नई दिल्ली। रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज़ ने भारत में वृद्धावस्था और दीर्घजीवन पर एक समग्र रिपोर्ट “Longevity: A New Way of Understanding Ageing” लॉन्च की है। डालबर्ग एडवाइजर्स और अशोका चेंजमेकर्स के सहयोग से तैयार की गई यह रिपोर्ट दीर्घायु के प्रति सोच को सिर्फ लंबे जीवन तक सीमित न रखते हुए, बेहतर जीवन की ओर केंद्रित करती है।
इस रिपोर्ट को 10 महीनों की अवधि में अग्रणी विशेषज्ञ संगठनों के साथ संवाद के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें वृद्धावस्था की अवधारणा, इसकी चुनौतियां और हस्तक्षेप के अवसरों को गहराई से समझा गया है। इसमें Carers Worldwide, WisdomCircle, Vayah Vikas, Silver Talkies, HelpAge India, Nightingale Medical Trust, AARP, GreyShades, Happy2Age, St. John’s Hospital, Tata Trusts, Khyaal, Agewell Foundation, और One Billion Literates Foundation जैसे संगठनों का योगदान रहा है। साथ ही, 15 से अधिक विशेषज्ञों के साक्षात्कार भी शामिल किए गए हैं।
द्वितीयक आंकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से प्रमुख प्रवृत्तियों को उजागर किया गया है, साथ ही यह रिपोर्ट निष्क्रियता के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव और बुजुर्गों को सशक्त बनाने के लाभों को रेखांकित करती है।
2023-24 में, भारत के बुजुर्गों ने 68 मिलियन अमरीकी डॉलर का श्रम योगदान दिया, जो भारत की GDP का 3% है। प्रतिवर्ष वे लगभग 14 बिलियन घंटे पारिवारिक देखभाल और 2.6 बिलियन घंटे सामुदायिक कार्यों में देते हैं। यदि इच्छुक बुजुर्गों को पुनः कार्यबल में शामिल किया जाए तो भारत की GDP में 1.5% की वृद्धि संभावित है।
रिपोर्ट का लिंक: https://samaaj.io/4iiGkmc
रिपोर्ट में वृद्धजनों की ज़रूरतों पर आधारित चार मुख्य आयामों को रेखांकित किया गया है:
1. आर्थिक सुरक्षा
2. स्वास्थ्य और कल्याण
3. भागीदारी की स्वतंत्रता
4. सामाजिक जुड़ाव
रिपोर्ट में तीन प्रमुख प्राथमिकताओं की पहचान की गई है, जिन्हें समाज-आधारित नवप्रवर्तक और परोपकारी संस्थाएं अपनाकर दीर्घजीवन के क्षेत्र को आगे बढ़ा सकती हैं:
• दीर्घायु को सामाजिक चेतना का हिस्सा बनाना
• बुजुर्गों के जीवन स्तर को बेहतर करने हेतु नवाचार को प्रोत्साहन देना
• डेटा, क्षमता और सहयोग में प्रणालीगत खामियों को दूर करना
रोहिणी निलेकणी, चेयरपर्सन, रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज़ ने कहा, “2047 तक भारत में 300 मिलियन बुजुर्ग होंगे। हमें करोड़ों लोगों की देखभाल के लिए बेहतर संरचनाओं की आवश्यकता होगी। लेकिन वृद्ध सिर्फ निर्बल नहीं हैं, वे मूल्य का स्रोत भी हैं। क्या भारत वृद्धावस्था को फिर से परिभाषित कर सकता है? निजी परोपकार बहु-क्षेत्रीय नवाचार की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभा सकता है।”
स्वेता टोटापल्ली, रीजनल डायरेक्टर, एशिया पैसिफिक, डालबर्ग ने कहा, “हमने पाया कि भारत में पहले से ही ऐसे सामाज-आधारित नवप्रवर्तकों का एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र है जो वृद्धावस्था को नए दृष्टिकोण से देख रहे हैं। अब वक्त है इन प्रयासों से सीखने और उन्हें तेज़ करने का।”
मारिया क्लारा पिन्हेइरो, अशोका न्यू लॉन्गेविटी को-लीडर ने कहा , “यह अध्ययन हमारे लिए वृद्धावस्था को लेकर दृष्टिकोण में बदलाव लाने का अवसर रहा है जो हर उम्र में सक्रिय और समाज में योगदान देने की सोच को मजबूत करता है।”
भारत में वृद्धावस्था पर नवीनतम आंकड़ों, कार्यक्रमों और विमर्श का मूल्यांकन करते हुए, यह रिपोर्ट नागरिक संगठनों, नीति-निर्माताओं और परोपकारियों के लिए सिफारिशों के माध्यम से दीर्घजीवन के क्षेत्र में कार्य को प्रेरित करने का लक्ष्य रखती है।
रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज़:
एक ग्रांट-निर्माता संस्था, जो नागरिक भागीदारी, न्याय तक पहुंच, लैंगिक समानता, मानसिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे क्षेत्रों में काम करती है।
डालबर्ग एडवाइजर्स:
एक वैश्विक रणनीतिक सलाहकार फर्म जो समावेशी विकास और नवाचार को बढ़ावा देती है।
अशोका चेंजमेकर्स:
दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक उद्यमियों का नेटवर्क, जो चार दशकों से सकारात्मक परिवर्तन के लिए काम कर रहा है।