वाराणसी। काशी तमिल संगमम 3.0 का वाराणसी के नमो घाट पर समापन हुआ। यह आयोजन शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया। जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार की भी अहम भूमिका रही। जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को चरितार्थ करने वाला यह कार्यक्रम दो राज्यों के संस्कृति एकता को जोड़ने के लिए मिल अहम भूमिका निभा रहा है। 10 दिनों में 1200 की संख्या में आए डेलिगेट्स ने काशी के नमो घाट हनुमान घाट बाबा विश्वनाथ सहित अन्य मंदिरों में दर्शन पूजन किया और बीएचयू का भ्रमण करते हुए एकेडमिक कार्यक्रम का हिस्सा बने। कार्यक्रम के अंतर्गत सभी डेलीगेट महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे और वहां से फिर 500 साल बाद बन रहे अयोध्या में प्रभु राम लाल के मंदिर और उनके दर्शन करके अद्भुत नजर आए। अयोध्या में दर्शन के दौरान कुछ डेलिगेट्स के आंखों में आंसू भी दिखाई दिया और उन्होंने मंदिर में दान भी किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक मंच पर दिखे सभी कलाकार बजाया मंगल ध्वनि
सांस्कृतिक कार्यक्रम के आरम्भ में बनारस की छात्राओं के समूह द्वारा स्वागत वंदन गीत का गायन किया गया तत्पश्चात तमिलनाडु की पारंपरिक नृत्य प्रस्तुतियाँ हुईं, जिनमें थप्पत्तम, कुम्मी, कोलाट्टम, अम्मानट्टम एवं ग्रामिया कलाई अट्टम प्रमुख रहे। थप्पत्तम नृत्य में कलाकार विशेष प्रकार के ड्रम (थप्पू) का प्रयोग करते हैं, जिसे मुख्य रूप से तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में उत्सवों और सामाजिक आयोजनों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। कुम्मी नृत्य में महिलाएँ एक सर्कल में ताल मिलाकर ताली बजाते हुए गीत गाती हैं, जिससे यह नृत्य सामूहिकता और हर्षोल्लास का प्रतीक बनता है। कोलाट्टम, जिसे ‘लाठी नृत्य’ भी कहा जाता है, में नर्तक अपने हाथों में छोटी-छोटी लकड़ियाँ लेकर उन्हें एक-दूसरे से टकराते हुए नृत्य करते हैं, जिससे यह नृत्य टीम भावना और समन्वय का प्रतीक बन जाता है। अम्मानट्टम नृत्य देवी शक्ति की आराधना में किया जाता है, जिसमें नृत्यांगनाएँ भक्ति भाव से देवी की स्तुति करती हैं, वहीं ग्रामिया कलाई अट्टम तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाने वाला लोक नृत्य है, जो वहाँ की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली को प्रदर्शित करता है। इन रंगारंग प्रस्तुतियों ने वाराणसी और तमिल संस्कृति के अद्वितीय मेल का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। काशी तमिल संगमम 3 के तहत आयोजित इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दोनों राज्यों की सांस्कृतिक समृद्धि को देखा इस 10 दिनों में दिखने को मिला। जिससे यह आयोजन भारत की विविधता में एकता का अद्भुत प्रतीक बन गया है।