Madhya Pradesh Assembly Election 2023 : आदिवासियों की उपेक्षा करना हर दल को पड़ेगी भारी

मध्य प्रदेश की करीब 22 प्रतिशत आदिवासियों को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई योजनाएं को प्रमुखता से लागू किया। आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण एवं मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष वित्तपोषण योजना की स्वीकृति प्रदान की है।

अनंत अमित

चुनावी मोड में आ चुके मध्य प्रदेश पर राज्य ही नहीं, देश के दूसरे प्रदेशों की भी नजर है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के सभाओं का दौर शुरू हो चुका है। हर नेता अपने हिसाब से जनता को अपने पक्ष में करने के लिए बातें कर रहा है। आबादी के लिहाज से मध्यप्रदेश को आदिवासी राज्य कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रदेश में देश की सबसे अधिक जनजातीय जनसंख्या है। देश की कुल आदिवासी आबादी का 14.70 प्रतिशत (वर्ष 2011 की जनगणना) यहां निवास करती है। देश की जनजातीय आबादी 10.4 करोड़ है और मध्यप्रदेश की 1.53 करोड़। सामान्य तौर पर जनजातीय समुदाय जंगलों में निवास करते हैं, मगर अब स्थितियां बदल रही हैं। आदिवासी मैदानी इलाकों और शहरी क्षेत्र में भी बसने लगे हैं।
हाल ही में कांग्रेस ने अपने चुनावी टीम की घोषणा की है।कांग्रेस पार्टी ने भी चुनाव प्रचार अभियान समिति की घोषणा कर दी। इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बनाई गई इस समिति में 32 नेता हैं और इनकी कमान सौंपी गई है पार्टी के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को। इनके नाम की घोषणा से इतना तो तय है कि कांग्रेस आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए ऐसा कर रही हैं। एक समय में कांतिलाल भूरिया राज्य के सबसे बड़े आदिवासी नेता के तौर पर पहचाने जाते थे। हाल के दिनों में कांग्रेस की गुटबाजी ने उन्हें साइड कर दिया। कई गुटों में बंटी कांग्रेस के नेता कांतिलाल भूरिया को अधिक तवज्जो नहीं देते थे। अब जब कांग्रेस नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को लगा कि आदिवासियों को अपने पक्ष में करना, बेहद जरूरी है, तो भूरिया को आगे किया गया।
असल में, आदिवासी बहुल रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से कांतिलाल भूरिया पांच बार सांसद रह चुके हैं। आदिवासी समाज में उनकी बेहतर पकड़ के चलते कांग्रेस पार्टी ने उन्हें भारी विरोध के बाद भी चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया है। दरअसल, मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। वहीं राज्य की 84 सीटों पर यह समुदाय जीत हार का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता है। मध्य प्रदेश में कहा जाता है कि जिसने आदिवासी समाज का वोट जीत लिया, उसने ही सूबे की सत्ता पर काबिज होना है। पिछले विधानसभा चुनावों के पहले तक ये वोट भाजपा को जा रहा था। बीते तीन वर्षों में जिस प्रकार से भाजपा सरकार की ओर से जनजातियों के लिए कई प्रकार की योजनाओं को लागू किया गया, उससे कांग्रेस के हाथ-पांव फूले हुए हैं।
साल 2018 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 17 ही जीत सकी थी, वहीं कांग्रेस के खाते में 30 सीटें आईं। राज्य में प्रचलित कहावत के अनुसार, कांग्रेस ने ही सरकार बनाई। वहीं 2013 में भाजपा ने 47 में से 31 सीटों पर चुनाव जीता था, उस समय बिना किसी रोकटोक के भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी। इसलिए इस बार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों आदिवासी समुदाय को लुभाने की कोशिश में है।
वर्तमान की सभाओं को देखने पर पता चलता है कि कांग्रेस की आदिवासियों के बीच अपेक्षाकृत पकड़ कम है। हाल ही में जब इंदौर में आदिवासी युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया और मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी थे, उस समय भी खाली कुर्सियों को लेकर सोशल मीडिया पर खूब तस्वीरें वायरल हुई थीं। बात आदिवासी की हो रही है और सम्मेलन इंदौर का ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर को चुना गया। यह कार्यक्रम आदिवासियों के मुद्दों और समस्याओं को लेकर राज्य में कांग्रेस से संवाद के लिए आयोजित किया गया था। आदिवासी युवा महापंचायत में कमलनाथ के साथ राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह मौजूद थे। और तो और, नेशनल स्टूटेंड्स यूनियन ऑफ इंडिया के प्रभारी कन्हैया कुमार भी उपस्थित थे। वही कन्हैया कुमार, जो जेएनयू के बवाल से खूब सुर्खियां बटोर चुके हैं। बावजूद ये तीनों इस ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर की खाली कुर्सियों को नहीं भर सके।
मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी बेहद महत्वपूर्ण हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश की आबादी में करीब 22% वोट अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों का है। इस वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। वहीं, करीब 80 सीटों पर आदिवासी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2003 में भाजपा ने आरक्षित 41 में से 37 सीटों पर कब्जा किया थआ। इसके बाद 2008 में आरक्षित सीटें बढ़कर 47 हो गई, तब भी भाजपा ने 29 सीटों और 2013 में 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2018 में कांग्रेस ने 30 और भाजपा ने सिर्फ 16 सीटें जीती थीं। इस वजह से सत्ता छिटककर कांग्रेस के पास आ गई थी।
मध्य प्रदेश की करीब 22 प्रतिशत आदिवासियों को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई योजनाएं को प्रमुखता से लागू किया। आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण एवं मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष वित्तपोषण योजना की स्वीकृति प्रदान की है।
दूसरी ओर, सरकारी योजनाओं में आदिवासियों की बात करें, तो केंद्र सरकार सरकार ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 15 नवंबर को देश के इतिहास और संस्कृति में जनजातीय समुदायों के योगदान को याद करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया। वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने के जश्न के हिस्से के रूप में बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने हेतु 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मंज़ूरी दी है। 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंड की जयंती मनाई जाती है। यह दिन सभी जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने और जनजातीय क्षेत्रों व समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रयासों को फिर से सक्रिय करने के लिए भी मनाया जाता है। जनजातीय गौरव दिवस समारोह 2047 में देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर दूर-दराज के इलाकों, गांवों में रहने वाले जनजातीय लोगों को मूलभूत सुविधाएं, रोजगार, शिक्षा देने का संकल्प लेने की दिशा में एक कदम है।
अनुसूचित जनजातियों की सूची संशोधन (1976) में 46 समुदायों के तहत मध्यप्रदेश को अधिसूचित किया गया। वर्ष 2003 में जारी अधिसूचना में कीर, मीना और पारधी जनजातियों को विलोपित कर दिया गया। ऐसे में अब कुल 43 अनुसूचित जनजा ति समूह मध्यप्रदेश में अधिसूचित हैं।भील समुदाय में कुल आदिवासी आबादी का लगभग 40% है, इसके बाद गोंड जनजाति है, जो राज्य की कुल आदिवासी आबादी का 34% है। जनजातीय पहुंच पहल के लिए राज्य सरकार ने हाल में विभिन्न घोषणायें की है।


(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)