UP Assembly Election 2022 : अभी लोगों के लिए अबूझ है पश्चिमी यूपी की राजनीति

उत्तर प्रदेश के पश्चिम में पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है। वहां पर बीते चुनाव से तीन फीसद कम वोटिंग जहां राजनीतिक दलों की पेशानी पर बल डाल रही है तो विश्लेषकों को नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर रही है। क्योंकि पश्चिम का समीकरण इस बार बहुत बदला हुआ है।

नई दिल्ली। प्रदेश में एक कहावत कही जाती है कि जिसने भी पश्चिम को जीता वही पूरे यूपी का चुनाव जीतता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि वेस्टर्न यूपी में इस बार का वोटिग पैटर्न क्या संदेश देता है? पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर किस गठबंधन का पलड़ा भारी रहने की उम्मीद है? आंकड़ों की बात करें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 11 जिले में विधानसभा की 58 सीटें हैं। इनमें 9 सीटें आरक्षित हैं। इन सीटों पर कुल 623 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे, जिनमें 74 महिला प्रत्याशी हैं। कुल 2.27 करोड़ मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
पहले चरण के मतदान में 11 जिले के 58 विधानसभा क्षेत्रों में 6० फ़ीसदी से अधिक मतदान हुआ। यह पिछली बार की 63.5 फ़ीसद की तुलना में कम है। साल 2०17 के विधानसभा चुनाव में नोएडा में 48.56 फ़ीसदी वोट डाले गए थे जो वर्ष 2०22 में बढ़कर 5०.1० फीसद हो गया। कैराना में साल 2०17 में 69.56 फ़ीसदी वोट पड़े थे, जबकि 2०22 में 75.12 फ़ीसदी वोट पड़े। लोनी में 2०17 में 6०.12 फ़ीसदी वोट पड़े थे, जबकि 2०22 में 57.6० फीसदी पड़े। मथुरा में 2०17 में 59.44 फ़ीसदी वोट पड़े थे, जबकि 2०22 में 57.33 फ़ीसदी वोट पड़े। गढ़मुक्तेश्वर में वर्ष 2०17 में 66.3० फ़ीसदी वोट पड़े थे जो कि 2०22 में घटकर 61 फ़ीसदी रह गया। साल 2०12 के विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो 17.5 फ़ीसद वोट के साथ बीजेपी ने 1० सीट, 2० फ़ीसद वोट के साथ समाजवादी पार्टी ने 14 सीट, 28.8 फ़ीसद वोट के साथ बसपा ने 2० सीट, 9.8 फ़ीसद वोट के साथ कांग्रेस ने 5 सीट, 12.8 फ़ीसद वोट के साथ आरएलडी ने 9 सीट जीती थीं। अन्य को 11.1 फ़ीसद वोट मिले थे. वर्ष 2०17 के विधानसभा चुनाव का परिणाम को देखें तो 46.3 फ़ीसद वोट के साथ बीजेपी ने 53 सीट, 14.3 फ़ीसद वोट के साथ समाजवादी पार्टी ने 2 सीट, 22.5 फ़ीसद वोट के साथ बसपा ने 2 सीटें जीती थीं। इसके अलावा कांग्रेस को 7.1 फ़ीसद वोट और अन्य को 3.2 फ़ीसद वोट मिले थे।
इस साल के हुए विधानसभा चुनाव का अगर विश्लेषण करें तो इस चुनाव में बीजेपी अपने वोट बैंक को पूरी तरह से साथ रखने की कोशिश कर रही है। बीजेपी जाट वोट के साथ में गैर यादव ओबीसी वोट, गैर जाटव वोट के साथ-साथ गुर्जर वोट पर भी अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है। इसके साथ ही साथ बीजेपी बसपा के वोट बैंक पर भी अपनी नजर बनाए हुए है और उसे अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। सपा और आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ रही है और इन दोनों की कोशिश यादव, मुस्लिम और जाट वोट को एक साथ हासिल करने की है। गौरतलब है कि पहले चरण में 3० फ़ीसदी से भी अधिक मुस्लिम वोट है और सपा-आरएलडी गठबंधन की कोशिश है कि इसमें जाट वोट को भी जोड़ लिया जाए। हालांकि, कुछ जगहों पर ओवैसी भी मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि उन्हें कितना वोट मिलता है। बसपा की पूरी कोशिश अपने जाटव वोट बैंक को बचाए रखने की है ।
लेकिन वास्तविकता यह है कि परंपरागत तौर पर अगर देखा जाए तो कम वोटिग होने में यह माना जाता है कि जनता शासन से खुश है और इसलिए वह आक्रामक वोटिग नहीं करती है। यह बात जरूर है कि इस चुनाव में दोनों ही पक्षों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। बीजेपी संगठनात्मक मामले में सभी पार्टियों से आगे है और उनका बूथ स्तर तक प्रबंधन है। इसलिए अमित शाह ने जिन जगहों पर प्रचार किया वहां पर वोटिग प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि बीजेपी के मुकाबले सपा गठबंधन को अधिक मेहनत करनी होगी, क्योंकि दोनों के बीच फासला काफी अधिक है।
माना जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तमाम सियासी कोशिशें वोटों का बिखराव नहीं रोक सकीं। इस बार पुराने और सुरक्षित किलों में भी सेंध लगी है। कोई आश्चर्य नहीं कि पुरानी, परंपरागत और हॉट सीटों के परिणाम चौंकाने वाले निकले। यह दावा सियासी गलियारों में भी हो रहा है। वोटों के बिखराव में भाजपा से लेकर सपा-रालोद गठबंधन, कांग्रेस व बहुजन समाजवादी पार्टी भी फंसा गया है। सीधे तौर पर कहे 2०17 के इतिहास को दोहरा पाना भारतीय जनता पार्टी के लिए उतना आसान नहीं है क्योंकि वोटों के बिखराव ने तस्वीर को पलट कर रख दिया है और नतीजा किसके पक्ष में आएगा या कह पाने की स्थिति में अभी कोई भी दल नहीं है।
सभी राजनीतिक जानकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 1० मार्च को आने वाले नतीजों को लेकर कह रहे हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नतीजे बेहद चौंकाने वाले आएंगे। पश्चिम उत्तर प्रदेश के मतदाता 2०17 की तरह एक तरफा चलते हुए नहीं दिख रहे हैं। 2०17 में मतदान करके बाहर निकल रहे हैं ज्यादातर लोग कमल खिलने की बात कह रहे थे, वही 2०22 में सभी मतदाताओं की राय अलग-अलग सुनाई पड़ी। मतदान करके निकल रहे कुछ लोग साइकिल को मत देने की बात कह रहे थे तो कुछ लोग कमल को वोट देने की बात कह रहे थे और इसी के साथ साथ कांग्रेस व बहुजन समाज पार्टी के भी पक्ष में वोट करने की बात कहते हुए नजर आ रहे थे। सब बातों पर नजर डालें तो मतदाताओं का बिखराव जबरदस्त तरीके से हुआ है। देखने वाली बात यह है कि अगर यह दिखाओ सही मायने में हुआ है तो सर्वाधिक नुकसान किस दल का होगा? अगर 2०17 की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी सर्वाधिक सीट पाने वाला दल था लेकिन 2०22 में मतदाताओं के बिखराव से कितना नुकसान भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ सकता है यह तो 1० मार्च को तय होगा।