आलोक कुमार
उत्तर प्रदेश विधान परिषद के ताजा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो साफ नज़र आता है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस वाले नतीजे हैं। 36 विधान परिषद सीटों के चुनाव में से सत्तारूढ़ दल भाजपा के 33 विधायक जीत आए। यह नतीजे अप्रत्याशित हैं। हैरतअंगेज भी।
नतीजे बताते हैं कि बाहुबलियों के आगे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक की नहीं चली। बीजेपी ने प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस से सुदामा पटेल को प्रत्याशी बनाया था। पटेल को महज 170 वोट मिले। सर्वाधिक वोट 4,234 माफिया सरगना ब्रजेश सिंह की पत्नी अनुपूर्णा सिंह को मिला। उनके मुकाबले सपा के उमेश यादव को 4000 वोट मिले।
कदाचित नतीजा संसदीय क्षेत्र के वोटिंग मशीन पर प्रधानमंत्री के कम होते असर का परिचायक है। जीतने वाली अनुपूर्णा सिंह उन्हीं ब्रजेश सिंह की पत्नी हैं जिनकी गुमशुदगी के 13 साल पूरे हुए तो परिजनों ने गंगा किनारे श्राद्ध कर दिया। बदले में पुलिस फाइल में उनको मृत मान लिया गया। जब राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने तो ब्रजेश सिंह अचानक से भुवनेश्वर में प्रकट हुए और जरायम की दुनिया के मुख्यधारा में लौटे। खौफ के परिचायक ब्रजेश सिंह के परिजनों का इस विधान परिषद सीट पर दो दशकों से कब्ज़ा है।
समाजवादी पार्टी का सूपड़ा ही साफ हो गया। न वह आजमगढ़ में जीत पाई न ही उसका सैफई में कुछ चल पाया। 2016 में जब सपा सत्ता में थी तब उसने भी प्रतिपक्षी भाजपा को कुछ ऐसे ही नाथा था। जिन बोया तिन पाइयां वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। जिसको भी मौका मिल रहा है वह लोकतंत्र को राजनीतिक व्यभिचार का तंत्र बना देने पर आमदा है।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस में सुदामा पटेल के हारने के अलावा बीजेपी को आजमगढ़ मऊ से निर्दलीय विक्रांत सिंह रिशु और टुंडा के राजा रघुनाथ प्रताप सिंह के प्रतापगढ़ में अक्षय प्रताप सिंह से मुंह की खानी पड़ी है।
उच्च सदन यानी विधान परिषद में खौफ और जुगाड से लोग पहुंचते हैं। यहां पहुंचे ज्यादातर लोग कहीं से भद्र और भल मानुष नहीं लगते। उच्च सदन यानी विधान परिषद या राज्य सभा अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था में वेस्ट मिनिस्टर पद्धति से आया है। ग्रेट ब्रिटेन में प्रतिभा सम्पन्न शख्सियतों को पिछले दरवाजे से सांसद बनाने व सरकार में लाने के लिए इस सदन को बनाया गया। हसोड़ प्रवृति के लालू प्रसाद जब ताकतवर थे तो उन्होने राज्यसभा तक को मज़ाक का स्थान बना दिया। लालू चालीसा लिखने वाले और उनके लिए स्वदिष्ट पकवान बनाने वाले को राज्यसभा के रास्ते दिल्ली की संसद में पहुंचा दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)