Guest Column : तृणमूल कांग्रेस के असंतुष्टों ने बढ़ाई ममता की मुसीबत

बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बीच दूरियां बनने की एक अन्य वजह प्रशांत किशोर हैं जिन्हें ममता बनर्जी ने गत विधानसभा चुनावों में पार्टी का चुनावी रणनीतिकार बनाया था। ममता बनर्जी अब प्रशान्त किशोर की कंपनी आईपैक की सेवाएं नहीं लेना चाहतीं परंतु अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर के बीच पहले की तरह मधुर संबंध बने हुए हैं

कृष्णमोहन झा

पश्चिम बंगाल में लगातार तीन विधानसभा चुनावों में शानदार बहुमत के साथ सत्ता पर कब्जा जमाने वाली तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का केंद्र की मोदी सरकार और राज्यपाल जयदीप धनकड़ के साथ तनातनी की खबरें तो जब तब सुनाई पड़ती रहती हैं परंतु यह निस्संदेह आश्चर्य जनक है कि उनकी पार्टी में उनके वर्चस्व को चुनौती देने के लिए उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी आगे आ गए हैं और शायद यही कारण है कि ममता बनर्जी ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए न केवल अभिषेक बनर्जी की महासचिव पद से छुट्टी कर दी बल्कि अन्य सभी पदाधिकारियों को भी पदमुक्त कर दिया । इसके स्थान पर अब ममता बनर्जी ने 20 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है परंतु इस कार्यकारिणी में अभिषेक बनर्जी को बाकी मनोनीत सदस्यों के समकक्ष रखा गया है। जाहिर सी बात है कि ममता बनर्जी ने पार्टी में उनका कद घटा दिया है। पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं सौगात राय और डेरेक ओ ब्रायन को‌ भी इस कार्यकारिणी से बाहर रखा गया है । गौरतलब है कि सौगात राय राज्य विधानसभा के पिछले चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड विजय के कुछ माह बाद भाजपा छोड़कर एक फिर तृणमूल कांग्रेस में लौट आए थे। ममता बनर्जी ने अपनी नयी कार्यकारिणी में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा , राज्य के पूर्व वित्त मंत्री अमित मित्रा सहित पार्थ चटर्जी, सुदीप बंदोपाध्याय , सुब्रत बख्शी ,आरुप विश्वास आदि विश्वसनीय नेताओं को शामिल किया है । गौरतलब है कि यशवंत सिन्हा अतीत में केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रह चुके हैं।
बताया जाता है कि तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी के बाद पार्टी के सबसे ताकतवर नेता माने जाने वाले उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ ममता बनर्जी के रिश्तों में खटास आने की शुरुआत उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री पद आसीन होने के कुछ माह बाद ही हो गई थी जब पार्टी के अंदर से ही एक व्यक्ति एक पद की मांग उठने लगी थी ।इस मुहिम का समर्थन अभिषेक बनर्जी ने भी किया जिसका यह अर्थ निकाला गया कि उनके अंदर पार्टी अध्यक्ष बनने की महत्वाकांक्षा जाग उठी है । अभिषेक बनर्जी शायद यह चाहते हैं कि एक व्यक्ति एक पद सिद्धांत का पालन करते हुए ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी रहें और तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें दें। इस मुहिम में अभिषेक बनर्जी को पार्टी के युवा वर्ग का समर्थन मिल रहा है लेकिन ममता बनर्जी के भतीजे की इस महत्वाकांक्षा ने बुआ -भतीजे के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं।
यद्यपि राज्य के नगर निकाय चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों के चयन के प्रश्न पर उनके बीच मतभेद उभरने की खबरें सुनाई पडी थी। उस समय पार्टी प्रवक्ता ने दोनों के बीच किसी भी तरह के मतभेद का खंडन किया था। ममता बनर्जी ने विगत दिनों यह संकेत भी दे दिए हैं कि आईपैक के साथ तृणमूल कांग्रेस के संबंध समाप्त हो रहे हैं । दरअसल ़गत विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड विजय से उत्साहित बनर्जी ने प्रशांत किशोर को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वे देश के अन्य राज्यों में तृणमूल कांग्रेस के विस्तार और 2024 में उन्हें प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए कारगर रणनीति तैयार करें परंतु प्रशांत किशोर को जब गोवा में ऐसा कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए तो ममता बनर्जी का उनसे मोहभंग हो गया। गौरतलब है कि गोवा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा तृणमूल कांग्रेस का चुनावी गठबंधन का प्रस्ताव ठुकराए जाने से तृणमूल कांग्रेस का चुनाव अभियान अब औपचारिकता बन कर रह गया है।
इसी 2 फरवरी को ममता बनर्जी को जब पुनः तृणमूल कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया था तब यह उम्मीद की जा रही थी कि वे शीघ्र ही पार्टी के नवीन पदाधिकारियों के नामों की घोषणा कर देंगी तब यह अनुमान कोई नहीं लगा पाया कि वे अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को महासचिव पद से हटाने का मन बना चुकी हैं । इसके लिए उन्होंने सीधे सीधे अभिषेक बनर्जी को पदमुक्त करने के बजाय सभी पदाधिकारियों को पद मुक्त करने का रास्ता अपनाया और 20 सदस्यीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी। पार्टी प्रवक्ता के अनुसार ममता बनर्जी मार्च में न ए पदाधिकारी मनोनीत कर सकती हैं । अब यह उत्सुकता का विषय है कि क्या तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को किसी महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपना पसंद करेंगी। ममता बनर्जी के आवास पर गत शनिवार को आयोजित बैठक में नीतिगत फैसले लेने के अधिकार ममता बनर्जी को सौंप दिए गए हैं। इस बैठक में ममता बनर्जी ने सभी नेताओं को मिलजुलकर काम की सलाह दी। अभिषेक बनर्जी के साथ ममता बनर्जी ने अलग से भी बैठक हुई । ममता बनर्जी यह तो समझ चुकी हैं कि आगे चलकर पार्टी में उनके वर्चस्व को चुनौती देने वाले नेताओं की संख्या बढ़ सकती है इसीलिए वे अभी से सतर्क हो उठी हैं परंतु सवाल यह उठता है कि पार्टी में उनके वर्चस्व को चुनौती देने वाले नेता अचानक इतने सक्रिय क्यों हो उठे हैं । शायद इन नेताओं को भी यह मालूम है कि ममता बनर्जी का सारा इस समय केंद्र की मोदी सरकार और राज्यपाल से मिलने वाली चुनौतियों से निपटने पर केंद्रित है।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)