World Cancer Day : और भी बीमारियां हैं जमाने में, एक अकेला कोविड नहीं जान का दुश्मन..

वर्ष 2019 दिसंबर से पहले बिहार मधुबनी की रहने वाली 35 वर्षीय रूपम हर महीने एम्स में अपने पति का इलाज कराने के लिए आती थीं, लेकिन कोविड काल में राज्य स्तरीय पाबंदियां लगने के कारण उनका बिहार से दिल्ली आना मुश्किल हो गया, जिसका सीधा असर उनके पति के इलाज पर पड़ा। गैर संक्रामक बीमारियों में शामिल कैंसर के इलाज में देरी होने या फिर इलाज नहीं मिलने का मतलब है कि शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकने को बंद कर देना जिससे मरीज सेहत दिन पर दिन और बिगड़ती जाती है। कोविड के कारण रूपम के पति का इलाज बुरी तरह प्रभावित हुआ और रूपम के पति के दिमाग का कैंसर आखिरी चरण में पहुंच गया।

नई दिल्ली। कोविड संक्रमण के बीते दो साल में अन्य गैर संक्रामक बीमारियां जैसे कैंसर, हार्ट अर्टक, मधुमेह, किडनी, लिवर आदि के मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। कोविड प्रबंधन व्यवस्था में इन मरीजों को हालांकि कोर्मोबिडिज श्रेणी में शामिल किया गया और संक्रमण के जोखिम को देखते हुए इस श्रेणी के मरीजों को वैक्सीन और बूस्टर डोज देने की प्राथमिकता तय की गई। बावजूद इसके गैर संक्रामक बीमारी से पीड़ित मरीजों की मौत कोविड संक्रमण के कारण हुई और इन मौतों को कोविड संक्रमित मृत्यु में ही शामिल किया गया। वर्ष 2021 में आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) की हॉस्पिटल आधारित कैंसर रजिस्ट्री रिपोर्ट के अनुसार 2012-19 के बीच देशभर के 96 अस्पताल में कैंसर के 1332207 मरीज पंजीकृत किए गए। पंजीकृत मरीजों में 610084 कैंसर मरीजों का विश्लेषण किया गया, जिसमें 52.4 प्रतिशत पुरूष और 47.6 प्रतिशत महिलाएं कैंसर पीड़ित थीं। जबकि चार प्रतिशत बच्चे कैंसर के शिकार पाए गए। लगभर सभी प्रकार के कैंसर में तंबाकू से होने वाले कैंसर की अधिकता देखी गई, तंबाकू का सेवन करने वाले 48.7 प्रतिशत पुरूषों में कैंसर देखा गया वहीं महिलाओं में तंबाकू की वजह से होने वाले कैंसर का प्रतिशत 16.5 देखा गया। कैंसर होने की विभिन्न संभावित वजहों में चिकित्सक किसी एक ठोस वजह पर एकमत नहीं है। इधर हाल के दिनों में कैंसर के इलाज में कई नई तरह की तकनीक का प्रयोग किया गया, जिसमें प्रारंभिक चरण में कैंसर की पहचान को सबसे जरूरी बताया गया। इस बारे में नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट एम्स झज्जर के प्रमुख डॉ. जीके रथ कहते हैं कि कैंसर के इलाज के लिए हम छात्रों को 80-20 का फार्मुला समझाते हैं, जिसका मतलब है कि 80 प्रतिशत कैंसर को प्रारंभिक स्तर पर यदि पहचान लिया जाएं तो इलाज की संभावना 80 प्रतिशत बढ़ जाती है। वहीं 80 फीसदी कैंसर बढ़ने पर मरीज के बचने की संभावना केवल 20 प्रतिशत ही रह जाती है। माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन और पीईटी सीटी स्कैन से कैंसर की पहचान की जा सकती है। दरअसल कैंसर कारक सेल्स शरीर में टीबी सेल्स की तरह की पहले से ही मौजूद रहती हैं और इनके अनियंत्रित या ज्यामितिय गति से बढ़ने से शरीर में कैंसर का फैलाव होने लगता है। कैंसर कारक सेल्स की पहचान कर उसको मारने को टारगेटेड थेरेपी कहा जाता है, जबकि कीमो और रेडियोथेरेपी से मरीज की साधारण सेल्स भी क्षतिग्रस्त होती है और मरीज इलाज के दौरान ही अधिक बीमारी हो जाते हैं। एम्स के पूर्व ऑकोलॉजिस्ट डॉ. पीके जुल्का कहते हैं कि कैंसर कारक कई प्रोटीन की पहचान कर अब देश में भी टारगेटेड थेरेपी का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन इलाज की यह प्रक्रिया अधिक महंगी होने के कारण साधारण मरीजों को अभी टारगेटेड थेरेपी का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में हम विशेष परिस्थतियों में ट्यूमर को रेडिएशन से खत्म कर बाकी सेल्स को टारगेटेड थेरेपी से खत्म करने की कोशिश करते हैं।
कैंसर के इलाज में भी अन्य बीमारियों की तरह होलेस्टिक इलाज को अपनाया जा रहा है। एम्स के कैंसर सेंटर पर इस बार काम शुरू भी कर दिया गया है, जिसमें मरीजों को इलाज के साथ ही आयुर्वेदिक थेरेपी और योगासन आदि से उनकी इम्यूनिटी को बेहतर किया जाता है। लेकिन कैंसर मरीजों की असल चुनौती कोविड काल में देखी गई, ईं संजीवनी के माध्यम ने कोर्मोबिडिज मरीजों को परामर्श दिया गया, लेकिन नियमित इलाज बाधित होने से बीमारी का चरण बढ़ गया। रूपम कहती हैं कि जनवरी के आखिरी हफ्ते में वह एक बार फिर इलाज के लिए एम्स पहुंची लेकिन अब हफ्ते में दो की जगह तीन बार कीमोथेरेपी की जा रही है। लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक शंकर कहते हैं कि कोविड काल में कैंसर मरीजों को संक्रमण के जोखिम के खतरे में शामिल किया गया, लेकिन निश्चित तौर पर इलाज बाधित होने से उनके स्वास्थ्य पर सीधा असर देखा गया। कैंसर मरीजों पर कोविड का प्रभाव देखने के लिए अभी कई तरह की क्लीनिकल स्डटी की जानी चाहिए, यह भी संभव है कि कैंसर मरीजों की कोविड संक्रमण की वजह से मौत हुई हो और उन्हें कोविड से होने वाली मृत्यु में शामिल कर दिया हो। इसके साथ ही कैंसर मरीजों के कोविड के लांग कोविड का असर जानने में भी अभी काफी समय लगेगा। कैंसर मरीजों में टीकाकरण की प्राथमिकता दी गई, लेकिन इसी बीच नियमित इलाज बाधित होने का दुष्प्रभाव सीधे तौर पर देखा गया। सोनाली बेंद्रे हो या फिर युवराज सिंह, सिने स्टॉर और अभिनेता विदेशों में जाकर कैंसर का इलाज कराते हैं और ठीक होकर आ जाते हैं। जबकि देश में भी आधुनिक इलाज की सभी तकनीकि पर शोध किया जा चुका है और अधिक बेहतर शोध की प्रक्र्रिया जारी है बावजूद इसके उपलब्ध बेहतर इलाज जनता के लिए सर्वसुलभ बनाए जाने की जरूरत है। जिससे किसी भी तरह के कैंसर का दूसरे या तीसरे चरण में भी पहचान में आने पर भी सफलता पूर्वक इलाज किया जा सके।