दिल्ली में मोटर वाहन उत्सर्जन तय मानकों से कहीं अधिक

 

 

नई दिल्ली। दिल्ली और गुरुग्राम में मोटर वाहन उत्सर्जन वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है और यह तय निर्धारित मानकों से कहीं अधिक है। हाल ही में इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन (आईसीसीटी) की ओर से एक अध्ययन किया गया, जिसमें वाहनों से होने वाले वास्तविक उत्सर्जन का विश्लेषण किया गया। यह अध्ययन द रियल अर्बन एमिशन्स (टीआरयूई) पहल के तहत, एफआईए फाउंडेशन के सहयोग से किया गया खा। इसमें दिल्ली और गुरुग्राम के 20 स्थानों पर एक लाख से अधिक वाहनों के उत्सर्जन का परीक्षण किया गया।
अध्ययन में नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) और हाइड्रोकार्बन (एचसी) जैसे प्रदूषकों को मापा गया। इस अध्ययन ने पाया कि भारत स्टेज (बीएस) 6 मानक लागू होने के बावजूद, वाहनों का उत्सर्जन प्रयोगशाला में मापे गए मूल्यों की तुलना में 1.5 से 14.2 गुना अधिक था।
रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि उच्च उपयोग वाले वाणिज्यिक वाहनों, जैसे टैक्सियाँ और हल्के सामान वाले वाहन, निजी वाहनों की तुलना में अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। उदाहरण के लिए बीएस 6 टैक्सी और एलजीवी (लाइट गुड्स व्हीकल) निजी कारों की तुलना में क्रमशः 2.4 और 5 गुना अधिक एनओएक्स उत्सर्जन करते हैं। यह भी पाया गया कि सीएनजी, जिसे एक स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन माना जाता है, ने भी अपेक्षाकृत उच्च उत्सर्जन दिखाया, खासकर एनओएक्स के मामले में।
आईसीसीटी के प्रबंध निदेशक अमित भट्ट ने कहा कि यह अध्ययन दिखाता है कि वास्तविक दुनिया में वाहनों का उत्सर्जन प्रयोगशाला के परिणामों से काफी अलग होता है। उन्होंने जोर दिया कि भारत में उत्सर्जन परीक्षण प्रणाली को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और शून्य-उत्सर्जन वाले वाहनों को तेजी से अपनाने की आवश्यकता है।
एफआईए फाउंडेशन की डिप्टी डायरेक्टर शीला वाटसन ने सीएनजी को स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन मानने पर सवाल उठाते हुए कहा कि दिल्ली के लिए असली समाधान सीएनजी नहीं बल्कि इलेक्ट्रिक वाहन, साइकिलिंग और पैदल चलने को बढ़ावा देना है। इसी तरह, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की अनुमिता रॉय चौधरी ने भी इलेक्ट्रिफिकेशन की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर जोर दिया।
टीआरयूई पहल और आईसीसीटी ने इस अध्ययन के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है कि वास्तविक दुनिया में वाहन उत्सर्जन को कम करने के लिए साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण आवश्यक है। यह समय की मांग है कि उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं।