21वीं सदी के युवाओं के लिए प्रासंगिक हैं लाला लाजपत राय

लाला जी कहा करते थे - अतीत को देखते रहना व्यर्थ है , जबतक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिए कार्य न किया जाए । लालाजी द्वारा किए गए कार्य आज भी मिल के पत्थर की तरह मजबूत खड़ा है । उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की थी । लाला लाजपतराय के निधन के 19 वर्ष के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया और उनका अधूरा सपना तथा उनके शरीर पर पड़ी एक एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में आखिरी कील का काम करेगी - सच साबित हुई ।

रणजीत सिंह के बाद लाला लाजपत राय ही रहे शेर-ए-पंजाब

शेर – ए – पंजाब लाला लाजपतराय राय की जयंती 28 जनवरी को है, इसलिए उनपर लिखी गई कई किताबों को पढ़ने के बाद अपने पाठकों को उस पंजाब केसरी के बारे में जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूं, जो महाराजा रणजीत सिंह के बाद लाला लाजपतराय ही ऐसे थे, जिन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया गया। हो सकता है आजादी के इन दीवाने महापुरुषों को जानने के बाद देश के प्रति हमारे युवाओं का सीना गर्व से कुछ ऊंचा हो जाए।

कैसे थे हमारे महापुरुष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ? वैसे किसी भी महापुरुष के सम्पूर्ण जीवन को हजार शब्दों में समेट देना बड़ा ही मुश्किल होता है। उस लेख में क्या लिखा जाए क्या न लिखा जाए, विचार बार बार इस बात के लिए उद्वेलित होता रहता है। इसी कारण कलम जहां तहां बार बार रुक रुक कर चलती है । महापुरुष के जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलू छूट जाते हैं , लेकिन मूल भाव को प्रस्तुत करना भी तो आवश्यक है, वहीं कर रहा हूं।

पंजाब में जिन्होंने असहयोग आंदोलन को किया सार्थक

शेर -ए – पंजाब लाला लाजपत राय ने अपने अंतिम भाषण में कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की अंतिम कील बनेगी। यह सच भी हुआ । पुलिस की लाठियों की चोट से 17 नवंबर 1928 को इनका देहान्त हो गया और ठीक एक महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सांडर्स को राजगुरु , सुखदेव और भगत सिंह ने गोली से उड़ा दिया । इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जौन साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे उसका पूरे भारत में विरोध हो रहा था । लाहौर में भी विरोध लाला लाजपतराय के नेतृत्व में करने का निर्णय लिया गया । उस दिन पूरा लाहौर बंद था। चारों ओर काले काले झंडे ही दिखाई दे रहे थे। साथ ही पूरा शहर गगनभेदी नारों से गूंज रहा था – साइमन कमीशन गो बैंक, इन्कलाब – जिंदाबाद ।

पंजाब के दुधिके जिला मोंगा के माता गुलाब देवी व लाला राधाकृष्ण अग्रवाल के घर 28 जनवरी 1865 में लाजपतराय का जन्म हुआ था । पिता राधाकृष्ण अग्रवाल अध्यापक थे और उर्दू के जानेमाने लेखक भी थे । लाजपत राय लेखन और भाषण में शुरू से ही रुचि रखते थे इसलिए उन्होंने वकालत की पढ़ाई की फिर लाहौर , हिसार और रोहतक में अपनी वकालत शुरू की उनकी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब के रोपड़ (आज का रूप नगर) में हुई थी । लोग उन्हें गरमदल के नेता मानते थे इसलिए उन्हें सम्मान स्वरूप शेर- ए- पंजाब से संबोधित करते थे । पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वराज स्वाबलंबन से लाना चाहते थे फिर लाजपतराय उसके सदस्य बनकर उसे अपने हाथ में लेकर स्वराज स्वाबलंबन के अगुआ बने । 1897 और 1899 में आए अकाल और भूकंप ने उनके मन को उद्वेलित कर दिया और पीड़ितो की सेवा में दिन रात एक कर दिया । जब 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया तो उन्होंने अंग्रेजों से इस बटबारे का जोरदरी से विरोध किया और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, विपिन चन्द्र पाल से हाथ मिला लिया ।

भारतीय आजादी के दीवाने लाला लाजपत राय की शहादत (28 जनवरी को जयंती पर विशेष )

9 मई 1907 लालाजी कोर्ट जाने के लिए तैयार बैठे थे । मन कुछ अशांत था । इसी बीच मुंशी ने आकर बताया कि दो व्यक्ति उनसे मिलने आए हैं वह बाहर निकले तो देखा कि अनारकली पुलिस स्टेशन से दो पुलिस वाले उनका इंतजार कर रहे हैं । उसने लाला जी से कहा कि पुलिस कमिश्नर और डिप्टी कमिश्नर आपसे मिलना चाहते है । लालाजी ने कहा कि कोर्ट मै कुछ जरूरी काम है उसके बाद तुरंत मिलता हूं और अपनी गाड़ी पर बैठ गए । दोनों पुलिस वाले भी गाड़ी में बैठ गए । जैसे ही गाड़ी गेट के बाहर निकली तो दो यूरोपीय पुलिस ऑफिसर दोनों तरफ से पावदान पर खड़े हो गए । उसमे एक एस पी भी था जिसे लालाजी जानते थे । लालाजी ने कहा अंदर आ जाइए साथ बैठकर चलते है , पर एस पी ने इंकार कर दिया । लाला जी गिरफ्तार हो चुके थे । ‘मेरे निर्वासन की कहानी’ में लालाजी लिखते हैं कि उन्हें वर्मा के मंडेले के किले में रखा गया जहा किसी से मिलना जुलना तो अलग बात है किसी के अभिवादन का जवाब देने पर अभिवादन करने वाले को सजा दी जाती थी । आरोप कुछ भी स्पष्ट नहीं था ।

मार्च 1807 में लालाजी को लायलपुर किसान सभा में आने को निमंत्रण मिला की वह पशुओं के मेले में आए । लालाजी , बक्षी टेकचंद , लाला जसवंत राय और चैधरी रामभज को साथ लेकर लायलपुर पहुंचे । रेलवे स्टेशन पर उनका बंदे मातरम से स्वागत किया गया । जब लालाजी सभा में पहुंचे तो अजित सिंह का व्याखान हो रहा था उसके बाद लालाजी ने भाषण दिया । सभा में प्रसिद्ध गीत ष् पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल रे , पगड़ी संभाल रे तेरा टूट गया माल रे । ष्

लाजपत राय की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें अमेरिका से 1914 से 1920 भारत आने से रोक दिया । वहां उन्होंने न्यूयार्क में इंडियन इंफॉर्मेशन ब्यूरो की स्थापना की और यंग इंडिया का प्रकाशन शुरू कर दिया । जब 1920 में वह भारत वापस आए तो उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी । इसी वर्ष कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का भी हिस्सा बन गए । लाला लाजपत राय के नेतृत्व में पंजाब में असहयोग आन्दोलन आग की तरह भभक गया ।

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे । बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल – बाल- पाल के नाम से जाना जाता था । इन तीनों से पहले पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी । फिर इन्हीं तीनों नेताओं ने भारत में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को आगे बढ़ाया जिसमें बाद में पूरा देश इनके साथ हो गया । लाजपतराय ने स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर पंजाब में आर्य समाज को लोकप्रिय बनाया । लाला हंसराज एवम् कल्याण चन्द्र दीक्षित ने मिलकर दयानंद अंगलो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया जिन्हें आज लोग डीएवी स्कूल और कालेज के नाम से जानते हैं । 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के सामने विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया जिसका उल्लेख ऊपर कर चुका हूं । उसमे हुए लाठीचार्ज में लालाजी बुरी तरह घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से लाला लाजपतराय सदा के लिए गहरी नींद के आगोश में समा गए । ठीक एक महीने बाद लाठी चलवाने वाली पुलिस टीम को आदेश देने वाले सांडर्स को बदला लेने के उद्देश्य स्वरूप हत्या कर दी गई । संडर्स की हत्या करने के आरोप में राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई ।

रणजीत सिंह के बाद लाला लाजपत राय ही रहे शेर-ए-पंजाब

लाला जी कहा करते थे – अतीत को देखते रहना व्यर्थ है , जबतक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिए कार्य न किया जाए । लालाजी द्वारा किए गए कार्य आज भी मिल के पत्थर की तरह मजबूत खड़ा है । उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की थी । लाला लाजपतराय के निधन के 19 वर्ष के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया और उनका अधूरा सपना तथा उनका यह ष्कहना कि उनके शरीर पर पड़ी एक एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में आखिरी कील का काम करेगी ष् सच साबित हुई । हम आजादी के इन महापुरुषों को शत शत नमन करते हैं । यह सोच कर शरीर में एक सिहरन होती है कि क्या यदि ऐसे महापुरुष भारत की भूमि पर नहीं जन्म लिए होते तो हम आज भी गुलाम होते और फिर हमारा अस्तित्व क्या रहा होता ? हम इन महा पुरुषों को बार बार नमन करते हैं और उनके बलिदान को भारतीय जन मानस व्यर्थ नहीं जाने देगा इसकी ईश्वर से प्रार्थना करते है ।