निशिकांत ठाकुर
सब जानते हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू भारत के लिए और इमरान खान पाकिस्तान के लिए क्रिकेट खेलते थे, लेकिन यह जानकारी शायद किसी को नहीं होगी कि इनकी दोस्ती ऐसी भी है कि लोगों की अंगुली सिद्धू को ‘ गैर राष्ट्रवादी’ ठहराने में उठने लग जाए। पाकिस्तान का जन्म ही भारत के विरोध के लिए हुआ था, जिसे हम आज तक झेल रहे हैं। विशेषरूप से सिद्धू जब से राजनीतिक में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए लगे हैं, पंजाब की राजनीति में एक प्रकार से अजीब उथल—पुथल दिख रही है। अपनी वाचालता के कारण वह हर जगह ‘चर्चा’ में रहने लगे हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि अब देश की जनता को उनके हाव-भाव पर भी संदेह होने लगा है। इसी बीच पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का यह रस्योद्घाटन कि ‘नवजोत सिंह सिद्धू को मंत्री पद देने की सिफारिश पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने किसी ‘खास’ से फोन करवा कर किया था’ तो बहुत ही गंभीर मामला हो गया है। कैप्टन के इस रस्योद्घाटन के बाद यह बात भी आमलोगों के समझ में आ गई होगी कि सिद्धू कैप्टन से नाराज क्यों थे। यह सच है कि पंजाब की राजनीति को इतनी उथल—पुथल का सामना कभी नहीं करना पड़ा था, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू का राजनीति में प्रवेश करते ही माहौल बदल गया। समझने की बात यह है कि उनका पैर कभी किसी एक दल के साथ स्थिर नहीं रहा। वह कभी सुखबीर सिंह बादल के छोटे भाई होने का दावा करते रहे, कभी भाजपा का दामन थाम प्रधानमंत्री के करीबी होने का दावा करते रहे तो अब कांग्रेस की जड़ खोदकर उसमें मट्ठा डाल उसे दफनाने का प्रयास करने में जुटे हैं। एक ही जुमले और एक ही शेर—ओ-शायरी को अलग—अलग सभाओं में सुनाने में माहिर सिद्धू की कलई धीरे—धीरे खुलने लगी है।
भारत बहुत ही दुरूह रास्ते को तय करते हुए आज विश्व में अपनी अलग पहचान बनाने की दिशा में तेजी और गंभीरता से आगे बढ़ रहा है। अब उसके विकास के रास्ते में जो षड्यंत्र रचा जाएगा, उसे देश का कोई भी व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा, चाहे वह किसी भी दल से संबंध रखता हो। भारत का हर व्यक्ति अपने देश के स्वाभिमान के लिए जीता है और उसकी रक्षा का ही सपना देखता है। उसमें भी पंजाब, जो योद्धाओं का राज्य है, बुद्धिजीवियों का राज्य है, अपने देश को गुलामी के फंदे में फिर से फंसते कैसे देख सकता है। निश्चित रूप से नवजोत सिंह सिद्धू का अपने लिए पाकिस्तानियों से सिफारिश कराना दुखद भी है और शर्मनाक भी। सिद्धू ने यदि इस प्रकार की गलती की है तो उन्हें इसके लिए आत्ममंथन करके राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए। ब्रिटिश अधिकारी बोजमैन को लिखे 11 जुलाई, 1947 के अपने एक पत्र में सरदार पटेल ने उस अधिकारी के विचारों से अपनी सहमति व्यक्त की कि ‘भारत का बंटवारा दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन उस वक्त उनके पास कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने यह आकांक्षा व्यक्त की कि एक दिन पाकिस्तान भारत में मिलेगा।’ यदि कहीं सरदार पटेल की भविष्यवाणी सच होने की संभावना हो तो इस पर देश को गहन चिंतन करने की जरूरत है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है और इस तरह के प्रयास करके देश को तोड़ने की कोशिश की जा रही है तो इसकी विस्तृत जांच होनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि जिसके लिए इस तरह की बातें आए दिन की जाती रही हैं जिससे सिद्धू का चरित्र ही अब संदेहों से घिर गया है।
जिस प्रकार सिद्धू शुरू से ही विवादित रहे हैं, उस पर प्रधानमंत्री की भी प्रतिक्रिया अच्छी नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि सिद्धू की असलियत सामने आ चुकी है । कैप्टन अमरिंदर सिंह तो उन्हें अपना धुर विरोधी मानते ही हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में रहने वाले इमरान खान और नवजोत सिंह सिद्धू के बहुत करीबी दोस्त ने उन्हें फोन पर भेजे संदेश में सिद्धू को मंत्री बनाने की सिफारिश की थी। कैप्टन ने कहा कि चूंकि मैं न तो कभी इमरान खान से मिला था न ही मैं व्यक्तिगत तौर से उन्हे जनता था, इसलिए ऐसा संदेश देखकर मैं हैरान ही नहीं हुआ, बल्कि बहुत बड़ा झटका लगा कि एक व्यक्ति को पंजाब का मंत्रीपद दिलाने के लिए कैसे दूसरे देश के प्रधानमंत्री और उसके करीबी दबाव डाल रहे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में शामिल रहे हैं और सीमांत प्रदेश में राजनीति का लंबा अनुभव रखते हैं, लेकिन अब मुख्य राजनीतिक धारा से अलग हो चुके हैं। राजनीति के मुख्यधारा से उन्हे अलग करने वालों में नवजोत सिंह सिद्धू की प्रमुख भूमिका रही है, इसलिए यह भी तो हो सकता है कि अपनी पीड़ा और चिढ़ को सिद्धू के माध्यम से निकल रहे हों! कैप्टन ने सिद्धू पर जो आरोप लगाए हैं, उसकी निश्चित रूप से गंभीर जांच होनी ही चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि खुन्नस मिटाने के लिए कैप्टन इस प्रकार का गंभीर आरोप सिद्धू पर मढ़ रहे हों। जो भी हो, कैप्टन के इन आरोपों की उच्चस्तरीय जांच तो होनी ही चाहिए। सच तो यही है कि सिद्धू ने ही कैप्टन पर उलजुलूल आरोप लगाकर राजनीतिक हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया और पंजाब कांग्रेस को भी गर्त में धकेल दिया। पता नहीं, इस विधानसभा चुनाव में कैप्टन विहीन कांग्रेस पंजाब में क्या कुछ कर पाएगी।
कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा लगाए गए आरोप पर जब नवजोत सिंह सिद्धू से उनका पक्ष पूछा गया तो उन्होंने कैप्टन पर ही निशाना साधते हुए कहा कि मरे हुए को क्या मारना। यह अजीब उत्तर था। सच तो यह है कि पंजाब में कांग्रेस बिखर गया है और उसका पहला कारण सिद्धू को ही माना जा रहा है। पिछले चुनाव में जब सभी राज्यों में कांग्रेस हार गई थी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ही अपनी सूझबूझ से डूबते हुए कांग्रेस की नाव को भंवर से निकाला था। लेकिन, सिद्धू ने ही उनके लिए इतना विष—वमन किया कि अंततः उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ कांग्रेस को भी ‘बाय—बाय’ कहना पड़ा। पंजाब में पहले चुनाव में सामने अकाली ही हुआ करते थे, लेकिन अब यह लड़ाई चार दलों में बंट गई है। कांग्रेस की आपसी फूट का ही परिणाम है कि आम आदमी पार्टी ने वहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और उसकी हुंकार अब पंजाब की सत्ता पर काबिज होने की है। यह सब आखिर क्यों हुआ, यह गहन विवेचना का विषय है, लेकिन इतना तो है ही कि सत्तारूढ़ कांग्रेस को कमजोर करने में सिद्धू की कुछ—न—कुछ तो भूमिका और साजिश रही ही है। पता नहीं, इस व्यक्ति की लालसा को आम मतदाता क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि यह जिसके साथ होता है, उसी का जड़ खोदने लगता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस से बाहर करने का लाभ अब अकाली-भाजपा और नवगठित कैप्टन की पार्टी सहित आम आदमी पार्टी को मिलेगा ही ।
12 मार्च, 1930 के ‘यंग इंडिया’ में महादेव देसाई लिखते हैं, प्रोफेसर जेवी कृपलानी के साथ जेल में सरदार बल्लभ भाई पटेल के दर्शन करने का मुझे सौभाग्य मिला। उनका पहला और अंतिम शब्द यह था कि वह जीवन में इतने प्रसन्न कभी नहीं थे, जितने इस समय हैं।…जब हम विदा हो रहे थे तो सरदार ने कहा, ‘मेरे लिए परेशान न हों। मैं एक पक्षी की तरह प्रसन्न हूं। केवल एक चीज ही ऐसी है जिस पर में वास्तव में अप्रसन्न हूं।’ और, वह एक क्षण के लिए चुप हो गए। जेल अधीक्षक और उपजेलर ने एक-दूसरे को जिज्ञासावश देखा। हमलोग भी कौतुहल में पड़ गए कि यह क्या हो सकता है। सरदार ने ऐसा क्यों कहा, हमलोगों ने जानने के लिए आग्रह किया। ‘ठीक है’, सरदार ने कहा, ‘एक चीज और केवल एक चीज मुझे चिंतित करती है और वह है कि जेल के सभी उत्तरदायित्व पूर्ण अधिकारी भारतीय ही हैं। हम भारतीयों के माध्यम से ही वे इस अमानवीय व्यवस्था को चलाते हैं। मैं चाहता हूं कि वे सभी विदेशी होते, ताकि मैं उनसे लड़ सकता। लेकिन, मैं अपने ही सगे-संबंधियों से कैसे लड़ सकता हूं।’ यह तो हुई आजादी के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वालों की बात, उनकी सोच यह होती थी की ऐसे एक लाख अंग्रेज उनपर कैसे शासन कर सकते हैं, तो इसी तरह से भारतीयों के माध्यम से भारतीयों पर अंग्रेज शासन करते थे। उनका सिद्धांत ही यही था कि ‘फूट डालो और राज करो।’ इस नीति के तहत वह हिंदू—मुस्लिम को लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करते हुए सैकड़ों वर्षों तक राज करते रहे। वैसे, अब अंग्रेजी शासन नहीं है और हम आजाद हैं। लेकिन, जिस तरह का माहौल अब देश में बनता जा रहा है उससे तो यही लगता है इसी सिद्धांत को पाकिस्तान ने भी अपना लिया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)