नई दिल्ली। कोरोना महामारी के दौर में हजारों लोगों की नौकरी चली गई। लोगों को जीवनयापन में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जीवनशैली में कई प्रकार के बदलाव करने पड़े हैं। यह खबरें तो हम आम लोगों के बारे में सोचते हैं लेकिन जरा सोचिए उनके बारे में जो दिव्यांग है, क्या उन्हें रोजगार संबंधी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा, जिनका जीवन पहले से चुनौतियों से घिरा हुआ था, कोविड काल ने उन्हें भी बुरी तरह प्रभावित किया।
लेकिन, दिल्ली एनसीआर के दिव्यांगों के लिए सार्थक फाउण्डेशन ने कई बेहतर अवसर मुहैया कराएं, जिसका लाभ इस श्रेणी के लोगों को पहले से अधिक मिला है। ऑनलाइन की दुनिया में दिव्यांगों ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई और हजारों ऐसे लोगों को घर बैठे रोजगार मिला। आखिर यह कैसे संभव हुआ है ?
सार्थक फाउण्डेशन के संस्थापक जितेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि कोरोना महामारी दिव्यांगों के लिए बेहतरीन अवसर बनकर आया है। इस दौर में हमारी संस्था ने अपने कार्यशैली में बदलाव किया। महज एक सप्ताह के अंदर हमने तमाम क्रिया-कलापों को ऑनलाइन मोड में कर दिया। हमें बेहद खुशी है कि सार्थक ने इस दौर में अपनी सार्थकता सिद्ध की है। उन्होंने बताया कि अब तक हमारी कोशिशों से 22 हजार दिव्यांगों को नौकरी मिली है। यदि केवल कोरोना के दौर की बात करें, तो इस डेढ-पौने दो साल में हमने करीब 5 हजार दिव्यांगों को ऑनलाइन माध्यम से प्रशिक्षित किया है, जिसमें से तीन हजार से अधिक की नौकरी कई संस्थानों में लग चुकी है। वे लोग अधिकतर बीपीओ और मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे हैं। अभी सभी लोग वर्क फ्राम होम कर रहे हैं।
गौर करने योग्य यह भी है कि 2019 के अनुमान के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है, जो इसे चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश बनाता है। जबकि 2011 की जनगणना दिव्यांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) की जनसंख्या 26.8 मिलियन दर्शाती है, जो भारत की कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत है। हालांकि, विश्व बैंक के आंकड़ों का अनुमान है कि यह 40 से 80 मिलियन के बीच है
जितेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि सार्थक विभिन्न आयुवर्गों के लिए काम करता है। बीते कई सालों से हम दिव्यांगों के लिए काम करते आ रहे हैं। हमारे प्रशिक्षक किसी भी परिस्थिति में काम करने के लिए तैयार होते हैं। कोरोना के दौर में सारर्थी एप लॉन्च किया गया है, जो किसी भी दिव्यांग के लिए निशुल्क है। इसमें उनके जीवन से जुड़ी तमाम तरह की समस्याओं का समाधान किया जाता है। इसके साथ ही रोजगार सारर्थी जॉब पोर्टल को शुरू किया गया है।
एक सवाल के जवाब में सार्थक फाउण्डेशन के जितेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि इस प्रकार यह मौजूदा स्थिति में पहले से ही नियोजित पीडब्ल्यूडी उम्मीदवारों की छंटनी को कम करने के लिए और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि उनमें से कई खुद को बनाए रखने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं और कुछ अपने परिवारों के लिए एकमात्र रोटी कमाने वाले हैं। इसके साथ ही, यह यह भी अनिवार्य करता है कि कौशल और उनके लिए प्लेसमेंट के लिए जिम्मेदार संगठन, आईटी / आईटीईएस और अन्य जैसे क्षेत्रों में अधिक स्थायी नौकरी भूमिकाएं उत्पन्न करने के लिए नए नियोक्ताओं और वर्क फ्रॉम होम जैसे मॉडल का सख्ती से पता लगाएं।
कोरोना काल में सार्थक ने तीन हजार से अधिक दिव्यांगों को रोजगार दिलाया
प्रधानमंत्री के ’आत्मनिर्भर भारत’ के आह्वान के साथ, कंपनियों को भी आगे आना चाहिए और उत्पादकता में वृद्धि करनी चाहिए, जिससे इस श्रेणी के लोगों के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी।