एपीआई और आईसीपी ने भारत में हाइपरटेंशन की देखभाल को बेहतर बनाने के लिए डॉक्टरों के लिए व्यावहारिक दिशानिर्देश जारी किए

हाइपरटेंशन का पता लगाने और उसकी जांच के लिए कई सारे तरीकों को इस्तेमाल करने पर जोर दिया गया है, जिसमें घर पर ब्लड प्रेशर (बीपी) नापना भी शामिल है. दिशानिर्देशों में फर्स्‍ट लाइन ड्युअल थेरेपी की अनुशंसा की गई है जिसमें एंजियोटेंशन रिसेप्‍टर ब्‍लॉकर्स (एआरबी) का संयोजन नए कैल्शियम चैनल ब्‍लॉकर्स (सीसीबी) के साथ किया गया है ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ मिले.

नई दिल्ली। एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन्स ऑफ इंडिया (एपीआई) ने इंडियन कॉलेज ऑफ फिजिशियन्स (आईसीपी) के साथ मिलकर भारतीय मरीजों में हाइपरटेंशन के नियंत्रण के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश विशेषरूप से टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस (टी2डीएम) मरीजों के लिए है। इन दिशानिर्देशों में भारत में हाइपरटेंशन और डायबिटीज के बढ़ते दोहरे बोझ को कम करने के लिए एक व्यापक, क्षेत्र-विशेष तरीकों की जरूरत पर जोर दिया गया है।

भारत में हाइपरटेंशन और डायबिटीज जीवनशैली से जुड़ी प्रमुख बीमारियों में से एक है। ये दोनों ही समस्याएं इन दोनों स्थितियों के साथ होने वाली बीमारियों तथा मौत के महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। अध्ययनों में भारत में हाइपरटेंशन से पीड़ित 50% से भी ज्यादा रोगी टी2डीएम से ग्रसित पाए गए हैं। इससे अत्यधिक ओवरलैप होने और उससे रोगी की देखभाल में आने वाली ढेर सारी चुनौतियों का पता चलता है। इन समस्याओं के एक साथ होने से कार्डियोवैस्कुलर रोगों का खतरा काफी बढ़ जाता है और गुर्दे के बीमारियों की रफ्तार बढ़ सकती है। ऐसे में एक प्रभावी प्रबंधन जरूरी हो जाता है। इसके साथ ही भारत में इन बीमारियों का शुरूआती स्तर पर ही बड़े पैमाने पर पहचान तथा प्रबंधन हो सके, उसके लिए व्यापक दिशानिर्देशों की जरूरत है। विशेषरूप से भारतीय रोगियों के हिसाब से प्रबंधन के संपूर्ण तरीकों का उल्लेख होना आवश्यक है।

टी2डीएम के साथ हाइपरटेंशन से पीड़ित रोगियों में कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं जैसे हृदय रोगों, स्ट्रोक और पेरीफेरल आर्टरी रोग का खतरा काफी बढ़ जाता है। लक्षित अंगों की क्षति तथा संपूर्ण कार्डियोवैस्कुलर खतरे का आकलन करने के लिए उपचार की तीव्रता तथा सुरक्षात्मक उपायों के लिए मार्गदर्शन जरूरी है। किडनी में होने वाली खराबी तथा भविष्य में कार्डियोवैस्कुलर रोगों के खतरे की पहचान के लिए माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया की नियमित जांच करना जरूरी है। कार्डियोवैस्कुलर रोगों के जोखिम का सटीक आकलन करने के लिए डायबिटीज के लिए विकसित किए गए जोखिम स्कोर का इस्तेमाल करना सामान्य आबादी के लिए विकसित किए गए जोखिम स्कोर के इस्तेमाल करने से ज्यादा बेहतर है।

टी2डीएम में कार्डियोवैस्कुलर के उच्च जोखिम को देखते हुए, इस दिशानिर्देश में पहले चरण के उपचार में दोहरी एंटीहाइपरटेंसिव थैरेपी दिए जाने की सलाह दी गई है। उसमें बीपी और कार्डियोवैस्कुलर रोगों के खतरों को कम करने के उनके प्रभावों के लिए विशेषरूप से कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स (सीसीबी) के साथ एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (एआरबी) का संयोजन किया गया है।

वर्ष 2024 के दिशानिर्देशों में नए सीसीबी की अनुशंसा को शामिल किया गया है, जिसमें मुख्य रूप से सिल्नीडिपिन पर ध्यान केंद्रित किया गया हो। भारत में साल 2007 में आए सिल्नीडिपिन के काफी सारे फायदे सामने नजर आए हैं, जो सिर्फ बीपी को ही कम नहीं करते, बल्कि अहम अंगों की भी सुरक्षा करते हैं, खासकर गुर्दों की। इन लाभों को बढ़ाने के लिए इन दिशानिर्देशों में सिल्नीडिपिन के साथ एआरबी को शामिल करने की सलाह दी गई, वहीं रोगी-केंद्रित कारकों व अन्य बीमारियों को भी ध्यान में रखने की बात कही गई है।

डॉ. ज्योतिर्मय पाल, निर्वाचित अध्यक्ष (2025), एपीआई का कहना है, “वैसे तो टी2डीएम में हाइपरटेंशन के प्रबंधन को लेकर वैश्विक दिशानिर्देश हैं, लेकिन भारतीय तथा दक्षिणपूर्व एशिया की आबादी जातीयता, नैदानिक चुनौतियों तथा दवाओं के प्रभाव के लिहाज से पश्चिमी आबादी से काफी अलग है। इस अंतर को समझते हुए एपीआई और आईसीपी ने विशेषरूप से भारतीय रोगियों के लिए प्रबंधन के तरीके विकसित करने के लिए जाने-माने फिजिशियन, कार्डियोलॉजिस्ट, डायबीटोलॉजिस्ट और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट के साथ साझेदारी की है। इन दिशानिर्देशों में समय पर निदान, व्यापक मूल्यांकन और बहुविषयक उपचार के तरीकों के महत्व पर जोर दिया गया है।’’

इसके साथ ही, डायबिटीज की वजह से गुर्दे को होने वाली समस्याओं से बचाव करने तथा उसकी रफ्तार को धीमा करने में रैंडमाइज्‍ड कंट्रोल्‍स ट्रायल्‍स (आरसीटी) में इसके प्रभाव को देखते हुए, रेनिन-एंजियोटेंसिन सिस्टम (आरएएस) ब्लॉकर्स को भी उपचार प्रक्रिया का अहम हिस्सा बनाना चाहिए।

एपीआई-आईसीपी ने उन स्थितियों को लेकर भी सलाह दी है जब रोगियों को रोग के बेहतर प्रबंधन के लिए आगे किसी विशेषज्ञ के पास उपचार कराने के लिए भेजा जाता है।

इन नए दिशानिर्देशकों की सबसे प्रमुख बात है कि इसमें हाइपरटेंशन का पता लगाने और उपचार के लिए कई सारे तरीकों का इस्तेमाल करने पर जोर दिया गया है, जिसमें घर पर ब्लड प्रेशर (बीपी) की जांच करना शामिल है। ये तरीका रोगियों को अपनी समस्या के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका देता है, उपचार का पालन अच्छे तरीके से होता है और आगे चलकर परिणाम भी बेहतर मिलते हैं।

इसके साथ ही इन दिशानिर्देशों में उपचार के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए जीवनशैली में बदलावों को शामिल करने की भी सलाह दी गई है। पहली बार, टी2डीएम में हाइपरटेंशन का प्रबंधन करने के लिए भारत के प्राचीन अभ्यास योग की भी सहयोगी थैरेपी के रूप में अनुशंसा की गई है। डॉक्टरों को व्यापक परिणामों के लिए संपूर्ण लाभ के लिए योग करने की सलाह देने को कहा गया है।