नई दिल्ली। योगाभ्यास से शरीर का सहज विकास होता है। योग शरीर को सशक्त बनाने वाले अन्य व्यायामों की भांति शरीर की मांसपेशियों व अस्थियों पर बोझ नहीं डालता है। आसन अष्ठांग योग का तीसरा अंग है, जिसे बहिरंग योग के अंतर्गत रखा गया है। आसन शब्द “आस” धातु से बना है। जिसका अर्थ है बैठना “आस्येत आस्ते व अनेन इति आसनम्” । यानी जिस भी स्थिति विशेष में बैठा जाए उसे आसन कहते है। महर्षि पतंजलि ने लिखा “स्थिर सुखामासनम्” जिस अवस्था में शरीर दीर्घ काल तक स्थिरता पूर्वक सुख के साथ स्थित रह सके उसे ही आसन कहते हैं। आसन के सिद्ध हो जाने पर साधक को गर्मी, सर्दी, भूख और प्यास आदि कष्ट नहीं होते है।
सिंहासन ऐसे करें
वज्रासन में बैठ जायें। उसके बाद दोनों हाथ की हथेली के पंजों को शेर की भांति तानकर दोनों घुटनों पर रखें। अपनी जीभ को बाहर निकालकर आंखों को ज्यादा से ज्यादा खोलते हुए या तो अपने आज्ञाचक्र (यानी दोनों आंखों के मध्य आईब्रो पर देखे) या फिर नासिकाग्रह दृष्टि (यानी अपने नाक के टिप) पर देखें। फिर उसके बाद गहरी श्वास भरकर गले से सिंह की भांति गर्जना करते हुए आवाज निकाले। शुरू-शुरू में इसका अभ्यास कम से कम 5 बार और फिर धीरे-धीरे इसको बढ़ाते हुए 10 बार तक ले जाएं।
लाभ भी जानें
इस आसन के अभ्यास से मुख, दांत, जिह्वा और गले आदि की बीमारी दूर होती है। इसके अभ्यास से निर्भयता अतिशीघ्र आती है, पिंडली, घुटने, अंगुलियों में सुडौलता और सुदृढ़ता आती है। गायक और अभिनेता के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभप्रद है। नेत्र ज्योति बढ़ती है, सिंह समान बलशाली और निडर बनने के बाद भी साधक संयमी बनता है। इसके अभ्यास से तीनों बंध स्वतः लग जाते है। चेहरे की समस्त मांसपेशियों का व्यायाम होता है। इसके निरंतर अभ्यास से स्वर शुद्धि होती है। थायराईड ग्लेंड की कार्यक्षमता बढ़ती है। छाती, फेफड़े और गले पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
थोड़ा संभलकर करें
इसका अभ्यास दूषित वातावरण में ना करें। साईटिका के रोगी भी इसका अभ्यास ना करें। अपनी जीभ को यथा संभव ज्यादा से ज्यादा बाहर निकाले और गर्जना करते वक्त पूर्ण शक्ति का प्रयोग करें।