“ड्रग्स” एक खतरनाक व्यवसाय

शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये इसके साथ-साथ उचित परामर्श भी एक अन्य विकल्प हो सकता है। विशेष रूप से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बढ़ते खतरे का मुकाबला कर व्यसन मुक्त भारत का निर्माण करना अति आवश्यक है।

शारव सिंह

आज के समय में मादक पदार्थों का सेवन एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुका है। युवाओ का एक बड़ा वर्ग इसकी चपेट में आ गया है। कोकीन, चरस, हेरोइन, अफीम, गांजा, मारिजुआना, शराब, व्हिस्की, रम, बियर, ब्राउन शुगर, हशीश जैसे नशीले पदार्थो का सेवन करके लोग अपना जीवन खराब कर रहे है। ड्रग्स एक ऐसा दलदल है, जिसमें धंसने वाला खुद तो तबाह होता ही है, साथ ही उसका पूरा परिवार भी तबाह हो जाता है। ड्रग्स के दुष्प्रभाव सिर्फ उस व्यक्ति को तबाह नहीं करते, जो इसके आदी होते हैं, बल्कि ये परिवार, समाज और राष्ट्र को भी जर्जर बना देते हैं। यही कारण है कि राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए उसे ड्रग्स से मुक्त रखना अनिवार्य है। ड्रग्स का सेवन यानी नशाखोरी से सिर्फ बुराइयां ही फैलती हैं। विडंबना यह है कि इस अवस्था में पहुंचने वाला कोई भी व्यक्ति प्रायः सामान्य जीवन जीने लायक नहीं रह पाता, वह स्वयं को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक स्तरों पर तबाह कर लेता है। यह एक ऐसी अंधी सुरंग है, जो बर्बादी तक ले जाती है। भारत में ड्रग्स की समस्या का फैलाव छोटे-छोटे गांवों और कस्बों से लेकर महानगरों तक में है। यह कहना गलत न होगा कि समूचा देश इस समस्या से पीड़ित है और यह लत किसी वर्ग विशेष से भी जुड़ी नहीं है बल्कि गरीब, मध्यम एवं आभिजात्य वर्गों में भी ड्रग्स के सेवन का चलन है। किसी के लिए यह मौजमस्ती का साधन एवं स्टेटस सिंबल का प्रतीक है, तो किसी के लिए थकान मिटाने का और कोई असफलता और हताशा को मिटाने के लिए ड्रग्स की ओर उन्मुख होता है। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो, युवा वर्ग ड्रग्स की गिरफ्त में कुछ ज्यादा ही फसता जा रहा हैं। हमारी सरकार ड्रग्स की समस्या को रोकने के लिए कानूनी स्तर पर प्रयासरत रही है। संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार चिकित्सकीय प्रयोग के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद मादक पदार्थों व वस्तुओं के उपयोग को निषिद्ध करने कि लिए वर्ष 1985 में नशीली दवाएं एवं मनोविकारी पदार्थ कानून लागू करने के साथ ही मादक पदार्थों का सेवन करने वालों की पहचान, इलाज, शिक्षा, बीमारी के बाद देख-रेख, पुनर्वास व समाज में पुनर्स्थापना के लिए प्रयास किए गए, परन्तु इनके सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं हुए। ड्रग्स की समस्या धीरे-धीरे विकराल होती जा रही है, आज देश के कई राज्यों में इन मादक पदार्थों को चोरी छिपे बेचा जा रहा है। पंजाब जैसे राज्यों में नशीले पदार्थो के सेवन ने एक विकराल रूप धारण कर लिया है, और वहीं दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे महानगरो में रेव पार्टिस में लोग इसका अधिक सेवन कर रहे हैं। आमतौर पर पैसे वाले लोग इसका ज्यादा शिकार होते है। राजस्थान में भी नशे की गम्भीर समस्या है, राजस्थान में मुख्य रूप से डोडा पोस्त, अफीम व अफीम से बने नशीले पदार्थो का सेवन किया जाता है। राजस्थान में पारम्परिक रूप से अफीम का उत्पादन किया जाता है, यहाँ कोटा बारां, झालावाड़, चितोड़गढ़, उदयपुर और प्रतापगढ़ जिलों में अफीम की खेती भी की जाती है। नारकोटिक्स सेंट्रल ब्यूरो द्वारा इन क्षेत्रों में अफीम की खेती करने के लिए लाइसेंस जारी किये जाते है। सरकार की अफीम कृषि निति के अनुसार जितनी भी अफीम की खेती का उत्पादन होता है उसे दवाइयों में उपयोग करने के लिए सरकारी एजेंसियों को सौपा जाता है। सरकारी आंकड़े के अनुसार देश में 7.3 करोड़ लोग नशे का सेवन करते है तथा 70 प्रतिशत इसके अभ्यस्त हो चुके हैं। सयुंक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के मुताबिक 2009 से 2019 तक ड्रग्स का सेवन करने वालों की संख्या में करीबन 30 फीसदी का उछाल आया है। देश में हर 16 में से एक महिला शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करती है, जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा 5 में से 1 है। देश में 2.1 प्रतिशत लोग गैरकानूनी नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। वर्ष 2007 से 2017 तक नशे की वजह से देश में 25 हजार आत्महत्याएं हुई हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 70 लाख लोग नशे की लत के शिकार है। इस ड्रग्स की समस्या से निपटने के लिए एनडीपीएस एक्ट बनाया गया है। यह एक्ट 14 नवंबर 1985 से अस्तित्व में हैं, इसमें तीन बार संशोधन भी किए जा चुंके हैं, यह संशोधन 1989, 2001, 2014 में किए गए थे। इस एक्ट में नारकोटिक्स ड्रग्स को गैर-कानूनी ठहराया गया है, जिसमे कोकीन, चरस, अफीम शामिल हैं।
नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन के विरुद्ध एक गंभीर अभियान की रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है। नशे अथवा ड्रग्स की लत को एक चरित्र दोष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये, बल्कि इसे एक बीमारी के रूप में देखा जाना चाहिये इसलिये, नशीली दवाओं के सेवन से जुड़े कलंक को सामाजिक जागरूकता और स्वैच्छिक प्रक्रियाओं, जैसे मनोवैज्ञानिकों द्वारा चिकित्सा सहायता के साथ-साथ परिवार के मज़बूत समर्थन के माध्यम से खत्म करने की आवश्यकता है क्यूंकि एक इच्छा से कुछ नहीं बदलता एक निर्णय से थोड़ा कुछ बदलता है पर एक दृढ़ निश्चय से सब कुछ बदल जाता है।


(युवा लेखक शारव सिंह)