वॉशिंगटन/तेहरान/यरुशलम। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपने पुराने अंदाज़ में विवादों में घिर गए हैं। इस बार उन्होंने वही किया जो कुछ समय पहले उन्होंने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ किया था — एक कठिन सैन्य अभियान में सहयोगी देश की मेहनत को नजरअंदाज कर सारा श्रेय खुद लेने का प्रयास।
दरअसल, बीते कुछ दिनों से इजरायल ईरान के खिलाफ अकेले मोर्चा संभाले हुए था। इजरायली वायुसेना ने कई बार ईरानी ठिकानों पर गहन हमले किए, यहां तक कि तेहरान तक वॉरप्लेन पहुंच गए। लेकिन अंतिम चरण में अमेरिका ने कुछ बॉम्बर्स भेजे और पूरे ऑपरेशन का श्रेय खुद ले लिया।
हैरानी की बात यह है कि जिन अमेरिकी बमवर्षक विमानों ने ईरान की परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया, वे भी इजरायल की खुफिया सहायता और एयरस्पेस गाइडेंस से पहुंचे थे। इसके बावजूद ट्रंप ने इस मिशन को “अमेरिका की बड़ी जीत” घोषित कर दिया।
डोनाल्ड ट्रंप ने न केवल इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की उपेक्षा की, बल्कि इजरायली सेना के परिश्रम का अपमान भी किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर इजरायल को चेतावनी दी:
“मैं अब इजरायल से खुश नहीं हूं… अपने पायलटों को तुरंत ईरान से वापस बुलाओ।”
हेग में NATO समिट के लिए रवाना होने से पहले पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा कि इजरायल ने “समझौते पर सहमति जताने के बाद तुरंत अपना सामान उतार दिया” और दावा किया कि “ईरान की परमाणु क्षमता अब समाप्त हो गई है।”
यह घटनाक्रम भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बीते दिनों हुई स्थिति से बेहद मिलता-जुलता है। जब भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान की सैन्य ताकत को जवाब दिया था और सीमा पर संघर्ष को नियंत्रण में लाया, तब डोनाल्ड ट्रंप ने खुद को मध्यस्थ बताकर पूरे श्रेय की कोशिश की थी।
लेकिन तब पीएम मोदी ने ट्रंप को सार्वजनिक रूप से आईना दिखा दिया था और स्पष्ट कर दिया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई तीसरी मध्यस्थता नहीं हुई, दोनों देशों ने सीधे सैन्य स्तर पर बातचीत कर सीजफायर किया।
अब इजरायल को भी भारत की तरह जवाब देना होगा, क्योंकि ट्रंप ने एक बार फिर कूटनीतिक सहयोग की आड़ में सैन्य श्रेय हथियाने की कोशिश की है। यह न केवल नेतन्याहू की राजनीतिक स्थिति को चुनौती देता है, बल्कि इजरायल की सेना और जनता के मनोबल पर भी असर डाल सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की यह रणनीति अब जगजाहिर हो चुकी है — दोस्त बनकर आगे बढ़ना और फिर पीठ में छुरा घोंप देना। भारत इसका अनुभव कर चुका है, और अब इजरायल भी इस धोखे का स्वाद चख रहा है। ऐसे में सवाल उठता है: क्या नेतन्याहू भी मोदी की तरह स्पष्ट संदेश देकर ट्रंप को जवाब देंगे?