बिहार की सियासत में इन दिनों एक हनुमान की चर्चा जोरों पर है लेकिन ये हनुमान श्रीराम वाले नहीं बल्कि कलयुग के हनुमान हैं—हालांकि ये कल तक नीतीश जी के हनुमान हुआ करते थे लेकिन मंत्री क्या बने की हनुमान की छवि भी बदल गई और अव ये हनुमान मोदी के हनुमान हो गये।राजनीति में कभी दुश्मन से खतरा नहीं होता है, राजनीति में हमेशा अपनों से खतरा होता है. जिस दिन नीतीश कुमार कैबिनेट में आरसीपी को नहीं जाने दिये, उसी दिन तय हो गया था कि आनेवाले दिनों में नीतीश कुमार को औकात में लाया जायेगा. आरसीपी बेइज्जति का बदला लेंगे. नरेंद्र मोदी को एक ऐसे आदमी की खोज तो पहले से ही थी. राम को हनुमान मिल गये. विधानसभा चुनाव में नीतीश को 40 सीट पर लाने की योजना कामयाब रही.
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यह तर्क फालतू का है कि आरसीपी और नीतीश एक जाति के हैं इसलिए नीतीश समझौता कर लिये. ऐसा होता तो आरसीपी सिंह विधानसभा चुनाव में नीतीश को कमजोर नहीं मजबूत करते, 40 नहीं 80 सीटों पर जीत की योजना बनाते. यह पूरी तरह नीतीश को बर्बाद करने की राजनीति थी. और राजनीति में ऐसा होना आम बात है.
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आज नीतीश कुमार एक जिंदा लाश के अलावा कुछ नहीं हैं. नीतीश कुमार भी जानते हैं कि उनकी यह हालत राजद या कांग्रेस ने नहीं की है, उनके घर के लोगों ने ही की है. भाजपा को भी कमजोर नीतीश की बेहद जरुरत थी, आरसीपी ने भाजपा का काम कर दिया. आज भाजपा ने आरसीपी को उसकी कीमत दे दी है. पारस और आरसीपी में कोई अंतर नहीं है. दोनों ने राजनीति की है.
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हर आदमी की एक कमजोरी होती है, नीतीश की भी एक कमजोरी है और वही कमजोरी नीतीश को एक नेता से महज एक मुख्यमंत्री बनाकर छोड़ दिया है. आज सचमुच नीतीश कुमार से सहानुभूति जताने का दिन है. चिराग राजनीतिक शुरुआत में किनारे हुए हैं, उनके पास बहुत समय है, लेकिन नीतीश के पास अब समय नहीं है. आनेवाले दिनों में उनकी स्थिति और हस्यास्पद होगी. एक जिद्दी नायक कैसे अपनी ही पार्टी में दरकिनार हो गया.. यह मजाक की बात नहीं है, सोचने की बात है. क्योंकि नीतीश कुमार महज एक कुर्मी नेता नहीं थे, वो आजाद भारत में बिहारियत को स्थापित करनेवाले नायक रहे हैं जिनको सहयोग हमेशा उनके तब के हनुमान आरसीपी करते रहे लेकिन वक्त बदलने का नाम है लिहाजा अव वक्त नीतीश और हनुमान दोनों का बदल गया है|