नई दिल्ली। किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री जब काम हो, देश की राजधानी दिल्ली आते जाते रहते हैं। मगर जैसे ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत देहरादून से दिल्ली के लिए निकलते हैं। सियासी गलियारों में खबरें आती हैं कि उनके भाजपा के शीर्ष अधिकारियों और संघ के कई प्रचारकों से मिलना है, तो सियासी कानाफूसी शुरू हो जाती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व को सीएम रावत के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं। उन्हीं के निपटारे के लिए बिना पल गंवाए सीएम रावत दिल्ली आ गए।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी और विधानमंडल दल में बगावत जैसा संकट गहरा गया है। मंत्री और विधायक लम्बे समय से पिछले तीन साल से आरोप लगा रहे हैं कि अफसरशाही जन प्रतिनिधियों की नहीं सुनती और विधायकों का सम्मान भी नहीं मिल रहा है। जब सुनवाई नहीं हुई तो असंतुष्ट मंत्रियों और विधायकों ने परेशान होकर मई या जून माह में सामूहिक रूप से विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा देने की योजना बनाई तो केंद्रीय हाई कमान सोचने के लिए विवश हो गया। इस तूफ़ान को थामने के लिए अचानक कोर कमेटी की बैठक बुलाकर पर्यवेक्षक के रूप में रमन सिंह को भेजा गया।
पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री रावत को दिल्ली बुलाया। सोमवार को रावत के गैरसैंण और देहरादून में कई कार्यक्रम थे, लेकिन दिल्ली से आए बुलावे के बाद उनके सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए गए। दरअसल, रावत को लेकर उत्तराखंड में एक खेमा लगातार चाहता है कि इनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव न हो। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों ने शनिवार शाम तब जोर पकड़ लिया जब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और पार्टी मामलों के उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत कुमार सिंह देहरादून पहुंचे और कोर ग्रुप की बैठक हुई। रमन सिंह ने कोर ग्रुप की बैठक में मौजूद हर सदस्य से अलग—अलग बातचीत की। बाद में सिंह मुख्यमंत्री के सरकारी आवास में भी गए जहां करीब 40 पार्टी विधायक मौजूद थे। कोर ग्रुप की बैठक के बाद सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय भी गए।
भाजपा से जुडे सूत्र बता रहे हैं कि आनन फानन में सीएम रावत को नहीं बदला जाएगा। भाजपा रणनीतिकारों ने पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को देखते हुए ऐसे किसी कदम से परहेज करने की सलाह दी है। वहीं, संघ की ओर से जानकारी मिली है कि संघ चाहता है कि हरिद्वार में हो रहे कुंभ में साधु-संन्यासियों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो और शासन प्रशासन का पूरा सहयोग रहे, इसके लिए सीएम रावत को कुछ सलाह दी गई है।
राजनीतिक गलियारों में इसे सीएम रावत को अभयदान भी माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि यदि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव न होते और हरिद्वार में कुंभ नहीं होता, तो इनकी कुर्सी जानी तय थी।