हरियाणा में कांग्रेस को ये क्या हो रहा है ?

आम आदमी पार्टी परिवार में आपका स्वागत है अशोक जी। छात्र राजनीति से लेकर संसद तक का आपका राजनीतिक अनुभव निश्चित ही हरियाणा और देश भर में पार्टी संगठन के लिए काफ़ी मददगार साबित होगा।

नई दिल्ली। हरियाणा में कांग्रेस की लुटिया डूबने के कगार पर है। मौजूदा हालात में प्रदेश में मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस पार्टी का बंटाधार होना तय मानिए। यह सिर्फ अशोक तवंर के आम आदमी पार्टी का दामन थामने की वज़ह से नहीं है। बल्कि तवंर तो पिछले चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस पार्टी से हटाए दिए गए थे। अपने साथी देवेंद्र बबली को जैसे तैसे जेजेपी में जगह दिलवाई। अब वो मनोहरलाल सरकार में मंत्री हैं।

तब अगर तवर आम आदमी पार्टी में गए होते तो संभव था कि पंजाब से पहले हरियाणा, दिल्ली के बाद किसी और राज्य में आप की सरकार बनाने वाला पहला प्रदेश बन गया होता। लेकिन तब आप में खुद हरियाणा को लेकर अंदरुनी ठानी पड़ी थी। नवीन जयहिंद की राह का रोड़ा बनकर योगेंद्र यादव खड़े थे। यह राष्ट्रीय संयोजक और हरियाणा के मूल निवासी अरविंद केजरीवाल को नागवार गुजर रहा था। आगे तवर के तेवर को आप नेतृत्व कितना बर्दाश्त कर पता है,यह देखने वाली बात होगी। घायल की गति घायल जाने। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर तंवर ने पार्टी में हुड्डा को धकेलकर हसिये पर पहुंचा दिया था। बगले झांकते हुड्डा के बीजेपी में जाने की नौबत तक बन आई थी। उससे घबराकर राहुल ब्रिगेड के तंवर को बाहर का रास्ता दिखाया गया। फिर भी पार्टी इतनी मजबूत रही कि नए प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा के नेतृत्व में सरकार बनाने की संभावना के साथ मैदान में उतरी। नतीजे बताते रहे कि कांग्रेस नेताओं की आपसी रस्साकशी न होती तो दोबारा बीजेपी का सत्ता में लौट पाना मुश्किल होता।

रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई। सुरते हाल आज भी वही है। या यूं समझिए दिन ब दिन बदतर हुए जा रहे हैं। सधी चाल से भूपेंद्र सिंह हुड्डा पूरी पार्टी को फिर से निजी परिवार के पॉकेट में फंसाकर रखने की जिद पर आमादा हैं। कहने को भले ही कुमारी सैलजा प्रदेश अध्यक्ष हों पर हुड्डा निरंतर चुनौती दिए। सियासी पासा खेलते और जीतते चले जा रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा खुद विधायक दल नेता हैं, तो राज्यसभा सांसद बेटे दीपेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने की ठान रखी है। स्व.भजनलाल के बेटे कुलदीप विश्नोई हों या स्व. बंसीलाल की बहू किरण चौधरी हों या स्व.शमशेर सिंह सुरजेवाला के पुत्र रणदीप सिंह या दलित नेता स्व.दिलबाग सिंह की बेटी कुमारी सैलजा सबके सब मूकदर्शक की मुद्रा में हैं। कमजोर होते कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की अब वो हैसियत भी नहीं कि वह हुड्डा को आगे दरकिनार कर पाएं। इसका नजारा हुड्डा ने दिल्ली में कांग्रेस विधायक दल की बैठक करके पेश कर दी। बैठक में किरण चौधरी को छोड़ सभी विधायक हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र के सामने बैठे रहे। और इन विधायकों के इंतजार में चंडीगढ़ दफ्तर में प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा मुट्ठी भर भरोसेमंदों के साथ बैठी रहीं। कालिदास की तरह खुद के डाल काटने वाली हालात में फांसी कांग्रेस ने आप के लिए उम्मीद की बड़ी वजह पैदा कर दी है।