आप और हम आजकल की स्ट्रेस भरी लाइफ में अधिकतम लोगों को एक आम शिकायत रहती है कि उन्हें अच्छी नींद नहीं आती है। कुछेक तो नींद में बडबडाते हैं। अपने साथी की चैन भरी नींद में वे खलल तो डालते ही हैं, और साथ ही साथ अपने लिए रोगों को बुलावा देते हैं। यदि आपके साथ भी ऐसी स्थिति है, तो सावधान हो जाएं। लेकिन लोग नींद में बात करते ही क्यों है? और किससे बात करते हैं? लोगों की आम अवधारणा है कि शायद स्वप्न देखते हुए, सपने के दौरान जो व्यक्ति सामने होता है उसी से लोग बात कर रहे होते हैं, बस उन्हें यह एहसास नहीं होता कि वे सच में बात कर रहे हैं।
असल में, नींद में बोलना, सोते समय किसी बात से बाते करने को कहते है। ये एक प्रकार का पैरासोमनिया कहलाता है, जिसका मतलब होता है, सोते समय अस्वाभाविक व्यवहार का करना। ऐसा होना सामान्य माना जाता है। हालंाकि, इसे बीमारी नहीं कहा जाता है। लेकिन, यह लंबे समय तक आपके साथ होता है, तो समझ लीजिए कई दूसरी बीमारियां आपके आसपास आने को बेताब है। नींद में बात करने वाले एक समय में 30 सेकेंड से ज्यादा नहीं बोलते है। ऐसा हो सकता है कि वो नींद में कई बार बातें करते रहे।
बता दें नींद नहीं आने के पीछे कोई और नहीं बल्कि हम स्वयं ही जिम्मेदार होते है। ऐसे में रात को सोने से पहले भूलकर भी यह आठ गलतियां नहीं करें जिससे आपकी नींद पर असर हो। डाॅक्टर्स भी सलाह देते हैं कि कभी भी खाना खाकर तुरंत नहीं सोना चाहिए और ना ही भारी-भरकम भोजन करना चाहिए। हमेशा रात का खाना हल्का होना चाहिए। इसलिए सोने से करीब दो घंटे पहले रात का भोजन करें। साथ ही अगर आपको नींद नहीं आने की समस्या है, तो रात को चाय एवं कॉफी पीने से बचें। चाय-कॉफी पीने से देर रात तक नींद नहीं आती। इतना ही नहीं, आप कैसे कपड़े पहन कर सोते हैं इस बात का भी गहरा नाता आपकी नींद से है, इसलिए सोने के लिए आप हमेशा ढीले-ढाले कपड़ों का प्रयोग कीजिए। टाइट या फिर अनकंफोर्टेबल कपड़ों की वजह से भी अक्सर नींद दूर भाग जाती है।
क्या आप भी करते हैं नींद में बड़बड़
बहुतेरे नींद का आनंद लेते हैं और बहुतेरे की नींद दूसरे के लिए मुसीबत होती है। मुसीबत भयावह तब होती जब बड़बड़ाहट से दूसरों नींद काफूर हो जाती है। और तो और नींद में बड़बड़ाहट बताती है कि व्यक्ति कोई स्वास्थ्य समस्या जकड़ रही है। बता दें नींद में बड़ाबड़हट करने वाला व्यक्ति अधिकांश बच्चा व टीनएजर होते हैं। कारण दोनों संप्रेषन का आदान-प्रदान नहीं कर पाते और फैंटसी वल्र्ड में जीते हैंै।
कारण हैं इसके
साइकोलाॅजी में नींद में बोलना, बड़बड़ करना, अपने से सवाल-जवाब करना या नींद में सोने से इतर व्यवहार करना पैरासोमनिया कहलाता है। बता दें कि यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह व्यवहार दूसरों को खलता है। और तो और एक समय में नींद में बोलने की अवधि 30 सेकेंड की होती है। ऐसा एक बार में कई बार होता है।
नींद में बातों के कई चरण
नींद में बात करने का एक कारण बुरे सपने भी होते हैं। कई बार हम जिस बारें में सोच रहे होते हैं, वहीं चीजे हमारे सपनों में आने लगती है। हालांकि, डॉक्टर्स इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं। नींद में बात करना किसी तरह से हानि नहीं करता है, लेकिन ये नींद विकार या स्वास्थ्य की बीमारी के ओर संकेत करते है। नींद में बोलने या बड़बड़ाहट के चार चरण होते हैं। पहले चरण में नींद से पहली मुलाकात ही होती है। यानी नींद से मुखातिब ही होते हैं। यह चरण 5 से 10 मिनट तक रहता है। इसके बाद नींद से दोस्ती होनी शुरू होती है। इसकी अवधि 20 मिनट तक रहती है। यहां नींद के गहरे होने के साथ दिमाग सक्रिय होता जाता है। दिमाग की इस सक्रियता को स्लिप स्पिंडल कहते हैं। इसके आगे नींद से पक्की दोस्ती हो जाती है। यहां दिमाग की सक्रियता कम हो जाती है और शरीर निढ़ाल होना आरंभ कर देता है। या यूं कहें कि इस चरण में बाहरी शोर बेअसर होते हैं। अंतिम चरण में ब्रेन सक्रिय रहता है। इसमें डेल्टा स्लीप आती है।
कल्पनाएं नींद में साकार
नींद में बड़बड़ाहट या बोलने का कारण कल्पनाओं में रहना या अधूरी ख्वाहिशों को सपनों में देखना। इस नींद में बात करने का एक कारण बुरे सपने भी होता है। यह आदत दूसरों की नीेंद भले ही खराब कर दे, लेकिन नींद में बात करना किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता। जरूरत है कि इसका इलाज करवाएं। कारण यह नींद वा स्वास्थ्य संबंधी बीमारी का इशारा है।
आरईएम स्लीप डिसआर्डर
यदि आप नींद में बोलते, बड़बड़ाते, सवाल-जवाब करते हैं, तो यह सामान्य है। लेकिन नींद में भयावह हरकते, जैसे चीखते, चिलाते हैं, तो थोड़ा सचेत हो जाइए। यह डिमेंशिया (निद्रारोग) अथवा पार्किंसन जैसी बीमारियों के लक्षण होते हैं। इस बीमारी को ‘आरईएम स्लीप बिहैवियर डिसआर्डर’ कहा जाता है। आरईएम नींद वो नींद है जिस दौरान इंसान सपने देखता है। इसके अलावा मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं, मेडिकेशन का साइड इफेक्ट भी इसका कारण होते हैं।
ट्रीटमेंट है संभव
यदि नींद में बोलने की आदत को नजरअंदाज नहीं करें। इसका इलाज जरूरी है। घरेलू इलाज से असर नहीं पड़े तो साइकैरिस्ट से मिलें, जो इसकी जड़ तक जाकर इसका समाधान निकालेगा। बता दें कि आपको व्यक्ति को बताना होगा कि वह सोते समय बड़बड़ करता। यहां आपको उसकी मदद करनी चाहिए। और उसे इलाज के प्रेरित करना चाहिए।
रोकनी होगी यह आदत
वैसे तो इस नींद में बोलने की आदत का कोई इलाज नहीं है कि फ्लां दवाई के सेवन से ठीक हो जाएगा। इस ओर साइकोलाॅजिस्ट मदद कर सकते हैं। साथ ही आपको स्वयं से भी इलाज करने होंगे, जैसे योगा व मेडिटेशन करें, तनाव को आस-पास नहीं फटकने दें, स्लीप डायरी बनाएं आदि। शोध बताते हैं कि स्लीप डायरी इस ओर काफी कारगर साबित हुई है। इसमें रोजाना पूरा ब्योरा लिखें कि आप कितने बजे सोते हैं, बीच-बीच में कब उठते हैं, कब-कब नींद में बोलते ह, क्या-क्या नींद में बोलते हैं। इससे आपको साइकैरिस्ट को समझाने में आसानी होगी।