दरभंगा । कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशिनाथ झा ने कहा कि संस्कृत और मैथिली साहित्य से परिपूर्ण मिथिला के संस्कार , संस्कृति और धरोहर कला को एक बार फिर पूरी दुनिया के सामने रखने का काम मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल कर रहा है। हमें बेहद खुशी है कि मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल का दरभंगा चैप्टर इस बार विश्वद्यिलय के प्रांगण में हो रहा है।
यहां मिथिला सहित देश के कई भागों से विद्वान आए हैं। नेपाल और श्रीलंका के अतिथि हैं। इन दोनों देशों से मिथिला का केवल राजनीति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संबंध रहा है। फेस्टिवल के विभिन्न सत्र में जिस प्रकार से विद्वानों के विचार आएंगे, उससे यहां उपस्थित जनसमूह और युवाओं को मार्गदर्शन होगा। उन्होंने कहा कि जिस ज्ञान परंपरा पर मिथिला को सनातन काल से गर्व रहा है, उसकी झांकी यहां मिलेगी। यह हमारे लिए ही नहीं, बल्कि हर मिथिलावासी के लिए गर्व की बात है।
इससे पहले मधुबनी लिटरचेर फेस्टिवल कार्यक्रम की औपचारिक शरुआत संस्कृत विश्वविद्यालय के विशाल प्रांगण में रसन चौकी के पारंपरिक वादन से हुआ। उसके बाद अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन किया। महाकवि विद्यापति रचित गोसाउनि गीत जय जय भैरवि… पर सृष्टि फाउंडेशन की वरिष्ठ छात्रा प्रियांशी मिश्रा ने ओडिशी शैली में भावपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति की। इनकी प्रस्तुति को उपस्थित जनसमूह ने खूब सराहा।
भारत में श्रीलंका के राजदूत मिलिंद मारागोडा ने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच जो सांस्कृतिक मैत्रीपूर्ण संबंध है, जो सेतु है, वह जगतजननी मां सीता के कारण है। हमें बेहद खुशी है कि आज डॉ सविता झा खां के बुलावे पर मुझे मां सीता की धरती मिथिला में आने का सौभाग्य मिला। मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी पत्नी जेनिफर मोरागोडा के साथ आना बेहद खुशी की बात है। यहां आकर मिथिला के संस्कार को करीब से समझने का अवसर मिला। यहां के विद्वानों से बहुत कुछ सुनने को मिला।
मुख्य वक्ता के रूप में जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के प्रो रामनाथ झा ने कहा कि मधुबनी केवल एक नगर और शहर का नाम ही नहीं, बल्कि एक संस्कर का प्रतीक है, जो सनातन है। मिथिला की संस्कृति और वैदिक सभ्यता में मधु को सत्य और धर्म के रूप में व्याख्यायित किया गया है। जहां ऐसे सत्य और धर्म व्यवहार में हों, वही मधुबनी है। इसलिए जब मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल में डॉ सविता झा खां ने आमंत्रित किया, तो इस बार खुद को आने से रोक नहीं पाया है। प्रो रामनाथ झा ने कहा कि पूरे विश्व को मिथिला ने ज्ञान की परंपरा दी है। मेरे लिए मिथिला से ताप्तर्य पान और मखाना से नहीं, बल्कि यहां की शास्त्रीय परंपरा से है।
पद्मश्री डॉ उषाकिरण खान ने कहा कि सीता की धरती मिथिला को अपने ज्ञान पंरपरा और संस्कार पर गर्व है। हमें खुशी है कि हम एक बार फिर इस आयोजन के हिस्सेदार हैं। आयोजक सहित यहां आए तमाम विद्वान और कलाकार बधाई के पात्र हैं। दरभंगा सहित मिथिला के लोगों को अपने ज्ञान परंपरा को समझने का बेहतरीन अवसर मिला है।
अपने संबोधन में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ मुश्ताक अहमद ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन से युवाओं सहित आने वाले पीढ़ी में अपनी गौरवशाली संस्कृति और परंपरा में नवचेतना का संचार होता है। मिथिला की गौरवशाली परंपरा को एक नया आयाम मिलेगा।
नगर विधायक संजय सरावगी ने इस प्रकार के आयोजन के लिए आयोजक को बधाई दी।विश्वद्यिलय के प्रांगण में मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल के साथ ही कई स्टॉल लगाए गए हैं। साहित्य अकादमी, भारतीय पुस्तक न्यास सहित कई प्रकाशनों ने अपनी पुस्तकों को बिक्री के लिए उपलब्ध किया हुआ है। मिथिला पेंटिंग, मिथिला की योग कला, लोक कला आदि से संबंधित स्टॉल भी हैं, जहां हर उम्र के लोग देखे जा रहे हैं।