नई दिल्ली। परिवर्तन नहीं हुआ। खेला ही हुआ। भाजपा (BJP) की लाख कोशिशों के बावजूद पश्चिम बंगाल में दाल नहीं गली। सत्ता से वह कोसोें दूर रही। अब यही से सवाल उठता है कि आखिर सारे घोड़े खोलने के बावजूद भाजपा पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव क्यों नही जीत सकी । चुनाव पांच राज्यों में हो रहे थे, लेकिन सबकी नजर ममता बनर्जी की दस वर्षीय सत्ता पर थी। आप इस तरह से कह सकते हैं कि भाजपा के आंखों की किरकिरी बनी ममता बनर्जी का बाल बांका भी भाजपा इस चुनाव में नहीं कर सकी। इस लिहाज से बधाई ममता बनर्जी (Mamta Banarjee)और आपकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को (TMC) आपकी शानदार प्रदर्शन के लिए।
बेशर्म नेताओ की एक पूरी टोली बंगाल के विभिन्न शहरों के विभिन्न पांच सितारा होटलों में ममता को हराने के नाम पर पिछले लगभग एक वर्ष से मौज मस्ती करके अपने समय का तथाकथित सदुपयोग करते रहे। अनाप शनाप भ्रम फैलाते रहे , लेकिन वहां की बुद्धिजीवी जनता ने तय कर रखा था कि तथाकथित वेशधारी रविंद्रनाथ टैगोर जैसे बहुरूपिए को सबक सीखा कर ही दम लेंगे। सोचने की बात यह है कि जिसे यह पता नही की रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म कहां हुआ था और वह किस परिवार का प्रतिनिधित्व करते थे , वह तथाकथित वेशधारी बंगाल की बुद्धिजीवी जनता को ठगने चला था । पूरे देश को बरबाद करने वाले ऐसे अशिक्षित नेताओं और ठगों को बंगाल के लोग दूर से ही पहचान लेते हैं । फिर उनका हश्र क्या होता है यह देश की जनता ने देख लिया । इस दल ने अब तक जो भी किया वह केवल मार्केटिंग और प्रचार ही है।
यथार्थ में क्या कुछ हुआ नहीं हुआ। इसे जनता समझ नहीं पाई और अपने घनघोर प्रचार के बल पर देश की भोली भाली जनता को मूर्ख बनाती रही है । धरातल पर आज भी जनता इन सात वर्षों से दिग्भ्रमित ही होती रही है – ना तो किसी को रोजगार मिला, ना ही किसी के खाते में पंद्रह लाख रुपए आए । जिसे गृहमंत्री ने एक साक्षात्कार में जुमला करार दिया और कहा कि चुनाव जीतने के लिए येन केन प्रकारेण कुछ भी कहा और बोला जाता है । शायद उनका यह पुराना तरीका हो ।
पश्चिम बंगाल (West Bengal) की जनता ने इनकी बातों को दिल से लगा लिया और किसी भी प्रलोभन पर कोई ध्यान नहीं दिया। पता नहीं किस प्रचार माध्यम ने इन्हे चाणक्य कहा और वह सच में अपने को को चाणक्य (Chankya) मानने लगे। जैसी नव विवाहित दुल्हन को देखने आस पास के लोग उमड़ पड़ते हैं उसी प्रकार इस नए तथाकथित चाणक्य को गोदी मीडिया का प्रश्रय मिलता रहा और बहुत तेजी से झूठों और दिखावटी जिंदगी जीने का आदि हो गया । उसे इतना प्रचारित किया गया कि वह सच में अपने आपको देश का भाग्य विधाता और नीति निर्माता मान बैठा । अपना खौफ इस कदर फैला दिया कि सरकारी तंत्रों का दुरुपयोग करके आवाज उठाने वालों के यहां केवल खौफ फैलाने के लिए छापे मरवाना, जेल में बंद करवाना और सच में यदि अपराधी है, तो उन्हें शरणागत मानकर उस वाशिंग मशीन में घुस जाइए आप बिल्कुल साफ हो जाएंगे।
हाल के वषों में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां यही तो देखा गया है। पश्चिम बंगाल में भी यही किया गया, लेकिन वहां की जनता ने ऐसे दलबदलु और मौकापरस्त नेताओं को बेनकाब कर दिया । ऐसे दलबदलु और मौका परस्त अंगुली पर गिने जाने लायक लोग चुनाव जीते हैं ,शेष को तो वहां की मतदाताओं ने सबक सिखा दिया । मतदाताओं को दिग्भ्रमित करने के लिए बड़ा मुहिम चलाया गया और आठ चरणों में चुनाव कराया गया । चुनाव आयोग का यह पिछलग्गू तर्क किसी के समझ में नहीं आया कि आखिर ऐसी क्या बात है जो इतने लंबे चरणों में चुनाव कराए जा रहे हैं , लेकिन समझने वाले समझ रहे थे कि निश्चित रूप से दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है, अन्यथा महामारी के इस दौर में इतने चरणों में चुनाव को खींचना क्या अर्थ रखता है!!!