वाले सदैव रहे हैं।

अपने राज्य के गौरव, गरिमा और गाथा के गीत हम नहीं गाएंगे तो कौन हमारा गुणगान करेगा। आप सियासत करें लेकिन उसमें अगर अपनी अस्मिता न दिखे तो यह किसी भी राज्य के लिए अच्छा नहीं कहा जाएगा।