नई दिल्ली। बातों और चैनल्स पर बहस का बाजार गर्म है। सत्ता उसे देशभक्ति बता रही है तो विपक्ष नाटक। कहा यह भी जा रहा है कि जिन लोगों ने लंबे समय तक तिरंगा नहीं फहराया, आज उन पर तिरंगे का जुनून क्यों सवार है? क्या तिरंगा ही देशभक्ति जताने का एकमात्र पैमाना है? चलो मान लिया है कि पैमाना है। लेकिन तिरंगा खरीदने के लिए सरकारी स्तर पर जोर जबरदस्ती क्यूं की जा रही है। विपक्ष का आरोप है कि अपनी नाकामी छुपाने के लिए सरकार कुछ के बजाय कुछ कर रही है और घर घर तिरंगा अभियान भी उसी की एक कड़ी है।15 अगस्त के बाद तिरंगा अभियान खत्म। लेकिन इस अभियान को इवेंट बनाने में सरकार के खजाने से सूत्रों के मुताबिक 200 से 250 करोड़ खर्च हो चुके हैं।
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अनिल पांडेय कहते हैं कि इधर तीन चार दिन से ऑफिस से घर आते हुए देख रहा हूँ रास्ते में कई जगह लोग #तिरंगा बेंच रहे हैं। लोग गाड़ियां रोक कर जम कर खरीद भी रहे हैं। यह दृश्य देख कर समझ आया कि मोदी जी के हर घर तिरंगा कार्यक्रम का #आर्थिक पक्ष भी है। एक तो यह कार्यक्रम लोगो में देश प्रेम की भावना और भारतमाता के लिए कुछ करने का जज़्बा पैदा करेगा, तो लाखों लोगों को कामकाज और आर्थिक लाभ भी प्रदान करेगा। तिरंगे झंडे के कपड़े के निर्माण से लेकर रंगाई, सिलाई और बेचने में लाखों लोगों को रोजगार मिला होगा। #मोदी जी के आह्वान पर हर गांव, गली मोहल्ले में तिरंगा यात्रा आयोजित की जा रही है। कार्यक्रम किये जा रहे हैं। इनमें भी तो पैसे खर्च होंगे। लोगों को काम मिलेगा। मैं अर्थशास्त्री नहीं हूं, लेकिन जितनी समझ है उससे कहा सकता हूँ कि देश भर में मनाए जा रहे तिरंगा कार्यक्रम से अर्थव्यवस्था में अच्छे खासे धन का प्रवाह होगा। जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा रहेगा।