नई दिल्ली। शोध-आधारित चिकित्सा प्रौद्योगिकी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमताई – MTaI) ने आज मेड-टेक आयात के लिए चीन+1 विकल्प के रूप में जापान की सिफारिश की। एमताई ने कहा कि अमेरिका, जापान और यूरोप जैसे प्रमुख विनिर्माण केंद्रों सहित अधिकांश देशों की तरह भारत भी अपनी मेड-टेक जरूरतों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को आयात के माध्यम से पूरा करता है। लेकिन, चीन से मेड-टेक का बढ़ता आयात चिंता का विषय बनता जा रहा है, इसलिए प्राथमिकता के आधार पर विकल्प तलाशे जाने चाहिए।
वर्तमान में भारत के पास चिकित्सा उपकरणों (मेडिकल इक्विपमेंट्स) की कुछ श्रेणियों के लिए पर्याप्त निर्माण क्षमता है, लेकिन अधिक उन्नत तकनीकों के लिए हम ज्यादातर अमेरिका, यूरोप, यूके जैसे पश्चिम और पूर्व में चीन, जापान और सिंगापुर से आयात पर निर्भर है।
एमताई के अध्यक्ष (चेयरमैन) पवन चौधरी ने कहा, ”चिकित्सा उपकरणों के आयात में भारत की निर्भरता असामान्य नहीं है, यहां तक कि अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे विकसित मेड-टेक मैन्युफैक्चरिंग हब भी 40 प्रतिशत आवश्यकता आयात से पूरी करते हैं। वैश्विक चिकित्सा उपकरण बाजार में लगभग 20% हिस्सा होने के बावजूद चीन भी 70% आवश्यकता आयात से पूरी करता है। इसका कारण यह है कि किसी एक भौगोलिक स्थान के लिए सभी प्रकार के चिकित्सा यंत्रों और उपकरणों के निर्माण के लिए उपयुक्त विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) और सहायक (ऐंसिलियरी) पारिस्थितिकी-तंत्र (इकोसिस्टम) व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है। इसलिए, अधिकांश मेड-टेक हब कुछ सेगमेंट में विशेषज्ञ हैं, जिन्हें वे खूब निर्यात करते हैं, और अधिकांश चिकित्सा उपकरण दुनिया भर में सिर्फ कुछ ही स्थानों पर बनाये जाते हैं, जो दुनिया भर की जरूरतों को पूरा करते हैं।”
गुणवत्तापूर्ण एवं अत्याधुनिक मेडिकल तकनीक आयात करना कठिन नहीं है, लेकिन चीन से बढ़ता आयात चिंताजनक बात है। दोनों देशों में सीमा विवाद और कूटनीतिक रिश्तों में उठापटक के बावजूद मेडिकल यंत्रों (डिवाइसेज़) की मुख्य श्रेणियों का आयात वित्तीय वर्ष 2020-21 के 327 अमेरिकी डॉलर की तुलना में 57 प्रतिशत बढ़कर 515 अमेरिकी डॉलर पहुंच गया, जो कि एक प्रतिद्वंद्वी देश के मद्देनजर एक खतरनाक बढ़ोतरी है।
“उत्पादन आधारित इंसेंटिव (पीएलआई) जैसी प्रोत्साहन योजनाओं से मेड-टेक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की भारत की सोच सही दिशा में है, लेकिन इसका लाभ दिखने में समय लगेगा। इसलिए भारत को तत्काल चीन से आयात के विकल्प तलाशने चाहिए। इसे प्राप्त करने का एक मार्ग उन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होना है, जिसमें भारत निकट अवधि में विनिर्माण क्षमता विकसित कर सकता है या पहले से मौजूद है। उन क्षेत्रों के लिए जहां भारत केवल मध्य से दीर्घावधि में उत्पादन करने की क्षमता हासिल कर सकता है, भारत दो-तरफा रणनीति अपना सकता है। एक तरफ, ऐतिहासिक रूप से विश्वसनीय भागीदार रहे पश्चिम से सोर्सिंग करके अपनी जरूरतों को पूरा करे, और दूसरी तरफ, एशिया से सोर्सिंग के लिए चीन + 1 रणनीति अपनाये,” चौधरी ने कहा।
“एशिया से आयात के लिए चीन + 1 विकल्प जापान हो सकता है, क्योंकि भारत और जापान दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों, समान बाजार एवं राजनीतिक व्यवस्था और शांति के साझा इतिहास की समृद्ध विरासत है। जापान पारंपरिक रूप से भारत में कई विकासात्मक परियोजनाओं (स्वास्थ्य-सेवा जैसे, जेआईसीए, मित्सुबिशी आदि सहित) में वित्तीय निवेशक और भागीदार रहा है। यदि जापान के साथ एक आकर्षक एफटीए किया जाए, तो वह स्वास्थ्य-देखभाल (हेल्थकेयर) सामाजिक प्रभाव कार्यक्रमों में तकनीकी विशेषज्ञता और वित्तीय सहायता प्राप्त करने में भारत की मदद कर सकता है। यह ‘मेड-इन-इंडिया’ उत्पादों के लिए जापानी बाजार तक पहुंच भी बनायेगा। निश्चित रूप से, गुणवत्ता मानकों के उच्चतम स्तर के उत्पादों के निर्माण की जिम्मेदारी इंडस्ट्री पर होगी, जो इन उत्पादों की स्वीकार्यता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है”, चौधरी ने आगे कहा।
एमताई के विश्लेषण के अनुसार, चीन से आयात किए जाने वाले चिकित्सा यंत्रों में अल्ट्रासोनिक स्कैनिंग तंत्र, चुंबकीय अनुनाद (रेजोनेंस) इमेजिंग तंत्र, पल्स ऑक्सीमीटर, फ्लेम फोटोमीटर, सर्जिकल उपकरण एवं एप्लाईंसेस और कैथेटर, नेत्र उपकरण आदि के लिए सहायक उपकरण 2017-2022 के दौरान आयात की जाने वाली शीर्ष 5 श्रेणियों में शामिल हैं। वहीं इसकी तुलना में, इन चिकित्सा उपकरणों का जापान से भारत का आयात लगभग 131 मिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि पिछले 5 वर्षों में अकेले इन श्रेणियों में चीन से आयात लगभग 887 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।