क्या है ZyCov-D की खासियत, भारत ने कैसे फिर बाजी मारी

अब देश के बच्चों को भी कोविड वैक्सीन मिलेगी। कई मामलों में यह यूनिक है। इसे सूई बजाय डिवाइस के जरिए दिया जाएगा। हजारों बच्चों पर परीक्षण के बाद सरकार की ओर से इसे अनुमति दी गई है। अब आपके बच्चे के लिए पूरी तरह सुरिक्षत बताया जा रहा है - ZyCov-D.

नई दिल्ली। पूरी दुनिया जब कोरोना वैक्सीन के लिए काम कर रही है, वैसे भी भारतीय वैज्ञानिकों ने दिन-रात मेहनत करके एक के बाद एक सफलता हासिल की है। यही वजह है कि हमारे देश में वैक्सीन के कई विकल्प हैं। अब बच्चों के लिए देश में ZyCov-D को अनुमति मिल गई है। बहुत जल्द इसके लिए शेडयूल जारी कर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके लिए सभी को बधाई दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जाइडस यूनिवर्स की दुनिया की पहली डीएनए आधारित ‘जाइकोव-डी’ वैक्सीन को मंजूरी मिलना भारत के वैज्ञानिकों के अभिनव उत्साह का प्रमाण है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत पूरे जोश के साथ कोविड-19 से लड़ रहा है। जाइडस यूनिवर्स (ZydusUniverse) की दुनिया की पहली डीएनए आधारित ‘जाइकोव-डी’ (ZyCov-D) वैक्सीन को मंजूरी मिलना भारत के वैज्ञानिकों के अभिनव उत्साह का प्रमाण है। यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।’

बता दें कि ZyCov-D डीएनए आधारित वैक्सीन है। यह दुनिया का पहला और भारत का स्वदेशी तौर पर विकसित डीएनए आधारित कोविड-19 टीका है। इसका उपयोग बच्‍चों के साथ-साथ 12 साल से अधिक उम्र के वयस्कों के लिए किया जा सकता है। यह कोरोना वैक्सीन 3 डोज वाली है। यह सूई से नहीं, इसे एक खास डिवाइस के जरिए लगाया जाएगा। यह टीका लगाए जाने पर शरीर में सार्स-सीओवी-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करता है और एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हासिल करता है जो बीमारी से सुरक्षा के साथ-साथ वायरस को खत्‍म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्लग-एंड-प्ले तकनीक जिस पर प्लाज्मिड डीएनए प्लेटफॉर्म आधारित है, को वायरस में म्‍यूटेशन से निपटने के लिए आसानी से अनुकूलित किया जा सकता है जैसा कि पहले से ही हो रहा है।

टीके का तीसरे चरण का क्‍लीनिकल ​​परीक्षण 28,000 से अधिक लोगों पर किया गया। इसमें लक्षण वाले आरटी-पीसीआर पॉजिटिव मामलों में 66.6 प्रतिशत प्राथमिक प्रभावकारिता दिखी। जायडस समूह के टीका अनुसंधान केंद्र वैक्सीन टेक्नोलॉजी सेंटर (वीटीसी), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के एक स्‍वायत्‍त संस्‍थान ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई) और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम) के तहत पुणे के इंटरएक्टिव रिसर्च स्कूल फॉर हेल्थ अफेयर्स (आईआरएसएचए) में स्‍थापित जीसीएलपी प्रयोगशाला ने भी सफलता की इस कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जायडस समूह के अध्यक्ष पंकज आर. पटेल ने कहा, हम बेहद खुश हैं कि कोविड-19 से लड़ने के लिए एक सुरक्षित, अच्छी तरह से सहन करने योग्य और प्रभावी टीका बनाने के हमारे प्रयास जाइकोव-डी के साथ अब एक वास्तविकता बन गए हैं। इतने महत्वपूर्ण मोड़ पर और तमाम चुनौतियों के बावजूद दुनिया का पहला डीएनए टीका बनाना भारतीय शोध वैज्ञानिकों की मेहनत और नवोन्मेष के लिए उनकी भावना का पुरस्‍कार है।