वहीं दूसरी तरफ बिहार के अस्पतालों की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है।
बिहार के छपरा से सांसद राजीव प्रताप रूडी के घर पर 30 -40 एम्बुलेंस ऐसे समय में अनुयोगी अवस्था में मिला जब बिहार सहित पूरा भारत कोरोना के भीषण आपदा से गुजर रहा है।
आम जनता को हजारों और लाखों रुपया एम्बुलेंस के लिए देने पर रहे हैं। यह एम्बुलेंस राजीव प्रताप रूडी द्वारा MP-LAD फण्ड से खरीदा गया था, यह फण्ड बिहार की जनता के खून पसीने से द्विए गये टैक्स के पैसे के एवज में खरीदा गया है। परंतु आज यह एम्बुलेंस उसी बिहार की जनता की जान बचाने के काम नहीं आ रहा है। तर्क यह दिया गया कि ड्राइवर का अभाव है। तो सवाल यह उठता है कि ऐसे विपरीत परिस्थितियों में भी ड्राइवर क्यों नियुक्त नहीं किया गया, जबकि कौशल विकास योजना के तहत खुद श्री रूडी के ही ड्राइविंग स्कूल का उद्घाटनकेंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बर्षों पहले किया था, उसका क्या हुआ?
एम्बुलेंस के दुरूपयोग के मामले से पर्दा उठाया पूर्व बाहुबली और पूर्व मधेपुरा सांसद पप्पू यादव ने जो अभी कुछ दिनों से समाजसेवी बनने का प्रयास कर रहे हैं, बाढ़ और कोरोना जैसी स्थिति में जनता को राहत पहुंचाते दिख रहे है। और कुछ लोग और मीडिया के लोग इनकी तारीफ भी कर रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि जब ये बाहुबली विधायक और सांसद चुन कर आये थे तब तो ये हत्या करते और फिरौती वसूलते थे, और आज भी कोई अच्छी छवि नहीं है, कहीं कहीं से वसूली की सूचना मिल ही जाती है। 70 चूहा खा कर हज पर चली बिल्ली वाली कहावत याद आ जाती है। चुँकि माननीय सांसद रह चुके है और सत्ता की ताकत जानते हैं इसलिए वो ताकत पुनः वापस पाने के लिए जेल से बाहर आने के बाद इन्होंने सत्ता में आने के लिए अपना चोला बदला है नियत नहीं। यह कुछ इस तरह से भी समझिए कि स्मृति ईरानी और BJP के तमाम नेता विपक्ष में रहते हुए रोज महंगाई, बेरोजगारी, और सरकारी विफलता पर रोज नौटंकी नाटक करते थे, परंतु आज जब पूरे देश की सत्ता उसके हाथ में है बिहार सहित अन्य प्रदेशों में डबल इंजन वाली हिंदूवादी सरकार है तो जनता ईलाज , भूख और बेरोजगारी से मर कर श्मशान में कुम्भ के मेले जैसी भीड़ लगाए हुए है। किसानों और नौजवानों की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। पेट्रोल, डीज़ल, गैस, तेल और अन्य खादय पदार्थो की कीमत आज आसमान छू रही है।
सवाल यह है कि जब राजद के हाथ मे सत्ता थी तो हत्या, बलात्कार, अपराध की स्थिति क्या थी, बिहार की सड़कों ,स्कूल हॉस्पिटल ,कॉलेज, कारखाना बिजली और रोजगार की स्थिति क्या थी, क्या वो दुर्व्यवस्था कोई भूल सकता है!!
आज बिहार अगर इस दुर्दशा और दुर्गति को झेल रहा है तो क्या इसके लिए वर्तमान विपक्ष दोषमुक्त है?
आज बिहार की सत्ता पाने के लिए लार टपकाती और जोड़ तोड़ और गिरी हुई राजनीति करते रहती है। परंतु बिहार की जनता इनपर विश्वाश करे तो करे कैसे? क्या सत्ता में आने के बाद अपने पुराने चरित्र को दुहरायेगी नहीं ? क्योंकि अभी भी इनके पार्टी में अपराधियों और बाहुबलियों की कमी नहीं है। सजायाफ्ता सिवान के पूर्व बाहुबली सांसद की मो.की मौत ने 1990 से 2005 के बीच के बिहार की खौफ़नाक मंजर याद दिला दिया। बाहुबली अंनत सिंह जो पहले जदयू के विधायक थे आज राजद के विधायक है, रतिलाल यादव और अन्य सैकड़ों बिहार के विधायक किस योग्यता से जनप्रतिनिधि बन कर आते हैं, जनसेवा के कारण एकदम नहीं वे चुन भी आते हैं तो अपने जाति के अपराधियों के शीर्ष पुरुष होते है। माई -बाप समीकरण से जीत कर आते है या अंधधर्मांधता के कारण, आज जब शिक्षा रोजगार, और अस्पताल हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है तो हम मंदिर बनाने पर वोट देते हैं तो एम्बुलेंस और अस्पताल और दवाई -ईलाज कहाँ और क्यों मिलेगा!!
नीतीश कुमार के शासनकाल में भी बिहार में 15 साल से हिन्दू संरक्षक पार्टी BJP कोटे से ही स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं।
नंदकिशोर यादव, अश्विनी चौबे , मंगल पांडेय परंतु वोट देने के बाद कभी भी बिहार के किसी सरकारी हॉस्पिटल में गए होंगे तो आपको पता चल गया होगा कि कितना हिंदुओ का संरक्षण हो रहा है। बीमारी का इलाज कराने गए गरीब हिन्दू किस्मत से जिंदा लौट कर आ जाये तो भगवान का एहसान मान लेता है। हिंदुओं को रोजगार इतना दे देता है की पूछिये मत पिछले लॉकडाउन की तस्वीर याद ही होगी आपको और अगर भूल गए हो तो कोरोना फिर चेतावनी देने के लिए आ गयी है कोरोना हमें बता रहा है कि संवेदनशील, दूरदर्शी और जिम्मेदार नेता हमारे समाज और जीवन के लिए कितना जरूरी है। न कि विधायक और सांसद बनने के लिए तमाशा और दिखावा करने वाले लोगों के मायाजाल में फसाना।
आख़िर इनलोगों को हम और हमारे समाज के लोग ही समर्थन करते है और चुनते है। कड़वी और सच्ची बाते कहने वालों को हम बुरा बोल कर ख़ारिज कर देते है और जो हमारी अनुपयोगी अहम और भावना को तुष्ट करता है हम उसे वोट दे देते है, बिना यह सोचे कि आगे इसका परिणाम और भविष्य क्या होगा? क्योंकि हम अपने निर्णय का एकमात्र भागीदार नहीं होते आने वाली पीढ़ी को भी इसका परिणाम भुगतना पड़ता है।
हमें अच्छी तरह याद है, जब खुलेआम ” नोंन रोटी खाएँगे मोदी की जिताएँगे” का नारा लगता था, तो मोदी जी खुलेआम
गांव में कब्रिस्तान के साथ श्मशान बनाने के लिए वोट मांगते थे, आखिर भारत की जनता की यह इच्छा पूरी हो गई। हम नफ़रत में इतने अंधे हो जाते है कि आत्महत्या तक कर बैठते है।
भारत के एक तबके ने गोधरा वाली योग्यता देखकर मोदी जी को अपार बहुमत दे दिया, मोदी जी की बड़े समर्थकों में से एक एक्ट्रेस कंगना राणावत ने बंगाल चुनाव में हार के बाद मोदी जी को पुराने अवतार में आने की गुज़ारिश की, जिसके बाद ट्वीटर ने कंगना के आइडी को हिंसात्मक पोस्ट मानते हुए स्थायी तौर पर बंद कर दिया,
आपको फेसबूक और ट्विटर पर ऐसे हजारों लाखों लोग मिल जाएंगे जो हमेशा दंगा फैलाने का काम करते देखे जाते है। मुख्य मीडिया टीवी के तथाकथित बड़े बड़े पत्रकार पत्रकारिता छोड़ कर हिंसा और झूठ फैलाने में लगे हुए देखे जाते है और जनता के पक्ष में खड़े होने के बजाय पक्षपाती और सरकार की चापलूसी करते देखे जाते है। क्योंकि हमें भी यही पसंद है।
सवाल यह है कि यह खत्म कैसे होगा इसका निर्णय जनता को लेना होगा , अपने हित मे जब आप निर्णय नहीं लेंगे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,सुरक्षा और आधारभूत मुद्दे पर बात न करके फर्जी मुद्दे पर समर्थन और वोट करेंगे तो यही दुष्परिणाम आएंगे, नई राजनीति और नए राजनेता की जरूरत है जो जाति धर्म से ऊपर उठ कर सर्वजन हिताय की बात और काम करे। हमें ही बदलना होगा नहीं तो परिवारवाद, जातिवाद, धर्मवाद की बेड़ियां हमें और दुर्दशा का शिकार बनाती रहेगी। हमें मानसिक गुलामी से बाहर आना होगा तभी हमारा और बिहार का भविष्य बदल सकता है।