इस संसद सत्र को कितना प्रभावित करेगा किसान आंदोलन ?

मोदी सरकार ने भी संसद के वर्तमान सत्र के दौरान आंदोलन कारी किसानों के प्रति अतिरिक्त कठोरता से पेश आने का विचार त्याग दिया है ताकि विपक्ष को कोई बड़ा मुद्दा हाथ न लग पाए। लेकिन सरकार को इसी सत्र में किसानों के साथ सुलह का कोई रास्ता निकालना होगा।

नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े किसानों का आंदोलन तीसरे माह में प्रवेश कर चुका है।इस बीच किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बीच वार्ता के ११दौर भी संपन्न हो चुके हैं और हर दौर की बातचीत में समाधान की कोशिश कोई धूमिल किरण भी दिखाई नहीं दी। तारीख पर तारीख का यह सिलसिला इतना लंबा खिंचा कि देश के ७२वें गणतंत्र दिवस की पुनीत तिथि आ गई।

केंद्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में  से शुरू हुए संसद के दूसरे बजट सत्र का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में किसान आंदोलन का भी उल्लेख किया। राष्ट्रपति ने गत२६ जनवरी को राजधानी में गणतंत्र दिवस और तिरंगे के अपमान की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया । उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने वाली स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का जो फैसला किया वह दूसरे राजनीतिक दलों की मंशा के अनुरूप ही था । सरकार के इस फैसले से देश के१०करोड किसानों को लाभ पहुंचा है। राष्ट्रपति ने मोदी सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार की तारीफ की। गौरतलब है कि देश के १९विपक्षी दलों ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए आज संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने की घोषणा पहले ही कर दी थी।

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा और अकाली दल की नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने कहा है कि उनका दल संसद के वर्तमान सत्र में नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगी। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के बजट सत्र की शुरुआत के पूर्व मीडिया से बातचीत में कहा कि सरकार सदन के अंदर सभी ज्वलंत मुद्दों पर मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री ने साल के पहले संसद सत्र को इस दशक का सबसे महत्वपूर्ण सत्र निरूपित किया।संसद सत्र शुरू होने के पहले ही विपक्ष के जो तेवर नजर आ रहे हैं उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि सदन के अंदर कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष और सरकार के बीच टकराव होना तय है और इस मुद्दे पर सदन में हंगामे की स्थिति निर्मित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

सरकार ने किसानों से बातचीत के हर दौर में पहले ही स्पष्ट कह दिया है कि वह नए कृषि कानूनों में कुछ संशोधनों के लिए तैयार है परन्तु इन कानूनों को पूरी तरह रद्द किया जाना संभव नहीं है।२६ जनवरी को लाल किले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद किसान संगठनों के जो नेता पहले बैकफुट पर नजर आ रहे थे वे अब आंदोलन जारी रखने की घोषणाएं करने लगे हैं। भारतीय किसान यूनियन के दो घटकों द्वारा आंदोलन से खुद को अलग कर लेने के फैसले के बावजूद यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत आंदोलन जारी रखने पर अड़े हुए हैं। गाजीपुर बार्डर पर जमा आंदोलनकारी किसानों का मनोबल तोड़ने की मंशा से आंदोलन स्थल पर आधी रात को बिजली और पानी की आपूर्ति बंद कर दिए जाने के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार का यह कदम किसानों को वापस लौटने के लिए मजबूर कर देगा।इसी मंशा से सरकार ने पुलिस बल की तादाद भी बढ़ा दी थी। परंतु दूसरे दिन सरकार अतिरिक्त पुलिस बल को बल को वापस बुलाकर आंदोलन कारी किसानों को यह संदेश देना चाहा है कि वे टकराव का रास्ता छोड़ कर बातचीत की टेबल पर लौटे।

इसबीच आंदोलन कारी किसानों के नेताओं ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार से आंदोलन स्थल पर पानी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है। आंदोलन कारी किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार में बाधा उत्पन्न करने की कोशिश कर रही है।लाल किले में २६ जनवरी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश सिंह की आंखों में जो विवशता के आंसू दिखाई दे रहे थे उन आंसुओं ने किसानों में उनके ने समर्थक तैयार कर दिए हैं। राकेश टिकैत सहित सभी किसान संगठनों के नेताओं के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए उत्तर प्रदेश से किसान बड़ी संख्या में गाजीपुर बार्डर पहुंचने लगे हैं जिसने हताश निराश राकेश टिकैत के अंदर नई ऊर्जा और उत्साह का संचार कर दिया है ऐसा ही उत्साह दूसरे संगठनों के नेताओं के अंदर भी जाग उठा है। अब उनकी भाषा भी बदल गई है।जिन किसान नेताओं के चेहरों पर दो दिन पहले पश्चाताप के भाव दिखाई दे रहे थे वे अब यह कहने लगे हैं कि हम राजधानी से अपमान लेकर नहीं जाएंगे।

ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार ने भी संसद के वर्तमान सत्र के दौरान आंदोलन कारी किसानों के प्रति अतिरिक्त कठोरता से पेश आने का विचार त्याग दिया है ताकि विपक्ष को कोई बड़ा मुद्दा हाथ न लग पाए। लेकिन सरकार को इसी सत्र में किसानों के साथ सुलह का कोई रास्ता निकालना होगा। सरकार पहले ‌यह मानकर चल रही थी कि समय बीतने के साथ ही आंदोलन कारी किसान थक-हार कर वापस चले जाएंगे परंतु गणतंत्र दिवस पर हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण दो दिन तक बैकफुट पर रहने के बाद किसानों का मनोबल जिस तरह फिर लौटने लगा है वह सरकार के अनुमानों को ग़लत भी साबित कर सकता है। दोनो पक्षों को अब समझौते की राह निकालने की इच्छा शक्ति के साथ नई पहल की शुरुआत करना चाहिए।