नई दिल्ली। एक ओर महंगाई का मसला है, तो दूसरी ओर युवाओं के रोजगार को लेकर भी अब आवाज बुलंद होने लगा है। जगह जगह रोजगार की मांग हो रही है। देशभर के बेरोज़गार युवाओं की एक शशक्त आवाज़ ‘युवा हल्ला बोल’ के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रोज़गार और सरकारी नौकरियों पर किए जा रहे दावों पर सवाल उठाया है। कई भर्ती परीक्षाओं के अभ्यर्थियों के साथ लखनऊ में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए अनुपम ने सरकार को चेतावनी दी कि खाली पड़े सभी पदों को तुरंत भरा जाए वरना प्रदेश के युवा एकजुट होकर सरकार के खिलाफ आंदोलन करेंगे। ‘युवा हल्ला बोल’ के नेशनल कॉर्डिनेटर गोविंद मिश्रा ने यूपीएसएसएससी की अटकी पड़ी सभी भर्तियों को कैलेंडर जारी करके जल्द पूरी करने की मांग रखी और कहा कि सरकार बेरोज़गार युवाओं के धैर्य की परीक्षा न लें।
मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश की नई सरकार बनने से पहले भाजपा ने लिखित वादा किया था कि “90 दिनों के भीतर सभी रिक्त सरकारी पदों के लिए पारदर्शी तरीके से भर्ती प्रारंभ की जाएगी।” लेकिन चुनाव से पहले बड़े बड़े वादे करने वाली भाजपा ने सरकार बनने के डेढ़ साल बाद कह दिया कि युवाओं को रोजगार देने के लिए तो वो प्रतिबद्ध हैं और प्रदेश में नौकरियों की कमी भी नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश के युवा नौकरी करने लायक नहीं हैं। सरकार की नाकामियां छिपाने के लिए “युवाओं की अयोग्यता” का बहाना ज़्यादा दिनों तक चल नहीं पाया।
सीएमआईई के आँकड़ों के अनुसार उतर प्रदेश में आज भी करीब 90 लाख बेरोज़गार अपने भविष्य को लेकर अंधकार में है। मजबूर होकर युवा अगर अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरे तो लाठी डंडे केस मुकदमे उत्तर प्रदेश में अब आम बात हो गयी है। यहाँ तक की मुख्यमंत्री जी की सभा में कोई बेरोज़गार यदि गुहार लगाने पहुँच जाए तो खुले मंच से धमकी दी जाती है कि “बैनर नीचे कर दो नहीं तो हमेशा के लिए बेरोजगार रह जाओगे।”
अनुपम ने इस बात पर दुख प्रकट किया कि बेरोज़गारी मिटाने से ज़्यादा सरकार का ध्यान टीवी अखबार में मीडियाबाज़ी और संदिग्ध आँकड़ों के सहारे नागरिकों को गुमराह करने में रहा है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश के युवाओं को रोज़ी रोटी नौकरी रोज़गार की जगह प्रचार ही प्रचार मिल रहा है। कभी ‘एक दिन में एक करोड़ रोज़गार’ देने का प्रचार, कभी ‘मिशन रोज़गार’ के जरिये पचास लाख रोज़गार का प्रचार तो कभी तीन लाख नौकरी जैसी महाभर्तियों का प्रचार। यहाँ तक कि ढाई करोड़ लोगों को रोज़गार जैसे दावे का दिल्ली मेट्रो तक में प्रचार पर जमकर खर्च किया जा रहा। साथ ही सरकार कह रही है कि साढ़े तीन साल में 3.75 लाख सरकारी नौकरियां दे दी गयी हैं जो कि चार साल पूरा होने तक चार लाख हो जाएगा। ख़बरबाज़ी में माहिर यूपी सरकार आये दिन अखबारों के माध्यम से ऐसी घोषणाएं करती रहती है जिनकी सच्चाई संशय और सवालों के घेरे में होती है।
‘युवा हल्ला बोल’ की टीम ने प्रेस वार्ता में आरटीआई से मिले दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जिससे सरकार के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा होता है। सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी पदों की नियुक्ति का विभागवार ब्यौरा मांगने पर कह दिया गया कि कार्मिक विभाग के पास कोई सूचना ही नहीं है। सवाल है कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार को जानकारी ही नहीं कि कितनी सरकारी नौकरियां दी गयी तो प्रचार में इन आँकड़ों का इस्तेमाल क्यों हो रहा है? मीडिया में जिन आँकड़ों के आधार पर बड़े बड़े दावे किए जाते हैं उनका आधार क्या है? और अगर सरकार को जानकारी है तो आरटीआई के जवाब में ये क्यों कह दिया कि कोई सूचना नहीं है? उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों का आँकड़ा संदिग्ध और सवालों के घेरे में है जिसपर मुख्यमंत्री जी को स्पष्टीकरण देना चाहिए। याद रहे कि सत्ता में आने से पहले भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि सरकार बनने के 90 दिनों के अंदर सभी रिक्त सरकारी पदों पर भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ कर दी जाएगी।