Dr Arun Sharma Said : नये टीकों के साथ कोरोना से मुकाबला

हमारे पर विश्व का सबसे बड़ा नियमित टीकाकरण अभियान चलाने का अनुभव है, जिससे हम एक हफ्ते में 17 करोड़ गर्भवती महिलाओं और बच्चों को वैक्सीन देते है। अगस्त महीने तक युद्ध स्तर पर कोरोना टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा।

अप्रैल महीने के पहले हफ्ते से देशभर में कोरोना (COVID19) के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हुई। संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच सरकार ने कोरोना के खिलाफ टीकाकरण की नीति में बदलाव किए हैं। जिससे कम समय में बड़ी आबादी को टीका दिया सके। एक मई से 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन (Covid Vaccine) देने के सरकार के निर्णय से निश्चित रूप से एकाएक वैक्सीन की मांग चार गुना बढ़ जाएगी। वैक्सीन उपलब्धता और मांग के अनुपात के हर पहलू पर टीकाकरण से जुड़े विशेषज्ञों के साथ उच्च स्तरीय बैठक कर विचार किया गया। सबसे पहले वैक्सीन के मूल्य पर सरकार ने अपना नियंत्रण खत्म करने का फैसला लिया, जिससे वैक्सीन खुले बाजार में भी उपलब्ध हो सकेगी। कोरोना टीकाकरण से जुड़े कई अहम सवाल के सवाल आईसीएमआर से जुड़े जोधपुर के एनआईआईआरएनसीडी के निदेशक डॉ. अरूण शर्मा (Dr Arun Sharma) द्वारा दिए गए-

प्रश्न- खुले बाजार में टीकाकरण से होने वाले संभावित नुकसान जैसे टीके का गलत प्रयोग, गलत मात्रा आदि की भी संभावना है, इससे कैसे निपटेगें?

पहली बात तो यह कि सरकार ने वैक्सीन को बाजार मे बिक्री की अनुमति दी है तो इसका मतलब यह नहीं कि कोरोना टीकाकरण कार्यक्रम पर सरकार का नियंत्रण नहीं होगा। पूर्व की तरह की अब भी कोविन एप पर पंजीकरण के बाद ही आप कोरोना की वैक्सीन ले पाएँगे, इससे देशभर में किसी भी जगह कितनी भी वैक्सीन लगाने का डाटा सरकार के पास होगा, इससे वैक्सीन के गलत इस्तेमाल या फिर गलत मात्रा में प्रयोग करने की संभावना नहीं होगी। सरकारी तंत्र की निगरानी में ही निजी अस्पताल वैक्सीन की खरीदारी कर पाएंगे, इसका रिकॉर्ड राज्यों के पास होगा। सरकार केवल वैक्सीन को नियंत्रण मुक्त करना चाहती है, जिससे यह सभी को उपलब्ध हो सके।

प्रश्न- जिस तरह देश में कोरोना वैक्सीन की पहले ही किल्लत है, 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों के लिए टीकाकरण शुरू कर देने से क्या वैक्सीन की कमी समस्या नहीं खड़ी होगी?

संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए ही सरकार ने यह कदम उठाया है। अभी वैक्सीन क्रय विक्रय नियमों में काफी बदलाव किए गए हैं, पहले हमारे पास केवल दो वैक्सीन कोवैक्सिन और कोविशील्ड ही उपलब्ध थी, जो भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जा रही थी। यहां समझने वाला एक तकनीकी पहलू यह है कि अभी तक दोनों कंपनियां अपने अपने प्लांट पर ही वैक्सीन का निर्माण कर रही थी, और सभी कंपनियों की वैक्सीन और इससे जुड़े उपकरण जैसे सीरिंज और सूई बनाने की अपनी सीमित क्षमताएं है। अब जिन नई वैक्सीन को आपातकालीन प्रयोग की अनुमति दी गई है, वह निजी फार्मा कंपनियों को वैक्सीन तकनीक हस्तांतरित कर सकेंगी, जिससे राज्य अपने स्तर पर भी वैक्सीन का निर्माण करा सकेंगे और उन्हें वैक्सीन के लिए केन्द्र सरकार का मुंह नहीं देखना होगा। कई अन्य विदेशी वैक्सीन भी कुछ समय बाद प्रयोग में लाई जा सकेगी, इस बाबत हम अंतरराष्ट्रीय मानकों को अधिक महत्व दे रहे हैं, उदाहरण के लिए यदि किसी वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन या एनसीडीसी जैसे प्रमाणित इकाइयों ने मंजूरी दे रखी है तो उसे देश में आपात प्रयोग के लिए स्वीकार किया जाएगा।

प्रश्न – खुले बाजार के आधार पर वैक्सीन की खरीददारी करना, क्या अमीरों और गरीबों के बीच अन्याय नहीं है क्योंकि हेल्थ पर सबका अधिकार होना चाहिए, और क्या इससे नकली वैक्सीन या वैक्सीन की कालाबाजारी तो नहीं शुरू हो जाएगी ?

जैसा कि हमने पहले कहा कि प्रमाणित वैक्सीन पर सरकार का पूरा नियंत्रण होगा, खुले बाजार में इसकी बिक्री देने का उद्देश्य एक मात्र यही है कि वैक्सीन को कम समय में अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके। सभी राज्यों के जिलाधिकारी और कोविड नोडल अधिकारी इस बात पर नजर रखेंगे कि वैक्सीन की किसी भी तरह कालाबाजारी न हो, शिकायत होने पर ऐसे लोगों पर महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

प्रश्न चार- 10 दिनों के अंदर अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप फाइजर, मैडोरना जैसी वैक्सीन को अनुमति मिलती है तो निजी अस्पतालों के लिए ट्रेनिंग, गोल्ड चेन और अन्य मानक स्थापित करने में कितनी बड़ी समस्या आएगी?

16 जनवरी 2021 को जब हमने टीकाकरण अभियान शुरू किया था, उससे पहले कई स्तर पर ड्राई रन चलाया गया बड़े स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया। हमारे पर विश्व का सबसे बड़ा नियमित टीकाकरण अभियान चलाने का अनुभव है, जिससे हम एक हफ्ते में 17 करोड़ गर्भवती महिलाओं और बच्चों को वैक्सीन देते है। अगस्त महीने तक युद्ध स्तर पर कोरोना टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा, जिसके लिए देशभर में बीस साल साइट्स शुरू करने के साथ ही घर-घर कोरोना टीकाकरण टीम भी बनाई जाएगी। वैक्सीन संरक्षण या कोल्ड चेन से जुड़ी अभी तक ऐसी कोई समस्या सामने नहीं आई है।

प्रश्न – कुछ दिनों पहले आईसीएमआर की तरफ से डॉ एनके अरोड़ा ने एक शोध सामने रखा था, जिसमें बताया था कि अगर युवाओं को वैक्सीन दी गई तो ए सिम्पमेटिक लोगों की संख्या बढ़ जाएगी जो संक्रमण को सुपर स्प्रेडर की तरह फैला देंगे वैसे भी वैक्सीन लेने के बाद लोग संक्रमित हो रहे हैं ऐसे में यह फैसला कितना सही है?

अगर आप कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों के संक्रमित होने और ठीक होने का पैटर्न देखे तो पाएंगे कि संक्रमण के एवज में ठीक होने वाले मरीजों का प्रतिशत अधिक है, इसके साथ ही मृत्यु दर भी कम देखी जा रही है। वैक्सीन शरीर में वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करती है। जिन लोगों ने वैक्सीन एक भी डोज ले रखी है उनमें कोरोना संक्रमण के अधिक गंभीर खतरे नहीं देखे गए, ऐसे जल्द ठीक हो रहे हैं। युवा वर्ग को वैक्सीन न लगाने की जो आशंकाएं पहले की जा रही थी वह अब भी यदि इस वर्ग को वैक्सीन दे भी दिया और उन्होंने कोरोना अनुरूपी व्यवहार जैसे निर्धारित दूरी का पालन, मास्क का प्रयोग, भीड़भाड़ वाली जगह से बचना और बार बार हाथ धोना आदि का पालन नहीं
किया तो संक्रमण को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण होगा।

प्रश्न – रेमडेसिवीर के बारे में कुछ बताएं, क्या इससे वास्तव में कोरोना का इलाज हो रहा है?
रेमडेसिवीर एक एंटीवायरस इंजेक्शन है, जिसका अभी कोरोना के मरीजों में प्रयोगात्मक प्रयोग किया जा रहा है। कोरोना संक्रमित सभी मरीजों को इसकी जरूरत नहीं होती, ऑक्सीजन स्तर बहुत नीचे जाने पर या फिर ऐसे मरीज जो वेंटिलेटर या ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं उन मरीजों पर यह कुछ हद तक कारगर है। इसे आपात स्थिति में प्रयोग की अनुमति दी गई इस लिए खुले बाजार में नहीं बेचा जा सकता। आरएमपी चिकित्सक या अस्पताल में इसे प्रयोग किया जा सकता है। कोरोना वायरस की वजह से फेफड़ों में होने वाले संक्रमण को इससे नियंत्रित किया जा सकता है।