नई दिल्ली। राजनीतिक रूप से नदियों की दो किनारों की मानिंद कांग्रेस और भाजपा कहीं एक जगह पर मिलेगी, अब तक यह असंभव-सा था। लेकिन, चुनावी चरित्र में न तो स्थायी दोस्त है और न ही दुश्मन – यह बात हाल के दिनों में चरितार्थ हो रही है। एक बार नहीं, बल्कि बार-बार यह साबित हो रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लगातार भाजपा में आ रहे हैं। पहले यह घटना इक्का-दुक्का होती थी, लेकिन बीते दशक में इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। गजब तो करीब छह साल पहले पहले हुआ था, जब अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू के नेतृत्व पूरी कांग्रेस ही भाजपाई हो गई और कांग्रेस से भाजपा की सरकार बन गई। भारतीय राजनीति में वह विरले घटना हुई।
उसके बाद असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत विस्वाशर्मा ने जब कांग्रेस छोड़ा, तब भी बड़ी घटना कही गई। हाल में जब मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता सुरेश पचौरी ने हाथ को झिटक कर कमल को हृदय से लगाया, तो सवाल उठने लगा कि आखिर सत्तर दशक का जीवन पार कर चुके पचौरी की कौन-सी महत्वाकांक्षा थी, जिसे कांग्रेस ने पूरा नहीं किया और उम्र के इस पड़ाव पर उनका कौन-सा लोभ है!्
पिछले कुछ महीनों में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के जिन वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है उनमें पूर्व केंद्रीअय मंत्री, पार्टी के भूतपूर्व अध्यक्ष और चार बार के राज्य सभा सांसद सुरेश पचौरी की कमी पार्टी को सबसे अधिक खल रही है। सुरेश पचौरी के भाजपा में शामिल होने की खबर के बाद भले ही अचानक आई हो परन्तु हकीकत यह है कि हमेशा ही कांग्रेस के समर्पित नेताओं की कतार में अग्रणी रहे सुरेश पचौरी ने यह फैसला तब लिया जब अत्यंत भरे मन से लिए गए इस फैसले के अलावा उनके सामने कोई अन्य विकल्प कांग्रेस ने नहीं छोड़ा था। कांग्रेस पार्टी में रहकर सुरेश पचौरी ने जो पद और प्रतिष्ठा अर्जित की उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना गलत होगा कि वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भाजपा में शामिल हुए हैं। इस उच्च शिक्षित, विनम्र और सहज सरल व्यक्तित्व के धनी इस राजनेता ने पचास वर्षों के राजनीतिक जीवन में इतना यश अर्जित कर लिया था कि कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती थी। 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत राजग सरकार के गठन के बाद कई ऐसे मौके आए जब वे राजनीतिक सौदेबाजी करके भाजपा में शामिल हो सकते थे परन्तु शायद पानी गले तक पहुंच जाने के बाद वे यह अप्रत्याशित फैसला फैसला लेने के लिए विवश हो गये। कांग्रेस पार्टी सुरेश पचौरी के इस अप्रत्याशित फैसले के लिए आज उनकी आलोचना करते समय यह क्यों भूल जाती है कि उनके राजनीतिक सूझबूझ और अनुभवों से लाभ लेने के बजाय उन्हें एक तरह से हाशिए पर पहुंचा देने में भी संकोच नहीं किया गया। पिछले कुछ सालों में ऐसे अनेक अवसर आए जब पार्टी के विभिन्न फोरमों में लिए जाने वाले महत्वपूर्ण फैसलों में सुरेश पचौरी की राय लेने की आवश्यकता महसूस नहीं की गई। पार्टी में लगातार अपनी उपेक्षा से उपजी उनके मन की पीड़ा का अंदाजा कांग्रेस का वरिष्ठ नेतृत्व नहीं लगा पाया । यह पीड़ा उस समय और घनीभूत हो गई जब कांग्रेस ने विगत दिनों अयोध्या में नवनिर्मित भव्य मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आमंत्रण ठुकरा दिया।
असल में, लोगों से बात करने पर यह सार निकलता है कि वर्तमान परिस्थिति में कांग्रेस के अनेक नेताओं को लगने लगा है कि इस दल का कोई भविष्य नहीं है। राजनीति में प्रभाव कायम रखने के लिए कांग्रेस के नेता लगातार भाजपा में शामिल हो रहे हैं। स्वाभिमान आहत होने की वजह से भी कुछ नेता दलबदल रहे हैं।राजनेताओं में दलीय निष्ठा की बजाय सत्ता सुख भोगने की चाह होती है। इसीलिए सालों तक दूसरे दल को कोसकर सत्ता पाने वाले नेता सत्ता में बने रहने के लिए उसी दल में शामिल हो जाते है जिससे वे सालों तक लड़ाई लड़ते हैं।
राजस्थान में गहलोत राज में केबिनेट मंत्री रहे राजेंद्र यादव कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में चले गए। पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव के दौरान यादव महज 313 वोटों से हार गए थे। उनकी हार की वजह निर्दलीय प्रत्याशी दुर्गा लाल सैनी को माना जा रहा है। दुर्गा लाल सैनी माली समाज से हैं और अशोक गहलोत भी माली समाज से हैं। चुनाव के दौरान राजेंद्र यादव ने अशोक गहलोत से आग्रह किया था कि वे दुर्गा लाल सैनी को मनाकर नामांकन वापस लिवाए। दुर्गा लाल सैनी मैदान में डटे रहे।
पिछले कुछ सालों में दर्जनों कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया, जिनमें कई पूर्व मंत्री, केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। ये सिलसिला अभी भी जारी है। बीते 10 वर्ष में कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है। त्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मई 2016 में बीजेपी का दामन थामा। 1999 से 2004 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एसएम कृष्णा ने 2017 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन की । आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने साल 2023 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया।किरण कुमार रेड्डी अविभाजित आंध्र प्रदेश के अंतिम मुख्यमंत्री थे. किरण रेड्डी ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी भी 2017 में बीजेपी के साथ हो लिए. 18 अक्टूबर 2018 को नई दिल्ली उनका निधन हो गया। अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी एक वक्त में कांग्रेसी नेता थे. दिसंबर 2016 में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) के 32 विधायकों के साथ वो भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस से दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने के क्रम में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे का नाम भी शामिल है. उन्होंने सितंबर, 2017 में कांग्रेस का साथ छोड़ा था. साल 2019 में राणे बीजेपी में शामिल हो गए थे। पंजाब की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के दिग्गज मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साल 2021 पंजाब लोक कांग्रेस का गठन किया और विधानसभा चुनावों में सभी 117 सीटों से चुनाव लड़ा। इसके बाद उन्होंने साल 2022 में पीएलसी पार्टी बनाई और फिर बीजेपी में इसका विलय कर लिया। अशोक चव्हाण भी कांग्रेस के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों की उस लिस्ट में शामिल हो गए हैं जिन्होने बीजेपी का दामन थाम लिया है। 13 फरवरी 2024 को चव्हाण बीजेपी में शामिल हो गए। उधर 14 फरवरी को ही भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में होने वाले आगामी राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार भी बना दिया।
कांग्रेस पार्टी के सामने दुविधा की स्थिति है। इसके पास पुराने और बड़े नेता अभी भी बड़ी संख्या में हैं। हर राज्य में हैं, लेकिन विडंबना यह कि कोई नामधारी (बड़ा नेता) लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मन से तैयार नहीं है। 14 अकबर रोड में बैठने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस में दो जनरल हैं। दोनों पार्टी को 2024 में सफलता दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं। एक हैं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और दूसरे भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त कांग्रेस सांसद राहुल गांधी।